राफेल मामले में सभी सवालों के जवाब आखिर मिल ही गए!
राफेल के मामले में Dssault के सीईओ द्वारा दिए गए जवाब ने शायद नरेंद्र मोदी सरकार का आधा काम आसान कर दिया है. कुछ कुछ ऐसा लग रहा है जैसे सुप्रीम कोर्ट के सभी सवालों के जवाब एरिक ट्रैपियर दे गए.
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देश का राफेल मामला सुलझता हुआ दिखता है और इसमें फिर कोई न कोई अड़ंगा आ ही जाता है. कांग्रेस की तरफ से लाख कोशिश की गई कि राफेल मामला बोफोर्स घोटाले की तरह बड़ा बन जाए, लेकिन ऐसा लगता है कि जैसे मोदी सरकार की मुश्किलें एक-एक कर अपने आप ही हल होती दिख रही हैं. एक तरफ तो मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है और दूसरी तरफ सरकार के अलावा, एयरफोर्स चीफ से लेकर डसॉल्ट कंपनी के सीईओ तक सभी अपनी-अपनी तरफ से बयान देने में जुटे हुए हैं कि NDA की डील बेहतर है और यूपीए द्वारा लगाए गए इल्जाम बेबुनियाद हैं.
डसॉल्ट कंपनी के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने लंबे समय से मोदी सरकार की परेशानी बने हुए सवाल का जवाब दे दिया. वो सवाल था कि आखिर अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस को ही क्यों चुना गया इस सौदे के लिए.
सुप्रीम कोर्ट और यूपीए के नेताओं ने सरकार से कई सारे सवाल राफेल मामले में पूछे थे और इनका जवाब अपने आप ही मिलता जा रहा है.
राफेल मामले में बहुत सारे सवालों के जवाब डसॉल्ट के सीईओ दे गए.
1. आखिर राफेल जहाजों के दाम कैसे बढ़ गए?
इस सवाल के जवाब में एरिक ट्रैपियर ने कहा कि 36 विमानों की कीमत बिल्कुल उतनी ही है, जितनी 18 तैयार विमानों की तय की गई थी. 36 दरअसल 18 का दोगुना होता है, सो, जहां तक मेरी बात है, कीमत भी दोगुनी होनी चाहिए थी. लेकिन चूंकि यह सरकार से सरकार के बीच की बातचीत थी, इसलिए कीमतें उन्होंने तय की, और मुझे भी कीमत को नौ फीसदी कम करना पड़ा.
साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि राफेल मामले में 18 विमान भारत में बनने थे, लेकिन अब जो विमान आएंगे वो पूरी तरह से बने हुए आएंगे. कितना समय लगता भारत के लेबर को राफेल बनाने में और कितनी तकनीक लगती. उसका खर्च भी बढ़ता, लेकिन अब तैयार विमान ही दिए जा रहे हैं.
#WATCH Dassault CEO Eric Trappier clarifies on the pricing of the #Rafale aircrft pic.twitter.com/E21EumrQAt
— ANI (@ANI) November 13, 2018
2. आखिर 126 से 36 विमान कैसे हो गए डील में?
डसॉल्ट कंपनी के सीईओ का कहना है कि शुरुआती डील 126 विमानों की थी जिसमें बहुत देर हो रही थी और तुरंत भारत को विमान चाहिए थे इसलिए ये डील नए सिरे से हुई और 36 विमानों को तुरंत पहुंचाने की बात की गई. डील के हिसाब से अगले साल तक भारतीय एयर फोर्स को विमान मिल जाएंगे.
The first delivery( of #rafale) to the IAF is going to take place next year in September as per the contract. It is totally in time: Dassault CEO Eric Trappier pic.twitter.com/l9OhImWu7W
— ANI (@ANI) November 13, 2018
3. क्या अनिल अंबानी की कंपनी को गलत तरीके से चुना गया है?
वहीं रिलायंस और मुकेश को लेकर लगे आरोपों पर उन्होंने कहा, 'अंबानी को हमने खुद चुना था. हमारे पास रिलायंस के अलावा भी 30 पार्टनर पहले से हैं. भारतीय वायुसेना सौदे का समर्थन कर रही है, क्योंकि उन्हें अपनी रक्षा प्रणाली को मज़बूत बनाए रखने के लिए लड़ाकू विमानों की ज़रूरत है.
We chose Ambani by ourselves. We already have 30 partners other than Reliance. The IAF is supporting the deal because they need the fighter jets for their own defence to be at the top: Dassault CEO Eric Trappier on allegations of corruption in the Reliance-Dassault JV deal pic.twitter.com/GPzjadkWz8
— ANI (@ANI) November 13, 2018
हम पैसा रिलायंस को नहीं दे रहे. पैसा दोनों को जा रहा है और डसॉल्ट के इंजीनियर और वर्कर हर बात पर लीड ले रहे हैं.
We are not putting the money in Reliance. The money is going into the JV (Dassault-Reliance). Engineers and workers from Dassault are taking the lead as far as the industrial part of the deal is concerned: Dassault CEO Eric Trappier #Rafale pic.twitter.com/QQoNjJg2CJ
— ANI (@ANI) November 13, 2018
4. क्या पार्टी को फायदा पहुंचाया जा रहा है?
डसॉल्ट कंपनी के सीईओ ने कहा कि वो किसी पार्टी के साथ नहीं काम कर रहे हैं. उन्होंने नेहरू के साथ भी काम किया 1953 में और उन्हें भी डील दी. हम इंडियन एयरफोर्स और इंडियन सरकार को वो दे रहे हैं जिनकी उन्हें जरूरत है. यही सबसे जरूरी है.
Have long experience with Congress. Our first deal was with India in 1953 was during Nehru, later other PMs. We are not working for any party, we are supplying strategic products to IAF and Indian Govt. That’s what is most important: Dassault CEO Eric Trappier #Rafale pic.twitter.com/vB0D0jnIKa
— ANI (@ANI) November 13, 2018
5. सच छुपाया जा रहा है?
डसॉल्ट के सीईओ का कहना था कि उन्हें पता है कि विवाद होते हैं और किस तरह से डोमेस्टिक और पॉलिटिकल फाइट होती है. जैसे ही इलेक्शन होने वाले होते हैं. मेरे लिए जो जरूरी है वो है सच और ये एक बहुत साफ डील है और भारतीय एयर फोर्स इससे खुश है.
I know there are some controversies and I know that it is a kind of domestic political fight, with elections it is true in many countries. What is important for me is the truth and the truth is that it is a clean deal and the IAF is happy with this deal:Dassault CEO Eric Trappier pic.twitter.com/73vdB81Lsi
— ANI (@ANI) November 13, 2018
6. राहुल गांधी का आरोप था कि डसॉल्ट के सीईओ झूठ बोल रहे हैं और नरेंद्र मोदी को बचा रहे हैं.
इसके जवाब में सीईओ साहब का कहना था कि वो झूठ नहीं बोलते और वो किसी पार्टी के लिए नहीं बल्कि भारत के लिए काम कर रहे हैं.
#WATCH: 'Have long experience with Congress. Our first deal with India was in 1953 during Nehru, later other PMs. We are not working for any party, we are supplying strategic products to IAF and Indian Govt. That’s what is most important' says Dassault CEO Eric Trappier #Rafale pic.twitter.com/9KwqFGsjGK
— ANI (@ANI) November 13, 2018
राफेल विमानों के मामले में अनिल अंबानी की कंपनी को लेकर राहुल गांधी ने बहुत कुछ कहा और बहुत सारे आरोप लगाए. राफेल मामले में ये भी कहा गया कि HAL को हटाकर अंबानी की कंपनी को किसी कारण से ही रखा गया और इस मामले को कांग्रेस बहुत जोर देने के लिए लगी हुई है. लेकिन हर सवाल का जवाब मिलता जा रहा है. अगर आपको याद हो तो शुरुआती दौर में राहुल गांधी ने संसद में दो आरोप लगाए थे जिसमें ये कहा गया था कि HAL की जगह रिलायंस को ऑफसेट पार्टनर बनाया गया और दूसरा ये कि राफेल की कीमत 300% बढ़ गई. पर इन आरोपों को लेकर भी कुछ तर्क हैं जो पिछले कुछ समय से सरकार दे रही है और जहां तक कीमत बढ़ने का सवाल है तो डसॉल्ट के सीईओ अपना पक्ष रख ही चुके हैं. पर अगर उन सवालों को दोहराया जाए तो कुछ तर्क सामने होंगे.
आखिर HAL क्यों नहीं?
शुरुआती दौर में इस डील का हिस्सा हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को ऑफसेट की भूमिका निभानी थी, लेकिन यकीनन इस विवाद का हिस्सा रिलायंस कंपनी बनी क्योंकि पहली डील में से HAL को हटा दिया गया.
इस विवाद पर एक तर्क दिया जाता है कि रिलायंस ग्रुप (अनिल अंबानी वाला), L&T, कालयानी, टाटा और भारत फोर्ज असल में ऐसी भारतीय कंपनियां हैं जो डिफेंस उपकरण बना रही हैं और फ्रेंच कंपनी Dassault ने रिलायंस को अपना ऑफसेट पार्टनर चुना. HAL का काम हवाई जहाज बनाना है, लेकिन जब जहाज बन ही नहीं रहा तो फिर उस कंपनी का डील में रहना थोड़ा अजीब है.
क्या वाकई राफेल की कीमत 300% बढ़ गई?
Institute of peace & conflict studies के एक सीनियर राइटर अभीजीत अइयर-मित्रा ने इकोनॉमिक टाइम्स के लिए लिखे एक आर्टिकल में इसका जवाब बखूबी दिया है. अभीजीत लंबे समय से इस डील पर रिसर्च कर रहे हैं.
अप्रैल 2012 में अभीजीत ने अपने इंस्टिट्यूट की एक रिपोर्ट में बताया था कि फ्रेंच सिनेट के आंकड़ों के मुताबिक राफेल प्लेन की कीमत 2012 मिलियन डॉलर से कम हो ही नहीं सकती थी. लेकिन 2012 में भी मीडिया ने 126 प्लेन का दाम 10.4 बिलियन बताया था जिसका मतलब है 82.5 मिलियन डॉलर. जो असल में मुमकिन था ही नहीं.
अप्रैल 2013 तक मीडिया रिपोर्ट्स में राफेल का दाम 50% बढ़ गया और डील का दाम 15 बिलियन बताया जाने लगा यानी 119 मिलियन डॉलर प्रति विमान.
जनवरी 2014 तक ये कीमत 300 प्रतिशत बढ़ गई थी और जहाज की कीमत 238 मिलियन डॉलर प्रति यूनिट हो गई थी यानी डील 30 बिलियन डॉलर हो गई थी. ये कीमत 126 विमानों की थी. भारत सरकार द्वारा जो कीमत दी गई वो थी वो थी 8.7 बिलियन डॉलर 36 विमानों के लिए यानी 243 मिलियन डॉलर प्रति विमान.
जो कीमत यूपीए सरकार ने आखिर में मोल-भाव करके तय की थी अंत में सरकार ने उससे भी 5 मिलियन डॉलर ज्यादा चुकाए, लेकिन इससे इस बात का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि क्यों राफेल जहाजों की संख्या कम हो गई. अब इसमें भारत की स्थिती पर आधारित बदलावों को जोड़ लिया जाए, पांच साल की मेंटेनेंस को जोड़ लिया जाए और 50% ऑफसेट अग्रीमेंट को भी जोड़ लिया जाए तो भारत सरकार की डील बुरी नहीं है.
इसकी तुलना सबसे बेहतर अगर करनी है तो ऐसे करें कि कतर ने राफेल विमान 292 मिलियन डॉलर प्रति विमान के दाम पर खरीदे. इसमें मेंटेनेंस और ट्रेनिंग पैकेज जुड़ा हुआ है, लेकिन ऑफसेट नहीं जुड़ा. ईजिप्ट ने इसे 246 मिलियन डॉलर प्रति विमान के दाम पर खरीदा, लेकिन भारत की डील 243 मिलियन डॉलर प्रति विमान थी. इसमें कतर की तरह महंगा पैकेज नहीं जुड़ा था, लेकिन भारत के हिसाब से बदलाव और 50% ऑफसेट जुड़ा था.
रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- India and the Rafale, Anatomy of a Bad Deal
तो किसकी बात सुनी जाए?
किसकी बात सुनी जाए इसके बारे में अभी कुछ भी कहना गलत होगा. हर पार्टी अपने-अपने तर्क दे रही है, लेकिन डसॉल्ट कंपनी से लेकर एयरफोर्स तक सभी मोदी सरकार के साथ हैं और ये कांग्रेस के लिए थोड़ी अजीब बात हो सकती है. हालांकि, अभी भी कई बातें खुलनी बाकी हैं तो ये राफेल मामला अब आगे और कितना बाढ़ेगा ये तो अभी नहीं पता पर सुप्रीम कोर्ट के दख्ल के बाद ऐसा लग रहा है कि मोदी सरकार की तरफ से अभी और जवाब मिलने बाकी हैं. फिलहाल तो राफेल मामले का सबसे बड़ा सवाल कि आखिर अनिल अंबानी ही क्यों और कीमत कैसे बढ़ी इनके जवाब तो डसॉल्ट के सीईओ दे चुके हैं. उन्हें देखकर ऐसा लग रहा है जैसे किसी ने खून का इल्जाम अपने सिर ले लिया और ये कह दिया कि इस डील का सारा दारोमदार तो मेरे ऊपर था.
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