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Updated: 31 जुलाई, 2019 08:17 PM
अनु रॉय
अनु रॉय
  @anu.roy.31
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टाइट जींस, क्रॉप टॉप, शॉर्ट पहनी लड़कियां, देर रात खुली सड़कों पर मोबाईल से बातें करती हुई लड़कियां, लोकल और मेट्रो में खड़ी लड़कियां, लड़कियां नहीं हैं ये. ये जिस्म भर हैं. जो सेक्स के लिए पुरुषों को आमंत्रित करती हैं. और जब बेचारे पुरुष सेक्स कर लेते हैं जिसमें मजा उन्हें भी आ रहा होता तो उसे ‘बलात्कार’ का नाम दे बेचारे पुरुषों को फंसा देती हैं.

अब अगर दूध को खुले में छोड़ोगे तो बिल्ली आकर दूध तो पीएगी ही. वैसे ही लड़कियां अगर अपना बदन दिखाती घूमेंगी तो छेड़खानी, बलात्कार सब होगा ही. इसमें पुरुषों का क्या कसूर. वो दिमाग से नहीं, कहीं और से सोचते हैं. कहीं और से का मतलब गलत न लीजिए, मेरा मतलब तो दिल से था.

woman-in-indiaबलात्कार के लिए महिलाएं जिम्मेदार, बलात्कारी क्यों नहीं?

सेक्स जिसे मूर्ख लड़कियां बलात्कार समझ लेती हैं वो पुरुषों का प्यार जाहिर करने का तरीका होता है. हां कभी-कभी वो थोड़े हिंसक हो जाते हैं जब वो बलात्कार के बाद लड़कियों के जिस्म में मोम, लोहे की छड़ तो कभी बोतल भी घुसा देते हैं.

मगर वो ये किसी गुस्से या क्षोभ में आकर नहीं करते. जो पुरुष बलात्कार करते हैं उनका मन बच्चों सरीखा होता है और लड़कियां उनके लिए खिलौने सी. तो खेलने के बाद कई बार लड़के तोड़ देते हैं न अपने खिलौने को. तो बस इतनी सी बात होती है. अब इससे लड़कियां कभी मर जाती है तो वो क्या करें. क्या खेलते हुए खिलौने नहीं टूट जाते बताइए. तो ऐसे में दिल्ली की निर्भया के बलात्कारी हो या उन्नाव वाले विधायक जी, उनकी गलती कहां से हो गयी.

गलती लड़कियों की है जो छातियों और योनि के साथ पैदा होती हैं. हे आरोपित पुरुष वर्ग हम भारत की बेटियां आप सब से अपने इस शरीर के लिए क्षमा मांग रही हैं, जो आपको आपकी राह से भटकाता है. आपको कुछ गलत सोचने पर मजबूर करता है.

हमारे विधायक जी बिलकुल बेकसूर हैं. उन्हें बाइज़्ज़त रिहा किया जाए. जब उत्तर प्रदेश की सड़कों पर लोग हाथों में बैनर पोस्टर ले र सेंगर के बचाव में उतर रहे हों तो यही सोचना सही लग रहा. इससे अलग सोचा भी क्या जा सकता है.

जब बलात्कार पीड़िता ज़िंदगी और मौत से अस्पताल में जूझ रही हो और बलात्कारी को बचाने के लिए लोग सड़क जाम कर रहें तो यही ख्याल आता है कि भारत में बेटी बनकर जन्म लेना गुनाह है. यहां स्त्रियां देवी तो हो सकती हैं मगर उनको लोग इंसान समझें ये मुमकिन नहीं है.

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लेखक

अनु रॉय अनु रॉय @anu.roy.31

लेखक स्वतंत्र टिप्‍पणीकार हैं, और महिला-बाल अधिकारों के लिए काम करती हैं.

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