आखिर कहां गई हमारे हिस्से की ऑक्सीजन? जानिए...
इस समय भारत की रोजाना खपत 5 हजार मीट्रिक टन की है. जबकि उसके अनुपात में उत्पादन 7 हजार मीट्रिक टन से ज्यादा है. ऐसी हालत में भला कैसे मान लिया जाए कि देश में ऑक्सीजन की किल्लत है. हकीकत में दिक्कतें दूसरी हैं.
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कोरोना महामारी की दूसरी लहर में सबसे ज्यादा मौतें ऑक्सीजन की कमी से हो रही हैं. चारों तरफ ऑक्सीजन के लिए दौड़ते भागते लोग दिख रहे हैं. मुंहमागी कीमत देने को तैयार हैं. दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे करीब 10 राज्यों में किल्लत बहुत ज्यादा है. इस बीच ऑक्सीजन को लेकर आरोप प्रत्यारोप की गंदी राजनीति भी दिखाई दे रही है. क्या सच में देश खपत के हिसाब से ऑक्सीजन की संकट का सामना कर रहा है. जवाब है नहीं. और अगर खपत के हिसाब से देश का उत्पादन बेहतर है तो सवाल है कि आखिर हमारे हिस्से की ऑक्सीजन कहां है?
वाणिज्य मंत्रालय की ऑक्सीजन एक्सपोर्ट डाटा के मुताबिक़ 2021 के वित्तीय वर्ष में देश ने पिछले 10 महीनों के दौरान दुनिया में दो बार ऑक्सीजन का निर्यात किया. अप्रैल 2020 से जनवरी 2021 के दौरान देश ने 9,301 मीट्रिक टन ऑक्सीजन विदेशों को बेचा. जबकि इससे पहले 2020 के वित्त वर्ष में (महामारी का पहला चरण) देश ने मात्र 4,502 मीट्रिक टन की बेचा था.
-ऑक्सीजन की डिमांड कुछ महीनों में बढ़ी है. मांग की ये रफ़्तार पिछले कुछ हफ़्तों में और ज्यादा तेज हो गई है. महामारी के पहले फेज के दौरान लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की डिमांड रोजाना 700 मीट्रिक टन से बढ़कर 2,800 मीट्रिक टन तक पहुंच गई थी.
-महामारी के दूसरे चरण में रोजाना की लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की मांग 5,000 मीट्रिक टन तक है. स्थितियों में सुधार नहीं हुआ तो इसके और आगे बढ़ने की आशंका है.
-भारत की क्षमता रोजाना करीब 7,000 मीट्रिक टन लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन प्रोड्यूस करने की है. प्रोडक्शन क्षमता और 2021 वित्त वर्ष में आयात की मात्र को देखें तो आसानी से समझा जा सकता है कि किल्लत के पीछे ऑक्सीजन की कमी नहीं और दूसरी वजहें हैं.
-फरवरी महीने के बाद से महाराष्ट्र में मामलों में बेतहाशा बढ़ोतरी के साथ देश में लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की मांग अचानक बढ़ने लगी. मार्च तक महामारी की दूसरी लहर बेकाबू हो गई चुकी थी.
-जबकि इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के निदेशक बलराम भार्गव ने बहुत पहले ही दूसरी लहर में मरीजों के सांस लेने की परेशानियों को रेखांकित किया था. यही कारण है कि अब मेडिकल जरूरतों की वजह से अप्रैल के दूसरे हफ्ते तक लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की मांग कई गुना तक बढ़ चुकी है.
-फिलहाल भारत 7,000 मीट्रिक टन लिक्विड ऑक्सीजन रोजाना बना रहा है जो जरूरत के हिसाब से पर्याप्त है. गैरजरूरी सप्लाई और उसे ढोने, स्टोर करने जैसी लॉजिस्टिक वजहों से कई राज्यों में ऑक्सीजन का संकट खड़ा हुआ है.
-आईनोक्स एयर प्रोडक्ट्स के निदेशक सिद्धार्थ जैन ने "मनी कंट्रोल" को बताया भी कि भारत मांग के अनुपात में पर्याप्त उत्पादन करता है, मगर उन्होंने यह भी कहा कि वितरण की दिक्कतों से कुछ राज्यों को किल्लत का सामना करना पड़ रहा है. आईनोक्स एयर अकेले देश की जरूरत के करीब 50 प्रतिशत से ज्यादा ऑक्सीजन का प्रोडक्शन करता है.
-मेडिकल ऑक्सीजन के अन्य बड़े मैन्यूफेक्चरर में लिंडे इंडिया, गोयल एमजी गैसेज प्राइवेट लिमिटेड, नेशनल ऑक्सीजन लिमिटेड शामिल हैं.
-अगर हम फिलहाल की देशव्यापी ऑक्सीजन की जरूरत को देखें तो अभी बहुत बेहतर स्थित में हैं. फिलहाल हम 7,200 मीट्रिक टन लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन रोजाना बना रहे हैं जिसे अस्पतालों में सप्लाई किया जाता है. सिद्धार्थ जैन ने मनी कंट्रोल को बताया भी कि रोजाना की मांग 5,000 मीट्रिक टन है.
-सिद्धार्थ जैन कहते हैं कि मांग के लिहाज से ऑक्सीजन पहुंचाने की दिक्कतों की वजह से किल्लत ज्यादा हुई है. ट्रांसपोर्ट की दिक्कतें आ रही हैं जिसके समाधान के लिए अब रेल मंत्रालय ऑक्सीजन एक्सप्रेस का मॉडल लेकर आया है.
-सिद्धार्थ जैन का मानना है डिमांड के हिसाब से फिलहाल का स्टॉक ठीक है. लेकिन रोजाना ढाई लाख से ज्यादा संक्रमण का मामला जितना बढ़ता जाएगा हालत उतनी ही खराब होती जाएगी.
-स्थितियां इसलिए भी खराब हो गईं कि महाराष्ट्र जैसे राज्य जितना ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं उनके यहां खपत उससे ज्यादा हो गई है. जबकि मध्य प्रदेश जैसे राज्य भी हैं जिनके पास ऑक्सीजन मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट ही नहीं है.
-अगर कोरोना के मामले रोजाना ऐसे ही बढ़ते रहें तो कई और राज्यों में भी ऑक्सीजन किल्लत हो जाएगी. बुधवार को भारत में 3,00,000 मामले पहुंच गए जो महामारी में अब तक सबसे ज्यादा है. ऐसी स्थिति में ऑक्सीजन लॉजीस्टिक दिक्कतें और बढ़ेगी.
-लिक्विड ऑक्सीजन को ढोने के लिए 24 घंटे क्रायोजेनिक टैंकर्स की जरूरत है. इस वक्त की जरूरत ज्यादा से ज्यादा क्रायोजेनिक टैंक बनाने की है. इसमें चार महीने तक का समय लग सकता है.
-मौजूद हालात में ट्रेनों के जरिए ऑक्सीजन की सप्लाई से सर्वाधिक परेशान राज्यों को मदद मिल सकती है. ऑक्सीजन सप्लाई के लिए नाइट्रोजन टैंकों का इस्तेमाल भी राज्यों की किल्लत दूर करने में मददगार होगा.
-50,000 मीट्रिक टन ऑक्सीजन विदेश से खरीदने का केंद्रीय फैसला भी संकट में मददगार साबित होगा. प्रक्रिया शुरू हो गई है. उम्मीद है कि अगले कुछ दिनों में सप्लाई मिल जाए.
-केंद्र ने 162 की संख्या में PSA ऑक्सीजन प्लांट्स को अलग-अलग राज्यों में लगाने का फैसला लिया है. 33 पहले ही लगाए जा चुके हैं. केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, ये प्लाट्स 154.19 मीट्रिक टन तक मेडिकल ऑक्सीजन क्षमता के वृद्धि में सहायक होंगे.
-33 में से पांच प्लांट मध्य प्रदेश में, चार हिमाचल, तीन तीन चंडीगढ़, गुजरात और उत्तराखंड, दो दो बिहार कर्नाटक और तेलंगाना, और एक एक आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, केरल, महाराष्ट्र, पुद्दुचेरी, पंजाब और उत्तर प्रदेश में लगाया गया है.
-फिलहाल की स्थिति तो ठीक है, लेकिन अगर मई के अंत तक संक्रमण की श्रृंखला नहीं टूटी तो ये भारत में ऑक्सीजन संकट के बहुत बड़े खतरे का अलार्म है.
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