New

होम -> समाज

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 20 अप्रिल, 2020 06:13 PM
प्रीति 'अज्ञात'
प्रीति 'अज्ञात'
  @preetiagyaatj
  • Total Shares

एक ऐसे समय में जबकि पूरा विश्व कोरोना वायरस महामारी (Coronavirus disease) से जूझ रहा है. हर तरफ़ मृत्यु का भय व्याप्त है और लोग स्वयं एवं अपने प्रियजनों की जीवन रक्षा को लेकर चिंतित हैं ऐसे महासंकटकाल में पालघर से आया वीडियो (Palghar lynching video) और दुखद समाचार स्तब्ध कर देता है. वे लोग जिन्हें घर के अन्दर रहकर lockdown का पूरा पालन करना था वे लाठी और घातक हथियारों से लैस हैं. इन्हें मास्क की भी कोई जरुरत नहीं इन मूर्खों को तो खुद ही मर जाना चाहिए जो निहत्थे साधुओं और उनके ड्राईवर पर एक अफ़वाह के तहत हमला कर उनकी नृशंस हत्या कर देते हैं. कोई कहता है कि उन पर बच्चा चोरी का शक था तो किसी को किडनी चोरी का. किसका बच्चा चोरी हुआ था और किसकी किडनियाँ गायब की थीं इन साधुओं ने? इसका जवाब देने वाला कोई नज़र नहीं आया! कुछ लोग इस आदिवासी समाज का जाति धर्म तलाश रहे हैं तो कुछ पुलिस पर दोष मढ़ रहे हैं.

जब हम खून से लथपथ हुए एक साधु को पुलिस वाले का हाथ पकड़ जाते हुए या फिर भयाक्रांत हो उनका कन्धा थामने की कोशिश करते देखते हैं तो यक़ीन मानिए उस वक़्त पूरी मानवता एक साथ शर्मसार होती है. तुरंत प्रश्न उठता है कि क्या इससे भी बुरी कोई तस्वीर कभी देखी है हमने? दुर्भाग्य कि जो उत्तर हमें प्राप्त होता है, वह हमारा सिर थोडा और झुका देता है. मॉब लिंचिंग की कई घटनाएँ आँखों के सामने तैरने लगती हैं. जहाँ भीड़ ने अपने आप को न्यायपालिका समझ किसी भी सिद्ध या असिद्ध घटना के दोषियों को अपना निर्णय सुना दिया था.
Palghar lynching videoपालघर की घटना ने हमारे समाज, पुलिस और सरकार, सभी की कलई खोल दी है.
भीड़ यही करती आई है क्योंकि भीड़ सदैव बचती आई है. भीड़ के चेहरे नहीं होते, भेड़ियों के झुण्ड में एक कुत्सित सोच काम करती है. घृणा से लबरेज़ एक विकृति है जो उन्हें न्यायाधीश के पद पर आसीन कर देती है. वे जानते हैं कि हाँ, शायद कभी नामों की सूची बनेगी पर इससे बेहतर वे ये भी जानते हैं कि हमारा लचर 'सिस्टम' इस बार भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा. शायद इन्होंने मॉब लिंचिंग को वैध ही मान लिया हो क्योंकि जब हत्या की सजा न हो, फाँसी न हो तो अपराधियों के हौसले तो बुलंद होते ही हैं. इन घटनाओं पर रोया जा सकता है, दीवारों से सर टकराया जा सकता है, चीखते हुए पुलिस वालों को गाली दी जा सकती है पर इस सबसे अपराध रुकेंगे, यह सोचना स्वयं को धोखा देने से अधिक और कुछ भी नहीं!
आख़िर मॉब लिंचिंग के खिलाफ़ एक सख्त कानून क्यों नहीं बना अब तक? किस मानसिकता ने हाथ बांधे रखे होंगे? और मैं केवल चंद कागजों पर लिखे कुछ शब्दों की मांग नहीं करती जिन्हें जब चाहे जैसे तोड़ा-मरोड़ा जाए, मैं ऐसे नियम की मांग करती हूँ कि जिसका लिखा एक भी शब्द कोई हिला न सके! एक ऐसा कानून, जिससे न्याय की प्रतीक्षा में वर्षों अदालतों में चक्कर काटते और सैकड़ों दरवाजों को पीट निराश हो लौटते चेहरे न के बराबर मिलें और हमें हमारी न्यायिक व्यवस्था पर पूरा भरोसा हो, सम्मान रहे. कब हो पायेगा ऐसा कि समाज किसी को कुचलते समय भयभीत हो!
एक पल को लगता है कि इस पूरे प्रकरण में पुलिस ही दोषी है जो भीड़ से साधुओं एवं उनके ड्राईवर को बचा न सकी! लेकिन हमारी पुलिस के पास एक लाठी के सिवाय है ही क्या! उसके भी चलाने के आदेश मिलेंगे तब  ही न चलाएगी. रही बात गोलियों की तो वो कहीं शादियों में नेता चलाते हैं तो कहीं किसी महापुरुष की तस्वीर उससे छलनी कर दी जाती हैं.
सच तो ये है कि हमारी पुलिस भी उतनी ही निरीह है जितने कि हम और आप! सोचना यह है कि आने वाले समय में हम बचेंगे कैसे? तब तक थोड़े दुःख हैं, थोड़े आँसू और एक आशावादी सोच जो अब भी कहती है कि घबराओ मत! ये समय भी बीत जाएगा और कल सुनहरा होगा. वीडियो देखने के बाद मैं निशब्द हूँ और न जाने कितना क्षोभ ह्रदय में भर गया है. मैं उन मृतात्माओं की भीषण वेदना की कल्पना कर भी सिहर जाती हूँ जिनकी रूह की शांति की दुआ कर रही हूँ. लेकिन किसी भी पूर्वाग्रह, आक्षेप से कोसों दूर रह मैं अब भी उम्मीद की एक अकेली धुंधली खिड़की पर सिर को टिकाये बैठी हूँ.

#पालघर, #लिंचिंग, #कोरोना वायरस, Palghar Lynching, Palghar Video, Coronavirus

लेखक

प्रीति 'अज्ञात' प्रीति 'अज्ञात' @preetiagyaatj

लेखिका समसामयिक विषयों पर टिप्‍पणी करती हैं. उनकी दो किताबें 'मध्यांतर' और 'दोपहर की धूप में' प्रकाशित हो चुकी हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय