'पहले पैसे लाओ, फिर इलाज होगा' ऐसा कहने वाले क्या डॅाक्टर कहे जाएंगे?
कलेजा ज़ख्मी हो जाता है जब कोई डॅाक्टर ये कह देता है कि पहले पैसा जमा कराओ तब इलाज होगा. इस बात पर क्रोध आता है ज़रूर आता है लेकिन इसका हल क्या है? ये भगवान स्वरूप डॅाक्टर आज हैवान क्यों बन गया है? ये बड़ी बीमारी है इस बीमारी का समाज से खात्मा होना ज़रूरी है वरना हर दिन पैसों के अभाव में न जाने कितनी जान जाती ही रहेंगी.
-
Total Shares
हमारे समाज ने जिसे भगवान का दर्जा दिया, जिसे फरिश्ता कहा, जिसे ईश्वर का दूत कहा, जिसे इतना मान सम्मान दिया कि उसके नाम के आगे 'साहब' जैसा भारी भरकम शब्द जोड़ा. बच्चे से लेकर बूढ़ा तक जब उसे पुकारता है तो कहता है 'डॅाक्टर साहब'. किसी भी डॅाक्टर के आगे साहब शब्द का इस्तेमाल करना ज़रूरी नहीं है, न कोई जोर ज़बरदस्ती है न ही किसी किताब में लिखा हुआ है लेकिन सब डॅाक्टर को हमेशा साहब बोलकर सम्मानित करते हैं. इतना मान सम्मान मिलने के बावजूद अब ये भगवान भगवान नहीं रह गए हैं. अब डॅाक्टर एक फरिश्ता नहीं शैतान बन चुका है. जो पैसों के लिए किसी के शरीर को नोच भी सकता है और किसी की जान को भी लील सकता है. कलयुग का ये भगवान अब शैतान बन चुका है. जो किसी की जान बचाने के बजाए उसकी सांसो का व्यापार करता हुआ नज़र आ रहा है. हालांकि अभी भी हमारे समाज में ऐसे डॅाक्टर मौजूद हैं जो वाकई भगवान स्वरूप हैं, उनको फरिश्ता कहा जा सकता है लेकिन उनकी तादाद अब गिनती की रह गई है. जबकि दूसरी ओर शैतानी रूप अख्तियार कर चुके डॅाक्टरों की तादाद में दिन प्रतिदिन वृद्धि होती ही जा रही है. आप भी या आपके कोई परिचित कभी न कभी इन शैतानों के भुक्तभोगी ज़रूर हुए होंगे.
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में इलाज के नाम पर जो डॉक्टर्स ने मरीज के साथ किया वो है
आगे की बात करने से पहले ज़िक्र करता हूं प्रयागराज शहर में हुई मानवता और इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली घटना की. जहां किस कद्र पैसों की लालच में एक मासूम बच्ची की ज़िंदगी को लील लिया गया. एक बहुत पुरानी कहावत है कि विदेशों में सिर्फ लोग बसा करते हैं हमारे भारत में तो इंसानियत बसती है. उसी इंसानियत की पोल पट्टी हमारे देश में आए दिन खुला करती है. प्रयागराज में भी एक 3 साल की बच्ची के साथ जो हुआ वह इंसानियत के दायरे में तो कतई नहीं आता है.
मामला दरअसल यूं है कि एक 3 साल की बच्ची जिसका नाम खुशी था, उसके पेट में दर्द उठा तो उसे शहर के ही एक अस्पताल में भर्ती कर दिया गया. डॅाक्टरों ने बच्ची की आंत में इन्फेकशन बताया और आपरेशन किया. आपरेशन के बाद टांके वाली जगह पर पस पड़ गई तो 2-4 दिन बाद फिर से आपरेशन किया गया. बच्ची के पिता का कहना है इस आपरेशन के लिए उन्होंने डेढ़ लाख रुपये अपने दो बिस्वा खेत बेचकर और रिश्तेदारों से कर्जा लेकर चुकाए. लेकिन अस्पताल प्रशासन ने पांच लाख रुपये की डीमांड की थी.
जब वह रुपये नहीं दे सका तो अस्पताल प्रशासन ने उनकी 3 साल की बच्ची को फटे पेट के साथ अस्पताल से बाहर निकाल दिया. उनकी बच्ची का जहां आपरेशन हुआ उस जगह पर टांका तक नहीं लगाया गया ऐसे ही चिरे हुए पेट के साथ उनकी बेटी को अस्पताल से बाहर कर दिया गया. वह बेबस होकर एक अस्पताल से लेकर दूसरे अस्पताल तक का चक्कर काटते रहे लेकिन किसी भी अस्पताल ने उऩकी बच्ची को एडमिट नहीं किया. फिर आखिरकार इलाज के अभाव में उनकी बच्ची ज़िंदगी से जंग हार गई और दम तोड़ दिया.
ये एक खुशी की कहानी नहीं है ये हर दिन हर शहर का किस्सा है. अब न तो अस्पताल जाना आसान है और न ही अपना ठीक ढ़ंग से इलाज करा पाना. जिस देश में गरीबों के इलाज के लिए आयुष्मान भारत योजना सहित दर्जनों योजनाएं और कार्ड जारी हों उस देश में ऐसे हर दिन कितनी मौत सिर्फ इसलिए हो जाती है क्योंकि उन्हें वक्त पर इलाज नहीं मिल पाता है.
आज के दौर में अस्पताल खोलना भी एक व्यापार बन चुका है, इलाज करना भी व्यापार है और इसका व्यापार कर रहे लोग ये भूल चुके हैं कि वह इंसान भी हैं. इंसानियत क्या होती है यह वह लोग नहीं समझ पाते हैं जो हैवान बन चुके हैं. जो अस्पताल कल तक मंदिर हुआ करते थे और जो डाक्टर कल तक भगवान हुआ करते थे वह अस्पताल आज एक मॅाल में तब्दील हो चुका है.
डॅाक्टर उस माल में बैठा हुआ दुकानदार, जो आने वाले हर मरीज़ या यूं कहें कि हर ग्राहक से वसूली कर लेना चाहता है, वह अपने अस्पताल से लेकर अपनी लग्जरी लाइफ तक का सारा खर्चा मरीज़ों पर डाका डालकर निकाल लेना चाहता है. डॅाक्टरों का धंधा किस कद्र फलता फूलता जा रहा है ये आप खुद सामने देखते होंगे.
हम आप एक ही समाज में तो रहते हैं और अब ये धंधा अपने पूरे शबाब के साथ जारी है. हमारे बीच से हर दिन नजाने कितनी खुशी पैसों की तंगी के कारण ही तो दम तोड़ दिया करती हैं. इस समाज में ऐसे डॅाक्टरों का ज़रूर सम्मान कीजिए जो वाकई ईश्वर के दूत बने हुए हैं लेकिन ऐसे डाक्टरों का सामाजिक बहिष्कार भी ज़रूर कीजिए जो पैसों की भूख में अपनी दुकान खोले हुए बैठे हुए हों.
ये भी पढ़ें -
पितृसत्ता का सुख भोग रहे पुरुषों, आइये वुमंस डे पर थोड़ा अफसोस करें!
Women's day: मां की ममता और पत्नी जैसा समर्पण लिए पुरुषों को भी बधाई
महिला दिवस पर साहिर लुधियानवी की बात: 'औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने...'!
आपकी राय