काश हम अपनी विरासत को संभाल पाते- ढह रहा है रायसेन का किला
इस किले पर पिछले हजार सालों में बहुत से आक्रमणकारियों ने चढ़ाई की और उनसे जूझता यह किला अपनी पूरी आन-बान-शान से खड़ा रहा. लेकिन यह किला अपने आक्रमणकारियों से उतना आहत नहीं हुआ होगा जितना आजकल के तथाकथित सभ्य समाज से हुआ है.
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अपनी विरासत को संभालना बहुत कठिन नहीं होता लेकिन इसके लिए एक सोच चाहिए जो कि दुर्भाग्य से हमारे हिन्दुस्तान में आजकल कम देखने को मिल रही है. और इसके पीछे राजनेता तो जिम्मेदार हैं ही, साथ ही हमारा समाज भी सबसे ज्यादा जिम्मेदार है जिसे मंदिर मस्जिद और गाय गोबर से फुर्सत मिलती नहीं दिख रही. मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 50 किमी दूर स्थित है रायसेन का किला. ये रायसेन जिले में ही पड़ता है और पिछली कई शताब्दियों से खड़ा अपने गौरवशाली अतीत की ढहती हुई कहानी कहता है.
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 50 किमी दूर स्थित है रायसेन का किला
इसका निर्माण लगभग हजार वर्ष पहले हुआ था और यह कुछ खास वजहों से बहुत उल्लेखनीय है. इस महल का वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बहुत अद्भुत है और पूरे महल का पानी नालियों से होता हुआ महल के बीचोंबीच इकठ्ठा हो जाता है. और इसका ईको सिस्टम भी हैरान कर देने वाला है. इसका नाम राजा राय सिंह के चलते रायसेन पड़ा और किले की दीवारों में शिलालेख भी विद्यमान हैं.
किसी और देश में कोई इस तरह का ऐतिहासिक महल होता तो उसका न सिर्फ बेहतरीन रखरखाव किया जाता बल्कि उसे एक दर्शनीय स्थल के रूप में भी विकसित करके ज्यादा से ज्यादा पर्यटकों को वहां आने पर मजबूर किया जाता. लेकिन हमारे देश के हृदय प्रदेश, मध्य प्रदेश जहां के पूर्व मुख्यमंत्री यह हास्यास्पद दावा करते रहे हैं कि उनके प्रदेश की सड़कें अमेरिका से भी बेहतर हैं, में इसका कोई पुरसाहाल नहीं है.
सरकार की अनदेखी की मार झेल रहा है रायसेन का किला
रायसेन पहुंचने के लिए भोपाल से आपको सड़क मार्ग से ही जाना होगा और इस रास्ते की सड़कें इतनी खस्ताहाल हैं कि आप अगर कमर दर्द से परेशान हैं तो वह जड़ से ठीक हो सकता है. मुख्य सड़क से बाईं तरफ एक बोर्ड लगा है जो बताता है कि आप इस रास्ते से रायसेन के किले तक पहुंच सकते हैं. लेकिन जैसे ही आप मुख्य सड़क से मुड़ते हैं, आगे की सड़क अतिक्रमण से लगभग आधी रह गयी है. आगे आप कुछ दूर तक ऊपर चढ़ते जाते हैं और आपको किले की दीवारें दिखाई देने लगती हैं. यहां अपना वाहन खड़ा करके आपको अगले आधे किलोमीटर की चढ़ाई करनी पड़ती है.
आप किसी भी ऐतिहासिक किले या किसी अन्य भवन को देखने जाते हैं जिसे भारतीय पुरातत्व विभाग ने भी संरक्षण के लिए अपने अधीन किया हो तो आप उम्मीद करेंगे कि वहां कुछ कर्मचारी जरूर होंगे जो उस जगह की देखभाल और साज संभल करते हों. लेकिन इस किले पर न तो कोई कर्मचारी, न किसी विभाग का कोई अधिकारी मिला जो इस धरोहर की देखभाल करने वाला हो. किले के ऊपर काफी भीड़ थी और कई स्कूल से बच्चे और परिवार भी आए हुए थे, जो अपनी छुट्टी को पिकनिक मनाते हुए बिता रहे थे. लेकिन सबसे बड़ा खतरा यह था कि जर्जर और टूट रहे महल के खतरनाक हिस्सों पर न तो कोई जाने की मनाही करने वाला था और न ही उन्हें नुक्सान पहुंचाने से रोकने वाला.
किले के कई हिस्से जर्जर हो रहे हैं, लेकिन कोई चेतावनी तक नहीं
आप जहां चाहें जाइए, जो मर्जी कीजिये और खूब गन्दगी करिये ताकि अगले कुछ महीनों में लोग आने से ही कतराने लगें, लेकिन मध्य प्रदेश सरकार या केंद्र सरकार को कोई मतलब नहीं है. इस किले पर पिछले हजार सालों में बहुत से आक्रमणकारियों ने चढ़ाई की और उनसे जूझता यह किला अपनी पूरी आन-बान-शान से खड़ा रहा. लेकिन यह किला अपने आक्रमणकारियों से उतना आहत नहीं हुआ होगा जितना आजकल के तथाकथित सभ्य समाज से हुआ है.
ऐतिहासिक धरोहर पर अपने जानवर चराने आते हैं लोग
किले के दूसरी तरफ से लोगों के आने जाने के लिए पगडण्डी है जिससे आस-पास के गांव के लोग मजे में आते जाते हैं. और सबसे बड़ी बात, अपनी गाय, भैंस और बकरियों को लोग मजे में लेकर आते हैं, चराते हैं और वहां लगे पेड़ पौधों को भी ईंधन के लिए काट कर ले जाते हैं.
शेरशाह सूरी ने किले को जीतने के लिए सिक्कों को गलवाकर तोपें बनवायी थीं और वह ऐतिहासिक महत्त्व की तोपें किले के एक हिस्से में पड़ी हुई हैं. इस खराब हाल में भी किले को देखकर अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि अपने पुराने दिनों में यह कितना वैभवशाली रहा होगा.
वैभवशाली इतिहास रहा है रायसेन किले का
किला दिन पर दिन बदतर हालत में पहुंचता जा रहा है. सरकार अगर कुछ टिकट लगाकर ही इस किले का रखरखाव ठीक करना चाहे तो भी ठीक होगा. लेकिन लोकतंत्र में किस नेता या सरकार को फुर्सत है कि इन ऐतिहासिक महत्त्व के स्थानों का ख्याल रखे, अब इनसे सरकारों को वोट तो नहीं मिलते हैं.
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