आगे की सुनिए, गो तस्करी के नाम पर अलवर में हत्याएं होती रहेंगी
क्यों अलवर की फिजा में घुल गई है हिंसा? गाय के नाम पर क्यों मर रहा है इंसान और कौन मार रहा है?
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राजस्थान के अलवर में भी सवा साल में तीन लोगों को भीड़ ने पीट पीटकर मार डाला है. अब सवाल उठता है किस तरह घटनाएं अलवर में क्यों होती है? क्या देश में सबसे ज्यादा हिंसक लोग अलवर में ही रहते हैं या फिर सबसे ज्यादा गौ तस्कर अलवर के आस-पास ही रहते हैं? तो ये समझ लीजिए कि गौ रक्षा और गौ तस्करी के नाम पर हिंसा की वारदातें मेवात के इलाके में पहली बार नहीं हो रही है. लेकिन देश के जनमानस को इस घटना ने तब झकझोरा जब गोरक्षकों ने पहलू खान नाम के शख्स को फुटबॉल के मानिंद उछाल-उछाल कर मारा. उसके थोड़े ही दिन बाद उमर खान को दो गो रक्षकों ने पहले तो पीटा और फिर गोली मार दी. अब अकबर खान उर्फ रकबर खान को एक बार फिर से भीड़ और पुलिस ने गोरक्षा के नाम पर पीट-पीट कर मार डाला.
गायों की तस्करी फिर उनकी हत्या के शक पर भीड़ ने अलवर में एक व्यक्ति को मार डाला
समझने की बात ये है कि अलवर की धरती न तो ब्रज है और न ही द्वारिका, जो लोग कामधेनु की अस्मिता के लिए जान लेने और जान लेने पर उतारु हों. इसे समझने के लिए हमें यहां की भगौलिक, सामाजिक और राजनीतिक परिवेश को समझना होगा. 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जनता से वादा किया था कि सत्ता में आए तो काऊ पुलिस स्टेशन खोलेंगे. और चुनाव जीतने के सालभर के अंदर बीजेपी सरकार ने मेवात इलाके में 22 गोमाता पुलिस थाने खोल दिए. मेवात का इलाका राजस्थान और हरियाणा को मिलाकर बनता है, जिसमें राजस्थान का अलवर जिला और हरियाणा का नूह जिला बार्डर के जिले हैं.
इन इलाकों में गो तस्करी काफी पुरानी समस्या रही है. नूह वह इलाका है जहां मुस्लिम समाज के लोग गो पालक भी हैं और गो तस्कर भी. नूह में जिस तरह गो पालन होता है उसी तरह गो तस्करी में भी लोग लिप्त रहे हैं. मेवात के नूह के गो तस्कर अक्सर राजस्थान के अलवर और भरतपुर के इलाकों में गो तस्करी के लिए आते हैं. राजस्थान पुलिस के आंकड़ों पर ध्यान दें तो पिछले तीन वर्षों में अलवर में 354 गो तस्करी के मामले अलग-अलग थानों में दर्ज हुए. जिसमें 5556 गो तस्कर गिफ्तार हुए हैं. जिनमें 26 आरोपी ही हिंदू हैं.
आरोपी हिंदू है लिखने के मतलब मेरा ये नहीं है कि मैं इसे हिंदू-मुसलमान के खांचे में बांट रहा हूं बल्कि में ये बताना चाहता हूं कि गो तस्करी धर्म से जुड़ा हुआ मामला न होकर ज्यादा आर्थिक है. यदि गो तस्करी का मामला धार्मिक होता तो राजस्थान में टोंक और जयपुर जैसे मुस्लिम आबादी वाले जिले हैं जहां कभी गो तस्करी नहीं होती है.
पुलिस इन मामलों में एक्शन तो ले रही है मगर इन्हें रोकने में नाकाम है
लेकिन सवाल ये है कि ये भीड़ इतनी हिंसक क्यों बन जाती है. और हर बार पुलिस इस कसाई भीड़ का हिस्सा क्यों नजर आती है. राजस्थान सरकार ने जब से गो माता थाना खोला है, तब से सैकड़ों पुलिसकर्मी गाय की तस्करी रोकने के लिए बड़ी संख्या में रातभर सड़कों पर रहते हैं. सूचना के लिए पुलिस जनता से मुखबिरी भी कराती है. इस बीच गो रक्षा के नाम पर कई संगठन भी पैदा हो गए हैं. पुलिस के अतिरिक्त इंतजाम और जनता की अतिरिक्त चौकसी की वजह से गो तस्करी का अपराध हत्या, बलात्कार और लूट जैसा बन गया है. ऊपर से आग में घी का काम सांप्रदायिक नजरिये ने कर दिया है.
इस सख्ती के चलते गो तस्करों ने तस्करी के लिए नए-नए तरीके अपनाने शुरू किए. और पकड़े जाने के डर से कई बार वे हिंसक भी हुए. इसी साल मार्च की बात है. एक सजी-धजी ट्रवेरा गाड़ी सड़क पर दौड़ रही थी. आगे-पीछे उस पर वर-वधू का नाम चस्पा था. पुलिस ने इसे रोकने की कोशिश की तो ड्राइवर ने गाड़ी को इतनी तेजी भगाया कि वह आगे जाकर पलट गई. मगर जब पुलिस ने गाड़ी के भीतर झांका तो उसमें दो गायें ठूंस कर भरी हुई मिलीं.
कुछ दिन बाद रात को एक पार्क से जब आवारा गायों को गो तस्कर गाड़ी में भर रहे थे. तभी कालोनी वालों ने हंगामा मचा दिया. कहीं पकड़े न जाएं, इस डर से गो तस्करों ने उनपर छर्रे से फायरिंग कर घायल कर दिया. गो तस्कर और गोरक्षक पुलिस के बीच आए दिन मुठभेड़ होती रही है. अब ये मुठभेड़ हिंसक भीड़ के रूप में जब सामने आ रही है, तो स्थानीय लोगों को इसमें चौंकाने वाला कुछ नहीं लग रहा.
भीड़ द्वारा मारे गए अकबर के परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है
पहलू खान की हत्या के मामले में सबने देखा किस तरह जब पहलू को जब पीट रही थी तो पुलिस खड़े होकर तमाशा देख रही थी. पीटनेवालों पर मुकदमा दर्ज करने के बजाए पहलू खान पर ही गो तस्करी का मुकदमा दर्ज कर दिया था. उमर खान के मामले में भी पुलिस पर उसको मारने का आरोप लगा था और अकबर खान मामले में तो पूरे थाने पर लाईन हाजिर और ससपेंड जैसी कारर्वाई करनी पड़ी.
बीजेपी के रामगढ़ के ही विधायक ज्ञानदेव आहूजा खुलेआम कह रहे हैं 'जिन तीन लोगों को अकबर खान की मौत के मामले में पकड़ा गया है उन्हें छोड़ा नही गया तो आंदोलन करेंगे.' इस बयान से समझा जा सकता है कि गाय के नाम पर सियासत जीवन-मरण से कहीं आगे जा चुकी है. हर मौत और गाय की सियासत वोट का गणित बन चुकी है. जिसमें नेता गाय माता की पूंछ पकड़कर वैतरणी पार तरना चाहता है. इसमें भले ही कोई डूब रहा हो तो डूबा करे.
सियासत का दुपट्टा किसी के आंसुओं से तर नहीं होता. मॉब लिंचिंग के खिलाफ प्रधानमंत्री दुख जताते हैं और कार्रवाई का निर्देश देते हैं, मगर वोटों की जुगत में पार्टी राज्यों में गो रक्षा के नाम पर हत्या में शामिल आरोपियों के साथ खड़ी नजर आती है. दूसरा पक्ष है गो तस्करों का भी है. जो पेट भरने के लिए इस धंधे से तौबा नहीं करना चाहते. भले जान चली जाए. ऐसे में ये सिलसिला रुके इसकी उम्मीद कम ही दिखती है.
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