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Updated: 18 अप्रिल, 2017 02:42 PM
अबयज़ खान
अबयज़ खान
  @abyaz.khan
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भाई सोनू निगम,

आपको आदाब अर्ज़ करता हूं. अस्सलाम अलेकुम नहीं कहूंगा. शायद उससे आपकी नींद में खलल पड़ जाए, क्योंकि मैंने सुना है कि अल्लाह की अज़ान से, मंदिर के घंटों से और गुरुद्वारों के शबद से आपकी मीठी नींद में खलल पड़ जाता है. मेरे ख्याल से आपको ज्यादा तकलीफ सुबह 5 बजे उठने में होती है. अज़ान की आवाज आपके ख्वाबों में विलेन बनकर आती है. और आपको सुबह-सुबह मजबूरन बिस्तर छोड़ना पड़ जाता है.

अफसोस होता है कि ये चिट्ठी मैं उस सोनू निगम को लिख रहा हूं, जिसने अपने करियर में 4 साल की उम्र में पहला गाना मुहम्मद रफी साहब का गाया था. सोनू निगम को शायद याद भी हो उस गाने के बोल थे ''क्या हुआ तेरा वादा''...सोनू साहब आप जानते हैं ना कि इन्हीं रफी साहब को आप अपना भगवान कहते थे. इनके गाने सुनकर ना सिर्फ आप बड़े हुए बल्कि इन्हीं के गानों ने आपका करियर बनाया है. और ये वही रफी साहब हैं, जिनकी नींद किसी मंदिर के घंटे से नहीं टूटती थी. इनकी नींद इसलिए सुबह खुलती थी क्योंकि ये सुबह-सुबह रियाज़ करते थे. ये वही रफ़ी साहब हैं जिन्होंने मशहूर भजन ''जिसके ऊपर तू स्वामी..सो दुख कैसा पावे'' को अपनी आवाज दी थी. लेकिन उन्होंने कभी इस बात की शिकायत नहीं की, कि उनकी नींद किसी मंदिर के घंटे की वजह से टूट जाती है.

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मेरे ख्याल से अगर मैं सही हूं तो शायद आप अपनी उम्र का 40वां बसंत पार कर चुके होंगे. इस मुल्क में आपकी पैदाइश से पहले ही अज़ानें, मंदिर के घंटे और गुरुद्वारों में शबद हो रहे हैं. लेकिन इससे पहले न तो आपके किसी घरवाले ने इसकी शिकायत की और न कभी आपने ही कोई शिकवा किया. फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि मुसलमानों से आपको इतनी नफरत होने लगी कि मस्जिद की अज़ान आपके कानों में चुभने लगी.

शायद में मैं गलत नहीं हूं तो आपकी गीत-संगीत की तालीम भी मुसलमानों के इर्द-गिर्द ही हुई है. उन्हीं के बीच में रहकर आप बड़े हुए हैं. और आज उन्हीं की बदौलत आप सोनू निगम बन पाए हैं. आपकी पहली तालीम भी गायक उस्ताद ग़ुलाम मुस्तफ़ा खान की सरपरस्ती में ही हुई थी. इतना ही नहीं करियर की शुरुआत में तो आपने टी-सीरीज़ के लिए रफी की यादें नाम के एल्बम के लिए काफी अरसे तक गाया था. आपने रफी साहब के इतने गाने गाये कि लोग आपको उनकी परछाईं तक कहने लगे थे. ऐसा नहीं है कि आप सिर्फ रफी साहब की परछाई हैं. आप एक बेहतरीन आवाज के मालिक हैं. आपकी आवाज में रूमानियत है तो दर्द भी है.

सोनू निगम साहब शायद आपको पता नहीं है कि कई बार मुहल्ले की शादी-बारातों या किसी दूसरे फंक्शन में आपकी आवाज में तेज भोंपू बजते हैं. कानों में तो तब भी तकलीफ होती है. लेकिन हम यही सोचकर खुश हो लेते हैं कि कोई नहीं अपने भाई की आवाज है. अफसोस है आज वही सोनू निगम कह रहा है कि उसे अज़ान की आवाज से तकलीफ होती है. सोनू निगम साहब आप दुनिया के ऐसे पहले शख्स होंगे जिसने ये बात कही है और ये अज़ान तो दुनिया के हर हिस्से में गूंजती है. आजतक तो कभी अमेरिका से भी ऐसी आवाज नहीं आई जिसमें उनकी नींद में मस्जिद की अज़ान से खलल पड़ा हो.

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हैरानी है कि आपको आवाजों से इतनी परेशानी क्यों हैं. आपकी तो रोज़ी-रोटी ही आवाज के दम पर टिकी है. फिल्म के गीत संगीत से लेकर आपके गाने तक जिन्हें मैं अब तक मखमली आवाज समझकर सुनता रहा था. वो सब भी तो आवाज का कमाल है. हैरानी है कि गुलज़ार साहब, नौशाद, ख्य्याम, निदा फ़ाज़ली जैसी बड़ी हस्तियों के बीच वक्त गुज़ारने वाले शख्स की सोच ऐसी भी हो सकती है. सोनू साहब इस मुल्क की गंगा जमुनी तहज़ीब में जहर घोलने वालों की वैसे भी कमी नहीं हैं. और आपकी जिम्मेदारी तो अमन फैलाने की होनी चाहिए थी. लेकिन आप भी जहर उगलने लगे.

माफ कीजिए मुझे अब आपकी सोच से भी डर लगने लगा है. आज आपने अज़ान पर सवाल उठाया है, कल कहोगे कि मुसलमान नमाज़ क्यों पढ़ते हैं. इनकी भीड़ देखकर आपकी तबीयत नासाज़ हो जाती है, फिर कहोगे मुसलमान टोपियां क्यों पहनते हैं, फिर कहोगे मुसलमान दाड़ी क्यों रखते हैं, इतनी नफरत है तो कह दो एक बार कि मुसलमान आपको पसंद ही नहीं हैं, लेकिन अब तक कहने की हिम्मत नहीं थी, सो कह नहीं पाए.

सोनू साहब ये बहुत खूबसूरत मुल्क है. यहीं काशी है, यहीं काबा है, यहीं गुरु है, यहीं भगवान है. दुनिया का सबसे वाहिद मुल्क है जहां के लोग इंसान पहले हैं, मज़हबी बाद में हैं. यहां राम और रहीम का फर्क करने वालों को आज तक मुंह की खानी पड़ी है. फिर आप कौन हो, आपकी हैसियत ही क्या है. सियासत का जहर बोने वाली कितनी ही नस्लों का नामों-निशां मिट चुका है. और हां एक बात और सोनू निगम साहब, आपको शायद पता नहीं होगा कि मैं हर साल होली खेलता हूं. रंगों से सराबोर हो जाता हूं. शक्ल पहचानने में नहीं आती. हर साल राखी बंधवाता हूं. मेरी बहन भी हिंदू है. दीवाली पर दीया भी जलाता हूं. पटाखों के शोर में पूजा के बाद मिठाई भी खाता हूं. बेहिचक मंदिर का प्रसाद भी लेता हूं. लेकिन इनके हुड़दंग से मेरी नींद में खलल नहीं पड़ता. मेरे घर के बाहर गुरुद्वारे में सुबह शाम कीर्तन होता है. घर के बगल वाली गली में हर दूसरे-तीसरे दिन जगराता होता है. मैं उसमें चंदा भी देता हूं, लेकिन उसके शोर से मेरी नींद में खलल नहीं पड़ता. मैंने एक बार शबद को अपनी रिंगटोन बनाया था. यकीन नहीं करोगे, बहुत आनंद आता था सुनने में, कानों में जैसे अमृत घुल जाता था.

सोन निगम साहब उम्र और हैसियत में आप मुझसे बड़े हैं, ज्यादा नसीहत कर नहीं पाऊंगा. आपकी आंखों पर पड़ा पर्दा हटाने की कोशिश की है. जब कभी धुंधला दिखाई देने लगे तो नजर का टेस्ट करा लेना चाहिए. कानों में तकलीफ हो तो उसका भी इलाज करा लेना चाहिए. और एक आखिरी सलाह है कि कभी सुकून से अज़ान, कीर्तन और शबद सुन लेना. बहुत मीठी लगेगी आवाज़. बिल्कुल अपनेपन का एहसास होगा. कर के देखो, बहुत अच्छा लगता है. और हां आखिरी बात ये कि कल भी आपकी आवाज का फैन था, आज भी हूं, और आगे भी रहूंगा क्योंकि आपकी आवाज से मेरी नींद में खलल नहीं पड़ता है.

आपका,

अबयज़ खान

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अबयज़ खान अबयज़ खान @abyaz.khan

लेखक पत्रकार हैं

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