कैलिफोर्निया में हुआ खूनखराबा क्यों आम गोलीबारी नहीं है...
रिजवान फारुक हाल ही में सऊदी अरब गया था और जब वहां से लौटा तो उसके साथ एक महिला भी थी, जिससे उसकी सिर्फ ऑनलाइन दोस्ती थी. इसके अलावा गोलीबारी के दौरान...
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14 दिसंबर 2012 - सैंडी हूक एलिमेंट्री स्कूल, कनेटिकट - 27 लोगों की मौत
2 दिसंबर 2015 - सैन बर्नार्डिनो, कैलिफोर्निया - 14 की मौत, 17 घायल
अमेरिकी इतिहास में यह दोनों दिन दर्ज हो चुका है. दोनों दिन न तो आपस में पूरी तरह जुड़े हैं न ही पूरी तरह अलग - दोनों घटनाओं में हमलावर और उसकी मंशा में कोई मेल नहीं है लेकिन दोनों 'मास-शूटिंग' की घटना से संबंधित हैं. दोनों घटनाएं अमेरिकी गन-लॉ के इर्द-गिर्द ऐसी गूंथी हुई हैं कि हो सकता है यह वहां का चुनावी मुद्दा बन जाए. एक तरफ राष्ट्रपति बराक ओबामा अपने देश में होने वाली 'मास-शूटिंग' से परेशान हैं तो दूसरी ओर कैलिफोर्निया के दोनों शूटरों की पहचान कर ली गई है - रिजवान फारुक और तशफीन मलिक. गोलीबारी की घटना और इसके पैटर्न को देखते हुए पुलिस ने 'मास-शूटिंग' से परे आतंकी घटना से इनकार नहीं किया है.
सैन बर्नार्डिनो की पुलिस के अनुसार यह घटना 'मास-शूटिंग' या आतंकी कार्रवाई दोनों में से कुछ भी हो सकती है. लेकिन यह घटना अमेरिकी समाज में आए दिन होने वाली आम गोलीबारी सी प्रतीत नहीं होती है क्योंकि...
- हमलावरों ने अंधाधुंध गोलियां चलाईं, लोगों को मारा और भाग गए. अगर वे सिर्फ यही करते तो इसे आम गोलीबारी ही समझा जाता. लेकिन इसके अलावा उन्होंने कई जगहों पर बम भी लगाया, जिसे बाद में पुलिस ने डिएक्टिवेट कर दिया.
- आम गोलीबारी के ज्यादातर मामलों में हमलावर या तो खुद को मार लेता है या सरेंडर कर देता है या डर कर कहीं छुपा हुआ होता है और पकड़ा जाता है. लेकिन यहां ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. पुलिस की सर्च टीम ने जब दोनों हमलावरों को ढूंढ निकाला तो सरेंडर करने के बजाय उन्होंने पुलिस पर ही गोलियां चला दीं. इसमें एक पुलिसकर्मी घायल भी हुआ.
- हमलावरों ने खूनखराबा करने के लिए जिस तरह के कपड़े पहन रखे थे, वो आतंकी या आर्मी की स्टाइल के थे. मतलब यह नस्लीय भेदभाव, नौकरी का दबाव या मानसिक संतुलन का बिगड़ना नहीं दर्शाता है.
- रिजवान फारुक हाल ही में सऊदी अरब गया था और जब वहां से लौटा तो उसके साथ एक महिला भी थी, जिससे उसकी सिर्फ ऑनलाइन दोस्ती थी.
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