मोदी-मोदी नहीं, मैगी-मैगी बोलिए हुजूर...
तब मैगी खाने वालों से जाति धर्म घर गांव नहीं पूछते. फोर्क की कमी हुई, और उंगलियों को हमने फोर्क बना डाला.
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मोदी-मोदी का नारा तो हमने कभी नहीं लगाया लेकिन मैगी-मैगी खूब चिल्लाया है. बचपन से ही. 'दो मिनट रूक सकते हैं. सर के बल झुक सकते हैं. बड़े गजब की भूख लगी, मैगी चाहिए मुझे अभी'. तब ब्लैक एंड व्हाइट टीवी हुआ करती था और मैगी का पैकेट 100 ग्राम का. पेट भर जाए लेकिन मन न भरे. आज तो 85 ग्राम में कुछ होता भी नहीं.
बड़े हुए, इस मैगी से कितनी ही कहानियां बनीं. रात पढ़ते बीते या सिनेमा देखते, या फिर दोस्तों के साथ गप्पे मरने में, चुपके से हॉस्टल के कमरे में छुटके से हीटर पर मैगी बना डालते.
रात के दो बजे मैगी की हलकी सी महक किसी कमरे से आती और हम हमला करते. कई बार मैगी की एक केक में मानो पूरा हिन्दुस्तान शामिल हो गया हो. तब मैगी खाने वालों से जाति धर्म घर गांव नहीं पूछते. फोर्क की कमी हुई, और उंगलियों को हमने फोर्क बना डाला. बर्तनों से चिपके मसाले भी चाट जाते.
हमें नेस्ले नहीं पसंद था लेकिन मैगी का भी तो कोई विकल्प न था. मैगी खाकर ही सही लेकिन कभी कभी बचे रैपर को देख हम बातें किया करते कि कैसे नेस्ले ने मुनाफे के चक्कर में बच्चों को मां के दूध से दूर कर दिया था. अमरीका में 70 के दशक में बहिष्कार हुआ था उसका. हम नेस्ले की अफ्रीका में मजदूरों के शोषण पर भी बात करते, लेकिन मैगी नहीं छोड़ पाए.
हम में से कइयों ने अपने उन दोस्तों के घरों की दीवारें, हॉस्टल या पीजी की बाल्कनियां (आप समझ रहे हैं) केवल और केवल मैगी पहुंचाने या लाने के लिए चढ़ी हैं. पकड़े गए तो गार्ड को भी वही मैगी खिलाई.
रात की नौकरियों में उंघते ढाबों पर या छोटी सुनसान गलियों की खाक भी हमने खूब छानी इस मैगी के चक्कर में. हमारे एक मित्र के अनुसार मैगी सहारा थी उसकी पत्नी के मायके जाने की धमकियों का.
लेकिन अब इसी मैगी में सीसा निकला है. हम भी चकित, हमने तो बहुत खाया पर कभी लगा नहीं. अधिकारियों को लगा है. हमें हवा बुरी लगती है. अधिकारियों को नहीं लगता. और हम उसी हवा में सांस लेने को मजबूर है. हमें ये भ्रष्ट व्यवस्था बुरी लगती है. अधिकारियों को नहीं लगती. हम उसी व्यवस्था में जीने को मजबूर हैं. हमें बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी बुरी लगती है. अधिकारियों को नहीं लगती. हम इनके साथ ही जीने को मजबूर हैं.
लेकिन अधिकारियों को सिर्फ मैगी बुरी लगी है. मिलावट करने वालों पर कार्रवाई होनी ही चाहिए. मुनाफे के लिए स्वास्थ से खिलवाड़ कर रहे लोगों को सजा भी मिलनी चाहिए. लेकिन उतना ही सच है कि हमें मैगी मिलती ही रहनी चाहिए. बेशक सुरक्षित. जीवन में कुछ तो हो जो इंस्टेंट हो. दो मिनट में.
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