मैंने अपनी सेक्स वर्कर मां की तस्वीरें खींची ताकि उनके करीब आ सकूं!
मुझे मेरी मां का पेशा पसंद नहीं था और इसका कारण साफ था. लेकिन फिर धीरे-धीरे मुझे एहसास हुआ कि हमारा ये नाजुक रिश्ता मजबूत हो सकता है, क्योंकि मैं अपनी मां की जितनी तस्वीर लेता हूं, उतना ही मैं उनके नजदीक आता जाता हूं.
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ये फोटो स्टोरी मेरे कैमरे के जरिए मेरी मां के साथ की बातचीत को दर्शाती है. मैं और मेरी मां दो अलग अलग छोर पर रहते थे. उन्हें मलकानगिरी, उड़ीसा से अवैध रुप से बंगाल के सेठबगान लाया गया था. मेरा जन्म मलकानगिरी में हुआ था. उन्हें सेक्स वर्कर बनना पड़ा. मैं अपनी मां की तलाश में दादी के साथ कोलकाता आया. शुरू में हम दोनों के बीच बड़ी दूरी थी. मेरी मां, कविता और मैं एक दूसरे से हिचकते थे. तभी मैं कहता हूं कि ये फोटोग्राफी ही थी जो हमें एकजुट करती थी. सिर्फ इसलिए ही मैं इसे कैमरे के जरिए बातचीत/संवाद कहता हूं.
मुझे मेरी मां का पेशा पसंद नहीं था और इसका कारण साफ था. लेकिन फिर धीरे-धीरे मुझे एहसास हुआ कि हमारा ये नाजुक रिश्ता मजबूत हो सकता है, क्योंकि मैं अपनी मां की जितनी तस्वीर लेता हूं, उतना ही मैं उनके नजदीक आता जाता हूं. उनके साथ की दूरी मिटती दिखती है. ये एक बेटे के तौर पर मेरे लिए बहुत ही कठिन काम था कि अपनी मां की फोटो मैं सेक्स वर्कर की तरह क्लिक करुं. लेकिन तभी मैंने ये भी महसूस किया कि एक बेटे के तौर पर मेरा उनके फोटो लेना और उनके हर कष्ट को दिखलाने के बाद ही उनके प्रति लोगों का नजरिया बदलेगा.
फोटोग्राफी की मेरी यात्रा एक प्रोजेक्ट 'फोटोग्राफी के जरिए सेक्स वर्कर के बच्चों को सशक्त बनाना जिसे यूनीसेफ ने चलाया था' के जरिए सन् 2000 में शुरु हुई. मुझे याद है जब पहले दिन हमें सिखाने आए व्यक्ति ने फर्श पर बैठकर हम छोटे बच्चों से बात करने लगा. उन्होंने मुझसे पूछा- "अपने परिवार में तुम किससे प्यार करते हो?" उसका जवाब देने में मुछे शर्म आ रही थी और मैं डरा हुआ भी था. थोड़ी देर चुप रहने के बाद थोड़ा हिचकते हुए मैं जवाब दिया कि मैं अपनी मां से प्यार करता हूं.
दूसरा सवाल था- "क्यों?" इस बार मुझे जवाब देने में कोई हिचक नहीं हुई. मैंने कहा- "मैं उन्हें मिस करता हूं." उन्होंने मुझे एक छोटा सा कैमरा दिया और अपनी मां, परिवार वालों और उनके आसपास के लोगों के फोटो क्लिक करने के लिए कहा. वो मुझे ये सिखाने लगे कि फोटो कैसे खिंचनी है इत्यादि.
मैंने देखा है कि देश के विभिन्न हिस्सों और विदेशों से भी बहुत से फोटोग्राफर तथाकथित "रेड लाईट" एरिया की तस्वीरें लेने आते हैं. मुख्यधारा का समाज और बाहरी लोग हमारे क्षेत्रों को "रेड लाईट" कहते हैं, लेकिन यहां का हिस्सा होने के कारण मैं कभी भी अपने क्षेत्र को इस शब्द से संबोधित नहीं करता.
इसी तरह इसी जगह रहने के कारण और खासकर अपनी मां की तस्वीर लेने के कारण ये मेरे लिए बहुत ही मुश्किल काम था. यह चुनौतीपूर्ण इसलिए था क्योंकि एक तरह से यह "खुद को ही देखने वाली बात थी".
मेरी मां के साथ मेरा संबंध आजतक बहुत जटिल है. इसका एक संस्थागत पहलू होने के साथ साथ एक भावनात्मक पहलू भी है. इसलिए मैंने अपने फोटो के माध्यम से अपनी मां के साथ अपने संबंधों को पकड़ने की कोशिश की.
देखिए मेरी फोटो स्टोरी-
(ये खबर सबसे पहले sbcltr पर छपी थी)
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