प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना करते हुए लॉकडाउन को हल्के में न लेना
जो भी है, 21 दिन का मामला है. युद्ध काल है. हर शख्स मोर्चे पर खड़ा है. अपने जीवन के दुश्मन के सामने. घर में खुद को बंद कर लेना ही सबसे कारगर रणनीति है. इस बीमारी को परास्त करने में लॉकडाउन को 62 फीसदी कारगर माना गया है.
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उफ् ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रात आठ बजे प्रकट होना. नोटबंदी के एलान के लिए भी उन्होंने इसी समय को चुना था, और रात 12 बजे से अपनी घोषणा को अमल में लाने की बात कही थी. अब रात 12 बजे से देश लॉकडाउन हो गया है. कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में यह उनका निर्णायक एलान था (फिलहाल तो यही लगता है). और इस एलान के बाद नोटबंदी की तरह ही अफरातफरी मची. किराना दुकानों के सामने वैसे ही दृश्य थे, जैसे तब एटीएम के सामने थे. उस फैसले में और इस परिस्थिति में जमीन-आसमान का फर्क है.
कोरोना वायरस के खिलाफ जंग और उससे जुड़े फैसले किसी हॉलीवुड एक्शन फिल्म की तरह लगते हैं. एक अदृश्य एलियन के खिलाफ जंग. हमारे फैसलों के नतीजे जो भी हों, लेकिन जंग तो लड़नी ही होगी. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने नागरिकों को 21 दिन घरों में रहने का सख्त आदेश दिया है. इसकी जरूरत भी उन्होंने दो टूक शब्दों में समझा दी है- 'जान है तो जहान है'.
कोरोना वायरस के संक्रमण से अब पूरी दुनिया अच्छी तरह वाकिफ है. वह कैसे इंसान के एक शरीर से दूसरे शरीर में पहुंच रहा है. प्रधानमंत्री मोदी ने देशवासियों को यही समझाने की कोशिश की कि कैसे कुछ लोगों की लापरवाही इस बीमारी को पैर पसारने में मदद कर रही है. दुनिया में इस महामारी के फैलाव की तीव्रता को भी समझाया. कैसे यह वायरस शुरुआती 67 दिनों में एक लाख लोगों में उजागर हुआ. फिर अगले 11 दिनों में दो लाख और उसके बाद के चार दिनों में यह तीन लाख लोगों को जकड़ चुका था. प्रधानमंत्री अपने उद्बोधन में स्पष्ट थे कि यदि हमने ये मौका चूका तो हम कहीं के नहीं रहेंगे. वे कहते हैं कि यदि 21 दिन का एकांत नहीं काटा तो 21 साल पीछे चले जाएंगे.
प्रधानमंत्री मोदी के संदेश को गंभीरता सेे लेने के अलावा देश के सामने कोई चारा नहीं है.
लेकिन, लोग तो लोग ठहरे. 21 दिन किसने देखे हैं, कल की रोटी की चिंता पाल ली. टूट पड़े किराना दुकानों पर. कोसना शुरू कर दिया प्रधानमंत्री मोदी को. कई मीडिया चैनल भी इसी बहस को आगे बढ़ा रहे हैं कि सरकार ने ठीक से इंतजाम नहीं किए. क्या लॉकडाउन जरूरी थी. दुनिया के कई देशों ने लॉकडाउन नहीं किया है. क्या भारत की सभी राज्य सरकारें इस फैसले के साथ हैं. वगैरह-वगैरह.
इन तमाम सवालों और तानों से आगे बड़ा सवाल है लोगों की सेहत से जुड़ा. बेशक असुविधाएं होंगी. हो सकता है मनपसंद पकवान खाने को न मिले. पिज्जा ऑर्डर नहीं कर पाएंगे. मॉल, क्लब नहीं जा पाएंगे. हां, उन गरीबों के लिए चिंता भी वाजिब है जिनके लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ मुश्किल होता है. लेकिन यह समझ लेना होगा कि यह असाधारण परिस्थिति है. वक्त नहीं है, बहुत सारे किंतु-परंतुओं के बारे में सोचने का. देश की सरकार की नाकामी पर नजर रखने के बजाए अपने घर की सरकार के आपात इंतजामों और प्रबंधन में थोड़ा बदलाव लाएं तो बात बन जाएगी. हमारे दरवाजे के बाहर वह कातिल वायरस खड़ा है. क्या हम सरकार को कोसते हुए घर के बाहर निकलने का दुस्साहस कर सकते हैं?
जो भी है, 21 दिन का मामला है. युद्ध काल है. हर शख्स मोर्चे पर खड़ा है. अपने जीवन के दुश्मन के सामने. घर में खुद को बंद कर लेना ही सबसे कारगर रणनीति है. इस बीमारी को परास्त करने में लॉकडाउन को 62 फीसदी कारगर माना गया है.
प्रधानमंत्री मोदी के भाषण के बाद कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने अपने खास अंदाज में कई सवाल कर डाले. औेर प्रधानमंत्री की आलोचना भी की ही. हालांकि वे यह भी जोड़ देते हैं कि हमें इस लॉकडाउन का पालन करना ही चाहिए, भले कितनी मुश्किल आए. चिदंबरम की नाराजगी, चिंताएं, आशंकाएं कुछ इस तरह हैं:
-लॉकडाउन की पैरवी करते रहे चिदंबरम उनके सुझाव पर सवाल उठाने वालों से कहते हैं कि यदि वे 21 दिन चुप रहेंगे तो अच्छा होगा.
-प्रधानमंत्री मोदी ने लॉकडाउन की घोषणा तो कर दी लेकिन अगले 21 दिन तक गरीबों के भरण-पोषण का इंतजाम कौन करेगा?
-जिस वित्तीय पैकेज का वादा किया गया था, उसे अंतिम रूप देने में 4 दिन से ज्यादा क्यों लग गए? जबकि ऐसे पैकेज को 4 घंटे में तैयार कर देने वाला टैलेंट हमारे पास मौजूद है.
-प्रधानमंत्री ने जो 15 हजार करोड़ रु. का जो पैकेज अनाउंस किया है, उससे क्या होगा? मैं कहता हूं सरकार को 5 लाख करोड़ रु का इंतजाम करना होगा अगले 4-5 महीने के लिए. जिससे आर्थिक संकट से निपटा जा सके.
- उम्मीद है कि प्रधानमंत्री जल्द ही आर्थिक पैकेज का एलान करेंगे और उन गरीबों, दिहाड़ी मजदूरों, खेतिहर कामगार की जेब में पैसा डालेंगे.
- फिर प्रधानमंत्री को अलग-अलग सेक्टर्स पर बढ़ते दबाव को भी देखना होगा. जैसे, 1 अप्रैल के बाद किसान अपनी फसल कैसे काटेंगे?
बेशक, चिदंबरम की चिंताएं गंभीर हैं. निश्चित ही मोदी सरकार को इन सवालों के जवाब ढूंढने होंगे, और वो ढूंढ रही होगी. लेकिन इन सभी मुद्दों पर हम तब इत्मीनान से बात और बहस कर पाएंगे, जब हम इस बात से आश्वस्त हो पाएंगे कि कोरोना वायरस का खतरा हमारे सिर से उतर गया है. इस बीच सरकार की सबसे बड़ी दो ही जिम्मेदारी होगी. पहली, लॉकडाउन का प्रभावी बनवाना. और दूसरा, उन गरीबों के लिए जरूरी इंतजाम करना ताकि उनका चूल्हा जलता रहे.
लॉकडाउन की सख्ती को लेकर जिसके भी मन में शंका-कुशंका हो, वह WHO के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर माइक रायन की बात सुन लें. माइक दुनिया के सामने स्पष्ट करते हैं कि इस महामारी और कोरोना वायरस की नियति भारत के उठाए गए कदम पर निर्भर है. जब तक इस बीमारी का पुख्ता इलाज सामने नहीं आ जाता, तब तक सोशल डिस्टेंसिंग को ही सबसे कारगर माना गया है. दुनिया से स्मॉलपॉक्स और पोलिया का नामोनिशान मिटा देने का श्रेय भारत को देते हुए भरोसा देते हैं कि दुनिया का यह दूसरा सबसे बड़ी आबादी वाला देश ही इस बीमारी के खिलाफ लड़ाई को नेतृत्व देगा.
इस महामारी के खिलाफ लड़ाई में समझदारी कहां है, यह समझना होगा. थोड़ी मुश्किलों का सामना करके यदि हम ये जंग जीत गए, तो बाद में भी आपस में लड़ लेंगे. अपनी सरकार की आलोचना कर लेंगे. उसकी तारीफ या बुराई कर लेंगे. आइए, घर में ही रहें और दिखाई ही न दें इस कोरोना वायरस को.
महत्वपूर्ण सूचना: प्रधानमंत्री मोदी के भाषण के तत्काल बाद गृह मंत्रालय ने अपने ट्वीट में घोषणा की कि लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ आपदा प्रबंधन कानून 2005 के तहत जुर्माने और सजा का प्रावधान किया गया है. तो जाहिर हो जाता है कि लॉकडाउन को हल्के मेें लेना भारी पड़ सकता है.
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