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Updated: 05 नवम्बर, 2017 11:43 AM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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प्यारी खिचड़ी

आज तुम्हारा हाल चाल लेना और कुछ नहीं वक्त की बर्बादी है. सड़क से लेकर सदन तक, मेन स्ट्रीम से लेकर सोशल मीडिया तक तुम ही चर्चा में हो. जाहिर है ठीक नहीं बहुत अच्छी होगी. सब की तरह मैंने भी सुना कि, तुमको अचानक से राष्ट्रीय व्यंजन बना दिया गया है. अब तक जो तुमको अपनी थाली में देखकर नाक-भौं सिकोड़ते थे आज तुम्हारी शान में कसीदे पढ़ रहे हैं. कल तक तुम अस्पताल में थीं, तुम्हें बीमारों का खाना माना जाता था. आज तुम और सिर्फ तुम विकास का नया अध्याय हो और हर जगह छाई हो.   

मुबारक हो बहन, इन राजनेताओं ने तुमसे राजनीति करी और अब तक इंफीरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स की शिकार तुम, तुमनें वही किया जो इन नेताओं ने चाहा. उन्होंने तुम्हें उंगली पर नचाना चाहा और तुम खुद नाचने को आतुर दिखीं. सच में बहन, तुमको और तुम्हारी हालत देख कर बड़ा दुःख हो रहा है. ऐसा नहीं कि हम दोस्त रिश्तेदारों को तुम्हारे अच्छे दिनों से कोई समस्या है या फिर हम उसे देख कर जल रहे हैं. हमारी चिंता का सबब तुम्हें पॉलिटिक्स में घेरा जाना है. तुम्हारे साथ हो रहे छल को देखकर हम दोस्त रिश्तेदारों की आंखें नम हैं, मगर तुम्हें खुश देखकर हमें थोड़ा संतोष भी है. वो क्या है न खुशी वाकई बहुत बड़ी चीज है.

खिचड़ी, राष्ट्रीय भोजन, ब्रांड सोशल मीडिया के इस दौर में कब क्या ट्रेंड हो जाए नहीं पता. बहरहाल, आजकल ट्रेंड का मुद्दा खिचड़ी है

खैर छोड़ो, क्योंकि तुम एक राष्ट्रीय व्यंजन हो तो हम लोगों के लिए ये देखना भी खासा दिलचस्प रहेगा कि, अचानक तुम्हारे प्यार में पड़े लोग तुम्हें कैसे ग्रहण करेंगे. क्या अब लोग तुम्हें पूर्व की तरह ही खाएंगे या फिर उसके लिए कुछ विशेष करना होगा. मतलब ऐसा न हो कि भविष्य में जब तुम्हें लोग खाने बैठें तो इस कशमकश में रहें कि तुम्हें गृह - नक्षत्र देखने और सही मुहूर्त निकालने के बाद खड़े होकर खाया जाए या फिर बैठकर खाया जाए. साथ ही अब हम बाक़ी दोस्तों में ये शर्त भी लग गयी है कि, चूंकि अब तुम राष्ट्रीय व्यंजन हो तो क्या भविष्य में शादी ब्याह में लड़की वाले तुमको एक चम्मच में डालकर बारात, खासतौर से दूल्हे के स्वागत के लिए खड़े होंगे. अब भविष्य क्या होगा ये तो राम ही जानें मगर हां देखो नाराज न होना ये जो बातें कहीं वो केवल मजाक था.

अच्छा ठीक है, बहुत हो गईं हंसी मजाक और दिल जलाने वाली बातें. सोशल मीडिया के इस दौर में और जीमेल, फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सऐप जैसे  मैसेजिंग के क्रांतिकारी टूल्स होने के बावजूद तुमको लैटर लिखा जा रहा है. आशा है तुम इस लैटर की गंभीरता समझ रही होगी.

खिचड़ी, राष्ट्रीय भोजन, ब्रांड खिचड़ी को देखकर कहा जा सकता है कि कम से कम सरकार ने इसके अच्छे दिन तो ला दिए

प्यारी बहन खिचड़ी, इस बात को समझने की कोशिश करो कि अब इस देश के नेताओं के पास मुद्दे खत्म हो गए हैं. देश में विकास के अलावा सब कुछ हो रहा है. राजनीति इस बात पर हो रही है कि कौन कितने भड़काऊ बयान और भाषण दे सकता है. अब तुम ही बताओ कि जिस सरकार को लोगों के रोजगार, बढ़ती महंगाई, भ्रष्टाचार, प्रदूषण, चिकित्सा सेवा, महिला सुरक्षा पर बात करनी चाहिए वो अगर अपना सारा ध्यान लोगों के खाने पीने और उनकी "ईटिंग हैबिट्स" पर लगा दे तो फिर कहना ही क्या.

अभी नई- नई बात है. शायद तुमको अच्छा लग रहा होगा और मजा भी बहुत आ रहा होगा. मगर आने वाले समय में तुम खुद इस बात का निर्धारण कर लोगी कि इन नेताओं ने न सिर्फ तुम्हारे साथ बल्कि तुम में पड़े दाल-चावल, सब्जियों-मसलों, तेल-घी के साथ केवल और केवल छल किया है. खैर सोशल मीडिया के इस टॉयलेट युग में जो न हो जाए वो कम है. इस दौर में रोज चीजों के अच्छे दिन आते हैं मगर वो किस तरह और कितने अच्छे रहते हैं ये बात भी किसी से छुपी नहीं है.

खिचड़ी, राष्ट्रीय भोजन, ब्रांड खिचड़ी पर सरकार की दया दृष्टि क्या पड़ी ये हर जगह चर्चा में आ गयी

बहरहाल, अब पत्र लंबा हो रहा है. बेहतर है कि अब बातों को विराम दे दिया जाए. चलती हूं. और हां ये भी न कहूंगी कि तुम अपना ख्याल रखना. इस बात को पढ़कर ये मत सोच लेना कि अब हमें तुम्हारा ख्याल न रहा. बात बस इतनी है कि फ़िलहाल खाद्य-प्रसंस्करण मंत्री के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर बाबा रामदेव तक बहुत से लोग हैं जो तुम्हारा ख्याल रख रहे हैं. ये लोग तुम्हारे फायदे गिना कर अपनी राजनीति की रोटी को तुम्हारे चूल्हे की आग से सेंक रहे हैं और उसपर चिकनी, चुपड़ी बातों का मक्खन लगा के जनता की थाली में परोस रहे हैं और उन्हें लगातार बेवकूफ बना रहे हैं.

जाते-जाते बस इतना ही कहूँगी कि अभी तुम्हारी शोहरत नई है. हो सके तो अपनी सोहरत को बहुत ज्यादा सहेज के रखना. शायद तुम्हें बड़े बुजुर्गों की बात याद हो. हां वही बड़े बुजुर्ग जो आज भी पूरे विश्वास के साथ इस बात को मानते हैं कि कब ईश्वर रंक को राजा और राजा को रंक बना दे कहा नहीं जा सकता. 

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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