प्रियंका को गले में रुद्राक्ष ही क्यों दिखा?
बुराइयों पर चर्चा को हिन्दू और हिन्दुत्व की बुराई क्यों मान लिया जाता है? एक हिन्दू अगर आतंकवादी बन जाता है, तो ये कोई चौंकाने वाली बात नहीं है. और न ही इससे पूरे हिन्दू समुदाय पर सवाल उठ जाता है.
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“ये पाकिस्तानी नहीं है क्योंकि इसने रुद्राक्ष की माला पहन रखी है. पाकिस्तान का कोई मुसलमान रुद्राक्ष की माला नहीं पहन सकता है. यह भारत का राष्ट्रवादी है, जो पाकिस्तान को फंसाना चाहता है.” ये चर्चित अमेरिकी सीरियल क्वांटिको-3 का डायलॉग है. बात शायद आई-गई हो गई होती, लेकिन इस डायलॉग को सीरियल के एक सीन में एफबीआई एजेंट की भूमिका निभा रही प्रियंका चोपड़ा ने जुबान दी, लिहाजा पर्दे की कहानी को कुछ लोगों ने हिन्दुओं के खिलाफ साजिश मान लिया. इसे हिन्दू आतंकवाद की थ्योरी को फिर से स्थापित करने की कोशिश के तौर पर भी देख लिया गया.
Now #Quantico is about Hindu men with Rudrakshwho r identified as #Indian nationalists with knowledge of Indian government planning a Nuclear attack & blaming #Pakistan & the Great priyanka chopra with FBI team stops it.#Shame #ShameonyouPriyankaChopra pic.twitter.com/RwBkaywyga
— Tahir Qayyum Tanoli (@TQTan0Li) June 6, 2018
सीरियल बनाने वाले एबीसी नेटवर्क ने इसके लिए माफी मांगी. फिर भी बात नहीं बनी. आखिरकार प्रियंका चोपड़ा ने कहा कि- “जो कुछ हुआ उसका मुझे बहुत दुख है और मैं इसके लिए माफी चाहती हूं. क्वांटिको के एक एपिसोड से कुछ लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं. लेकिन ऐसा करने का मेरा कोई इरादा नहीं था. मुझे भारतीय होने पर गर्व है और ये नहीं बदल सकता.” हालांकि इसके बाद भी प्रियंका को भला-बुरा कहने का सिलसिला जारी है.
I’m extremely saddened and sorry that some sentiments have been hurt by a recent episode of Quantico. That was not and would never be my intention. I sincerely apologise. I'm a proud Indian and that will never change.
— PRIYANKA (@priyankachopra) June 9, 2018
अपनी कौम को आतंकवाद के दाग से जोड़ा जाना हमें मंजूर नहीं है. ऐसी किसी भी कोशिश पर हम विचलित हो उठते हैं. भले ही ये काम एक विदेशी सीरियल के विदेशी निर्माताओं ने एक विदेशी की लिखी स्क्रिप्ट पर किया हो. हम एक ऐसी असह्य पीड़ा से गुजरने लगते हैं कि जैसे पूरे हिन्दू कौम की साख पर बट्टा लग गया हो. लेकिन सोशल मीडिया पर व्यक्त की जा रही इसी पीड़ा के बीच सवाल है कि क्या इतना कमजोर है हिन्दू और हिन्दुत्व?
आतंकवाद असल में है क्या?
आतंकवाद से नाम या पहचान जुड़ना इतना बुरा क्यों है? आप कह सकते हैं कि ये भी कोई सवाल है? आतंकवाद तो दरअसल मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन है. बिल्कुल है. इसकी कई वजहें हैं. सबसे पहली तो यही कि ये बेगुनाहों की जान लेता है. आतंकवाद अपने से भिन्न मतों को बर्दाश्त नहीं करता है और ऐसे मतों को खत्म कर देने की हद तक चला जाता है. आतंकवाद एक ऐसी सत्ता की वकालत करता है, जिसे किसी पैगंबर, भगवान या कोई और अदृश्य शक्ति ने कभी भी सहमति नहीं दी है. ऐसी तमाम और बातें हैं, जिसकी वजह से आतंकवाद को मौजूदा दौर की सबसे बड़ी चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है. वो क्या जानेंगे रुद्राक्ष को !
अब इतने घिनौने आतंकवाद रूपी राक्षस के गले में अगर किसी को रुद्राक्ष की माला दिख जाए, तो चौंकाने वाली बात जरूर है. भगवान शिव से उत्पन्न माने गए रुद्राक्ष को लेकर हिन्दुओं में एक खास श्रद्धा भाव है. भले ही वो इसको धारण करे या न करे. धर्मग्रंथों में चौदह प्रकार के रुद्राक्षों के अलग-अलग महत्व की चर्चा है, जिसमें इनसे मिलने वाले लाभों के बारे में बताया गया है. क्वांटिको-3 के गोरे निर्देशकों को रुद्राक्ष की अहमियत के बारे में कितना पता होगा, कहा नहीं जा सकता. लेकिन अगर वो अपनी कहानी में इसका इस्तेमाल कर रहे थे, तो उनसे ये उम्मीद की जा सकती है कि इसके बारे में जानें. खासतौर से तब और, जबकि उनके सीरियल की लीड रोल में भारत की देसी गर्ल प्रियंका चोपड़ा मौजूद हैं. सामने वाले को हिन्दू दिखाने के लिए किसी और प्रतीक का इस्तेमाल हो सकता था या उसका हिन्दू नाम ही काफी रहता. लेकिन शायद वो कहते हैं न कि विवादों में ही बाजार है. क्या पता रुद्राक्ष की महिमा से क्वांटिको-3 भारतीय दर्शक बाजार में जगह बना ले?
भिन्न मतों को नहीं कर पाते बर्दाश्त?
बहरहाल, हम बात कर रहे थे कि आतंकवाद इसलिए इतना बुरा है क्योंकि वो भिन्न मतों को बर्दाश्त नहीं करता. जो चीजें पसंद नहीं हो, उन्हें बर्दाश्त नहीं करता. और बर्दाश्त न करने की अपनी फितरत में खून बहाता चला जाता है. एक आंकड़े पर गौर कीजिए. 2017 में 822 सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में हमारे देश में 111 लोग मारे गए. ये सभी भारतीय थे, जो किसी न किसी भारतीय के हाथों मारे गए. सोचा आपने क्यों हुई ये हत्याएं? क्यों हुई एक साल में 822 सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं? इसीलिए न, क्योंकि हमने भिन्न मतों को खत्म करने की सोची?
बात भिन्न मतों को बर्दाश्त न करने की चल रही है, तो कुछ और आंकड़ों पर नजर डाल लेते हैं. केरल का जिला है कन्नूर. यहां पिछले करीब 5 दशक में 186 राजनीतिक हत्याएं हो गईं. 17 साल में कर्नाटक में 90 राजनीतिक हत्याएं हो गईं. NCRB के आंकड़ों के मुताबिक अकेले 2016 में अपने देश में 113 राजनीतिक हत्याएं हो गईं. किसी गौरी लंकेश, किसी शांतनू भौमिक, किसी कलबुर्गी की हत्या हो गई? ये सारी चीजें हो गईं और हो रही हैं क्योंकि हम भिन्न मतों को सहने के लिए तैयार नहीं होते.
घरों की दहलीज के अंदर भी नापसंद मंजूर नहीं !
जाने दीजिए. सांप्रदायिक हिंसा हो या राजनीतिक हत्याएं. इन घटनाओं में तो फिर भी मारने और मरने वाले अलग-अलग संप्रदायों या पार्टियों से थे. बात बहुत कड़वी लगेगी, लेकिन सच यही है कि हम तो अपने घरों के अंदर ही उन्हें खत्म कर देते हैं, जो हमें पसंद नहीं होते. हम हर साल अपने घरों में 2.4 लाख बच्चियों को उनकी पांचवीं सालगिरह से पहले मर जाने देते हैं. ये मौतें स्वाभाविक नहीं होतीं, बल्कि हत्या रूपी इन मौतों में हम परिवार के लोग ही शामिल होते हैं. इन मौतों के लिए हिन्दू भी जिम्मेदार होते हैं, मुस्लिम भी और दूसरे धर्म के लोग भी. लैंसेट की रिपोर्ट की शक्ल में ये खबर पूरी दुनिया की मीडिया में आती है. हम शर्मिंदा नहीं होते. हां, एक अदना-से सीरियल में एक अदना-से आतंकवादी के गले में रुद्राक्ष देखकर हमारा खून जरूर खौल उठता है.
फिर से वही सवाल करते हैं कि आतंकवाद क्या है? वही स्टीरियोटाइप? धमाके, निर्दोष लोगों पर फायरिंग, हमले? नहीं! आतंकवाद असल में किसी के साथ असहमति के बाद उभरा वो चरम विरोध है, जिसमें हम उसे मिटा देने की हद तक चले जाते हैं. और ये असहमति और नापसंदगी समाज के कई क्षेत्रों में साफ दिख रही है.
सनातन परंपरा पर सवाल ही कहां है?
हिन्दुओं की सनातन परंपरा महान रही है. सही है. लेकिन अगर मौजूदा दौर में कुछ बुराइयां हैं, तो उनकी चर्चा भी क्या नहीं हो सकती? बुराइयों पर चर्चा को हिन्दू और हिन्दुत्व की बुराई क्यों मान लिया जाता है? एक हिन्दू अगर आतंकवादी बन जाता है, तो ये कोई चौंकाने वाली बात नहीं है. और न ही इससे पूरे हिन्दू समुदाय पर सवाल उठ जाता है. हां, अगर कोई बगैर सत्यता और प्रमाण के हिन्दू आतंकवाद के संगठित रूप में होने की बात करता है, तो इस पर पुरजोर आपत्ति जरूर होनी चाहिए.
देश की एक सरकार ने कहा कि हिन्दू आतंकवाद है. विवादों के बीच कई लोगों की गिरफ्तारी हुई. सालों-साल मुकदमे चले. दूसरी सरकार आई. उसने कहा हिन्दू आतंकवाद जैसी कोई चीज है ही नहीं. पकड़े जाते वक्त भी एक्शन पर संदेह और सवाल थे. छोड़े जाते वक्त भी एक्शन पर संदेह और सवाल हैं. सवाल हिन्दुओं की साख पर नहीं है, सवाल सरकारों के भरोसे पर है. खतरे में हिन्दुओं की नहीं, सरकारों की विश्वसनीयता है. हजारों साल कसौटी पर कसी गई एक व्यवस्था में कोई क्षणिक खामी आ सकती है. वो अपना मूल चरित्र खोकर एक-दो या सौ-पचास लोगों की वजह से भटक नहीं सकता. गले में रुद्राक्ष पहन लेने से आतंकवादी हिन्दुओं का प्रतीक नहीं बन सकता. और न ही आतंकवादी के गले में पड़ने से रुद्राक्ष की महिमा कमतर हो जाती है.
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