16 बरस की उम्र में शादी की परमिशन मुस्लिम लड़कियों के खिलाफ हथियार है
क्या भारत का संविधान शरिया में बनाए गए कानून के हिसाब से चलेगा, तब तो किसी दिन यह भी बोल दिया जाएगा कि 12 साल की लड़की की भी शादी हो सकती है?
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सोलवां चढ जाए सावन तू क्या हर लड़की दिखे फूलों की कली...लेकिन 16 बरस की बाली उमर में शादी करने की परमिशन देना क्या मुस्लिम लड़कियों के हित में होगा? 16 साल की उम्र में बच्ची होती होती है. उसे लड़की बोलने में भी लोग हिचकिचा जाते हैं ऐसे में वह बालिग कैसे हो सकती है?
जब देश एक है तो यहां की बेटियों के लिए अलग-अलग कानून क्यों? क्या यह पक्षपात नहीं होगा? हमें कोर्ट का सम्मान करना चाहिए, इसके फैसले को मानना चाहिए लेकिन क्या धर्म कानून से ऊपर हो गया? क्या भारत का संविधान शरिया में बनाए गए कानून के हिसाब से चलेगा, तब तो किसी दिन यह भी बोल दिया जाएगा कि 12 साल की लड़की की भी शादी हो सकती है?
अच्छा शादी के लिए तो 16 साल की उम्र मुस्लिम लड़की के लिए सही मान ली गई लेकिन अगर कोई लड़की इस उम्र में कोई अपराध/ गुनाह करती है तो क्या उसे नाबालिग मानकर छोड़ दिया जाएगा...
अगर 16 साल की उम्र में लड़की गर्भवती हो गई तो फिर? उसकी हेल्थ तो गई भाड़ में...और उसकी पढ़ाई का क्या?
लड़कियों की शादी की सही उम्र क्या होनी चाहिए 18 या 21? इस मसले पर अभी काननू बना लेकिन पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि 16 साल से ऊपर की मुस्लिम लड़की अपने मन से शादी कर सकती है. कानून भी उसे रोक नहीं सकता क्योंकि मुस्लिम लड़कियों की शादी मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत होती है. कोर्ट ने फैसला देते वक्त इस्लामिक कानून का हवाला दिया है, जिसके अनुसार, किशोरावस्था में यौन लक्षण उभरने के साथ ही लड़का-लड़की को वयस्क मन लिया जाता है. इसके साथ ही कोर्ट ने पठानकोट के एसएसपी को जोड़े की सुरक्षा के लिए निर्देश दिया.
16 साल की उम्र में 10वीं या 11वी में होते हैं, क्या ये बच्चे अपने योग्य जीवनसाथी चुनने में सक्षम होंगे? क्या उन्हें दुनियादारी की समझ होगी? इस उम्र को तो लड़कपन कहा जाता है. जहां बच्चों को गाइड करने की जररूत होती है. टीन एज की उम्र में तो वे खुद को समझ रहे होते हैं, उनका शारीरिक और मानसिक विकास हो रहा होता है ऐसे में वे शादी करके कौन सा अपना भला कर लेंगे? लड़कों की शादी की उम्र 21 और लड़कियों की 16...ये कहां का कानून है जो लड़का-लड़की में इतना भेदभाव करता है...
पहले तो हमें इस फैसले पर यकीन नहीं हुआ ना लेकिन पड़ताल की तो पता चला कि यही सच है. जिसे जस्टिस जसजीत सिंह बेदी की बेंच ने सुनाया है. एक तरफ केंद्र सरकार लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 से बढ़ाकर 21 लड़कों के समान करना चाहती है तभी दूसरी ओर इस तरह का फैसला सुनने को मिलता है.
असल में कोर्ट एक मुस्लिम जोड़े की सुरक्षा याचिका पर सुनवाई कर रहा था. जिसमें जोड़े का कहना था कि हम एक-दूसरे को प्यार करते हैं और परिवार वाले के खिलाफ जाकर हमने इस्लामिक रीति-रिवाज के तहत निकाह कर लिया है. हमारे परिवार वाले इस शादी के खिलाफ हैं. हमारी जान को खतरा है. अब यहां लड़के की उम्र 21 साल है और लड़की सिर्फ 16 साल की है. मुस्लिम कानून में माना जाता है कि लड़का-लड़की 15 साल में बालिग हो जाते हैं. उन्हें साथ जीने का अधिकार है.
मान लीजिए अगर 16 साल की उम्र में लड़की गर्भवती हो गई तो फिर? इस उम्र में वह पति, घर और बच्चे की जिम्मेदारी संभाल लेगी? उसकी हेल्थ तो गई भाड़ में...और उसकी पढ़ाई का क्या? कहने को आसान है कि सब हो जाता है लेकिन सब इतना आसान नहीं होता है.
एक बार को अगर आप इसे स्पेशल केस मानकर छोड़ भी देते हैं तो भी इसका क्या सबूत है कि आने वाले दिनों में मुस्लिम लड़कियों की शादी 16 की उम्र में नहीं होगी? जीवन साथी चुनने का अधिकार सभी को मिलना चाहिए लेकिन 15, 16 साल की उम्र में कोई क्या फैसला ले पाएगा?
हमें भी पता है कि ऐसी कितनी लड़कियां हैं जिनकी शादी उनकी मर्जी से होती है? अधिकतर लोग लड़कियों की शादी उसके खिलाफ ही कराते हैं. किसी को पढ़ने का मन है तो कहते हैं कि शादी के बाद ससुराल जाकर पढ़ लेना. कोई लड़की किसी दूसरी जाति के लड़के से प्यार कर ले तो जबरन उसकी शादी अपनी बिरादरी में करा दी जाती है.
अरे यह तो बालिग लड़कियों की कहानी है. ऐसे में अगर इस फैसले को लकीर की फकीर और अपना अधिकरा मानकर परिवार वाले 16 की उम्र में बच्चियों की शादी कराकर अपना बोझा हल्का करना चाहें तो? क्या तब उनके अधिकारों का हनन नहीं होगा?
कोर्ट के इस फैसले पर लोगों का क्या रिएक्शन रहा-
कितना बेहूदा मज़ाक है.. कोर्ट भी अब शरिया से चलेगा? समानता का अधिकार मौलिक अधिकार होता है, मौलिक अधिकारों के ऊपर और कोई कानून नहीं होते. शादी की उम्र सभी के लिए 18-21 साल है, और वही रहनी चाहिए.
धर्म आधारित सभी कानून रद्द होने चाहिए और धर्म को कानून से ऊपर समझने वाले जजों के लिये न्यायपालिका में जगह नहीं होना चाहिए. ये संविधान में कहां लिखा है? और अपराध करते समय मुस्लिम लड़का-लड़की कितनी उम्र में बालिग मानी जाएंगे? कोर्ट पुनर्विचार करे.
देश की लड़कियों की शादी की उम्र अलग-अलग ये तो गलत बात है. क्या बीता होगा उन मुस्लिम लड़कियों पर जो पढ़ना चाहती हैं और उनकी इतनी छोटी उमर ही शादी करा दी जाती है, अब देश भी धर्म के हिसाब से चलेगा...मतलब यह संविधान के दायर से बाहर है.
अच्छा, माने लड़की 16 की हो लेकिन लड़का 30, 35 और 55 का भी हो सकता है. वाह, ऐसे होगा लड़कियों का कल्याण...जिस उम्र को 21 होना था वह मुस्लिम धर्म के लिए घटकर 16 हो गई.
वहीं कुछ मुस्लिम लोग इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं. बोल रहे हैं कि न्यायालय के इस आदेश का सम्मान करना चाहिए...कोर्ट ने सही कहा है कि 16 की उम्र में लड़कियों की शादी कराई जा सकती है. वे इस्लामिक कानून के हिसाब से बालिग मानी जाती हैं.
माने अब कई मुस्लिम लड़कियों की शादी उनके बचपने में ही कराई जा सकती है, और कोई कुछ कर भी नहीं सकता...खैर, इस पर आपकी क्या राय है? क्या इस फैसले से मुस्लिम लड़कियों को परेशानी नहीं होगी? क्या यह फैसला उनकी भलाई के लिए होगा?
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