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Updated: 17 सितम्बर, 2015 04:48 PM
विनीत कुमार
विनीत कुमार
  @vineet.dubey.98
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एक तो करेला...ऊपर से नीम चढ़ा. धर्म कोई भी हो, उनके कट्टर समर्थकों की सोच और मिजाज एक जैसे ही काम करते हैं. उनकी कथनी और करनी पर हमेशा गौर कीजिएगा, फिर 'गर्व से कहो हम हिंदू हैं' की बात सिखाने वाले और 'इस्लाम की रक्षा' करने वालों की पोल खुद-ब-खुद खुलेगी. जो लोग कल तक रजनीकांत को टीपू सुल्तान पर बनने वाली फिल्म में काम करने के लिए धमकी देते फिर रहे थे, उन्हीं में से अब कुछ लोग उसी धर्म की आड़ में एआर रहमान के खिलाफ फतवे की आलोचना कर रहे हैं. और तो और, 'घर वापसी' की सलाह भी देने लगे हैं.

चित भी मेरी, पट भी मेरी!

वीएचपी को लगता है कि रहमान के खिलाफ फतवा दुर्भाग्यपूर्ण है! इसलिए उन्हें 'घर वापसी' कर लेना चाहिए. यह बात वीएचपी की ओर से जेनरल सेक्रेटरी सुरेंद्र जैन ने कही. मतलब, रहमान दोबारा हिंदू धर्म को अपना लें. दरअसल, एआर रहमान ने ईरान में पैगंबर पर बनी फिल्म में म्यूजिक दिया. इस कारण कुछ मुस्लिम संगठनों ने रहमान पर नाराजगी जताई थी.

बता दें, रहमान ने 80 के दशक में इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था और दिलीप कुमार से एआर रहमान बन गए. वीएचपी की ओर से कहा गया है, 'रहमान के खिलाफ फतवा दुर्भाग्यपूर्ण है और उससे भी दुख की बात उस फतवे की भाषा है जिसमें बदला लेने की बात कही जा रही है. उन्होंने एक फिल्म के लिए म्यूजिक दिया न कि किसी धर्म के लिए. हिंदू समाज अपने बेटे की वापसी का इंतजार कर रहा है. हम न केवल दिल खोलकर उनका स्वागत करेंगे कि बल्कि इन फतवों से उनकी रक्षा भी करेंगे.'

अरे वाह! वीएचपी को फतवा दुर्भाग्यपूर्ण लगा. हमें भी लगा लेकिन अब लगे हाथ वीएचपी जरा रजनीकांत को मिली धमकी पर भी कुछ कह दे. वह भी तो एक रोल ही कर रहे हैं. फिल्म में रोल..क्या हुआ अगर यह टीपू सुल्तान के बारे में है. रजनीकांत को किसी फिल्म का अगर प्रस्ताव मिला है तो हिंदू संगठनों को मिर्ची क्यों लग रही है.

रहमान को फतवा और रजनीकांत को धमकी मिलना अच्छी खबर

यह अच्छी बात है कि दोनों घटनाक्रम करीब-करीब एक साथ हुए. वैसे भी हमारी याद्दाश्त कमजोर है. कम से कम इन दोनों घटनाओं से यह तो साफ हुआ कि कैसे कोई कट्टर धार्मिक संगठन किसी परिस्थिति का लाभ उठाने की कोशिश करता है. जबकि बेवकूफ दोनों संप्रदायों के लोग बनते हैं. किसी को कोई बात बुरी लगी तो उसने फतवा निकाल दिया, बिना यह जाने-समझे कि फिल्म में क्या है. क्या वाकई उस फिल्म से इस्लाम का माखौल उड़ रहा है? जबकि कोई दूसरा उस फतवे की आलोचना तो करता है लेकिन जब उसके धर्म वाला किसी ऐसी ही फिल्म में काम करने की सोचे जो उनके विश्वास के खिलाफ है, तो धमकी भी दे देता है.

मतलब, धर्म के इन सभी कथित ठेकेदारों के लिए हम, हमारी सोच, हमारी आजादी का कोई महत्व नहीं है. हम क्या पहनें, क्या देखें, क्या खाएं..इन सब का फैसला इन्हें ही लेने दीजिए. ये जैसा कहते जाएं, आप करते जाइए...धर्म की रक्षा के नाम पर. ये बड़े ज्ञानी लोग हैं. यह सब हमारे मालिक हैं, और हम इनके नौकर. ठीक है ना!

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लेखक

विनीत कुमार विनीत कुमार @vineet.dubey.98

लेखक आईचौक.इन में सीनियर सब एडिटर हैं.

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