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Updated: 15 नवम्बर, 2016 04:14 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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श्रवण कुमार की आत्मा आज पक्का रोई होगी. नजारा ही कुछ ऐसा था, जिसे देखकर आपके दो इमोशन्स एक साथ जागेंगे. पहले तो आपको दया आएगी और दूसरा बहुत तेज गुस्सा. आखिर 95 साल की महिला बैंक की लाइन में जो खड़ी है. खासकर ऐसी महिला जो अपने बेटे के घर रह रही हो.

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उस महिला के घरवालों को आप अंदर ही अंदर कोस रहे होंगे कि 'अरे जिस उम्र में लोग बुजुर्गों की सेवा करते हैं, उस उम्र में उसे बैंक की लाइन में लगना पड़ रहा है. कोई और भी तो जा सकता था नोट बदलने. ऐसी हालत में एक बूढ़ी औरत को तकलीफ दी. कोई बहुत भारी रकम तो थी नहीं कि हाथ का अंगूठा लगाना या फिर दस्तखत करना जरूरी हो, 4500 हजार रुपये के लिए बूढ़ी औरत को परेशान किया.' 

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पर आपके सारे इमोशन्स अचानक अफसोस नाम के दूसरे इमोशन में तब्दील हो जाते हैं, जब आपको पता चलता है कि ये 95 साल की महिला कोई और नहीं, बल्कि हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां हीरा बेन हैं. आखिर इसे एक पॉलिटिकल स्‍टंट क्‍यों न माना जाए? क्‍यों न मानें कि वे अपने फैसले को सही ठहराने के लिए अपनी बूढ़ी मां का सहारा ले रहे हैं ?

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इस देश के हर उस घर में जहां 60 साल से ऊपर के लोग रहते हैं, वहां का हर शख्स उस बुजुर्ग का ख्याल रखने के लिए के एक नैतिक जिम्मेदारी रखता है, उसके आराम का ख्याल रखता है. बूढ़े मां-बाप को तकलीफ न हो, उसके लिए वो खुद कष्ट सह लेता है. श्रवण कुमार जैसे न भी हों, लेकिन हमारे देश के लोग इतने भी गए गुजरे नहीं हैं कि चंद रुपयों के लिए 95 साल की बूढ़ी औरत को बैंक की लाइन में खड़ा कर दें. लेकिन ये नजारा देखकर उन सारी तस्वीरों पर भी सवाल खड़े होते हैं जो पिछले कई अवसरों पर हमें दिखाई जा रही हैं. मोदी जी अपने जन्मदिन पर आपनी मां का आशीर्वाद ले रहे हैं, मोदी जी अपनी माता जी को बागीचे की सैर करा रहे हैं. लेकिन आज जब वे लाइन में लगी हैं तो क्‍या संदेश जा रहा है- ‘श्रवण कुमार के अंधे मां-बाप आज जीवित होते तो उनहें भी लाइन में लगना पड़ता.’

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अब तस्‍वीर का दूसरा रुख करते हैं-

यदि ये मानें कि हीरा बा ने खुद फैसला किया हो कि वे लाइन में लगकर पैसे निकालेंगी और अपने बेटे के फैसले का साथ देंगी. तो इसे भी जायज नहीं ठहराया जा सकता. मोदी प्रधानमंत्री हैं. उन्‍हें किसी ब्रांड एम्‍बेसेडर की जरूरत नहीं है. और अपनी 95 साल की मां के रूप में तो बिलकुल नहीं. देशभर के जो लोग बैंक और एटीएम की लाइन में लगे हैं, उनके अपने विचार काफी हैं. लाइन में लगने की परेशानी लेकिन कालाधन के खिलाफ.

तो क्‍या कहें. मोदी जी भले अच्‍छे प्रधानमंत्री हों, लेकिन बेटे ?

लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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