PM Modi ने तमाशा-पसंद देश की नब्ज पकड़ ली है
कोरोना वायरस लॉकडाउन के सप्ताहभर बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिर राष्ट्र को संबोधित किया. योजनाओं पर कोई बात नहीं की. हाल की घटनाओ पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. व्यवस्थाओं का कोई ज़िक़्र नहीं किया. पब्लिक को धमकाना भी नहीं कि कि यदि किसी ने अनुशासन का उल्लंघन या सौहार्द्र बिगाड़ने की कोशिश की तो उसकी ख़ैर नहीं!
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पूरे सम्मान और विनम्रता के साथ पूछना चाह रही हूँ कि क्या यह बोलना आवश्यक था कि "22 मार्च को जो हमने किया वह आज सारा विश्व दोहरा रहा है." जबकि सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों के साथ लगभग आधा देश जानता है कि सबसे पहले यह 'आयोजन' इटली में हुआ था तथा 14 मार्च को न्यूयॉर्क टाइम्स ने प्रमुखता से इस ख़बर को प्रकाशित भी किया था. पूरी ख़बर के लिए इस लिंक पर जायें.
हर बात का श्रेय लेने की आदत अच्छी नहीं!
वक्तव्य में भी बस थाली की जगह मोमबत्ती ने ले ली है. उन्होंने तमाशापसन्द देश की जनता की नब्ज़ पकड़ ली है. वे अच्छी तरह जानते हैं कि रूढ़िवाद और आस्था से भरे इस देश में जनता का मन बहलाने के लिए ऐसे ही खिलौने काम आते हैं. आशंका है कि पिछली बार थाली के बाद ढोल-मजीरे के साथ जो जुलूस निकला था इस बार उसकी जगह फुलझड़ी, अनार और लड़ी न ले ले. भावुकता में बहकर जनता क्या न कर दे!
योजनाओं पर कोई बात नहीं!
हाल की घटनाओ पर कोई प्रतिक्रिया नहीं!
व्यवस्थाओं का कोई ज़िक़्र नहीं!
अरे! पब्लिक को धमकाना था कि यदि किसी ने भी अनुशासन का उल्लंघन किया या सौहार्द्र बिगाड़ने की कोशिश की तो उसकी ख़ैर नहीं!
कुछ लोग तालियाँ इसलिए भी पीटेंगे कि घर बैठे तनख़्वाह मिलेगी. आलस किसे अच्छा नहीं लगता! आप कहें तो अभी एक महीने और भी सहर्ष बैठ सकते हैं. यद्यपि इस बात से कोई इंकार नहीं कि 'सोशल डिस्टैन्सिंग' समय की मांग है लेकिन विषय पर तो बोलिये कुछ!!
'दुनिया मे ऐसा कुछ नहीं है जो हम इस ताक़त से हासिल न कर पाएं.' यह वक्तव्य क्या दर्शाता है? कि अपन को भगवान भरोसे ही रहना है जी? जनता खुलकर जो दान दे रही है, उसका क्या होगा?
क्षमापूर्वक इतना ही कहना चाहूँगी कि माननीय की बात सुनकर इस बार क्रोध नहीं आया, बेहद दुःख हुआ.
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