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Updated: 24 अप्रिल, 2020 04:57 PM
आर.के.सिन्हा
आर.के.सिन्हा
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इस बार की रमजान (Ramadan 2020) के दौरान फिजा बदली हुई रहने वाली है. मस्जिदों (Mosque) में गुजरें सालों की तरह रोजेदार नमाज (Namaz) पढ़ते हुए या अपने खुदा से दुआ मांगते हुए नहीं दिखेंगे. आपको मस्जिदों के अंदर-बाहर नमाज पढ़ने के बाद लोगों को गले मिलते हुए देखना भी नामुमकिन होगा. यह सब होगा जानलेवा कोरोना वायरस (Coronavirus) के कारण. इस भयानक महामारी ने पूरी मानव जाति पर ही संकट के बादल खड़े कर दिए हैं. इस महामारी की कोई वैक्सीन भी अभी तक उपलब्ध नहीं है. इसलिए कोरोना से लड़ने के लिए जरूरी है कि सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) का ध्यान रखा जाए और मुंह पर मास्क पहना जाए. सोशल डिस्टेंसिंग का सीधा सा मतलब है कि नमाज सामूहिक रूप से न पढ़ी जाए। नमाज घरों में ही पढ़ ली जाए और किसी भी हालत में ईद पर भी गले न मिला जाये.

अभी जारी है कोरोना से जंग

जाहिर है, सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखा जाएगा तो मस्जिदों में नमाजी जुट नहीं सकेंगे. रोजेदारों को मगरिब की नमाज समाप्त करने के बाद मस्जिदों में बैठकर फल, खजूर खाने और पानी पीने का मौका नहीं मिलेगा. वजह कोरोना के कारण चल रहा लॉकडाउन है. अभी इस बात की कतई संभावना नहीं है कि सरकार धार्मिक और सार्वजनिक स्थलों पर लोगों के एकत्र होने की छूट देगी. कारण साफ है कि अभी कोरोना से जंग जीती नहीं गई है. अभी इससे लड़ना बाकी है. ये लड़ाई लंबी भी खींच सकती है. यह ठीक है कि लॉकडाउन के पहले जहां तीन दिनों में मरीजों की संख्या दुगनी हो जा रही थी, अब आठ दिन में दुगने हो रहे हैं. यह एक बड़ी सफलता है.

कुरान हुई थी नाजिल

बेशक, ये दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि मुसलमानों को रमज़ान के महीने में भी मस्जिदों से दूर ही रहना होगा. पर इसी में उनकी भी और बाकी पूरे कौम की भी भलाई है. रमजान के महीने में मुसलमान 30 दिनों तक रोज़े रखते हैं. मुसलमानों के लिए ये सबसे पवित्र महीना समझा जाता है. मुसलमानों को यकीन है कि इसी महीने में 'कुरान शरीफ' नाज़िल हुई थी. यानी यह दुनिया को मिली थी. कहना न होगा कि इसलिए सब मुसलमान साल भर इस माह का इंतजार करते हैं.

Lockdown, Coronavirus, Ramadan, Muslimरमजान 2020 के मद्देनजर मुसलमान इसलिए भी परेशान हैं क्योंकि वो नमाज के लिए मस्जिदों में नहीं जा पा रहे हैं

पर अभी की स्थिति भिन्न है. हालात कतई काबू में नहीं आए हैं. दुनियाभर में कोरोना महामारी के कारण लोग धड़ाधड़ मर रहे हैं. जितने ठीक हो रहे हैं उससे कहीं अधिक अस्पतालों में दाखिल भी हो रहे हैं. अब मुसलमानों के रहनुमाओं, उलेमाओं, बुद्धीजीवियों और अन्य खास लोगों को अपनी कौम का आहवान करना होगा कि वे घरों में ही रहकर नमाज अदा करे.

कई समझदार मौलाना ऐसा कर भी रहे हैं. क्योंकि, ये ही वक्त की मांग है. बेशक अल्लाह उनकी दुआओं को जरुर ही कूबुल करेगा. देश के एक दर्जन से अधिक मुस्लिम आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों ने भी देश के मुसलमानों से पुरजोर अपील की है कि वे वक्त की नजाकत को समझें. इनका यह भी कहना है कि कोरोना जैसी विनाशकारी महामारी के कारण ही दुनिया पर अभूतपूर्व संकट खड़ा हुआ है.

हालात बहुत ही खराब हैं. सऊदी अरब में काबा के दरवाजे विगत दो माह से बंद हैं. फिलहाल मक्का भी खाली पड़ा है. वैसे यहां हर रोज लाखों लोग जियारत के लिए आते है. सऊदी अरब पहले ही ऐलान कर चुका है कि देश की मस्जिदों में पांच वक्त की नमाज नहीं होगी. जुम्मे की नमाज भी नहीं की जाएगी. उसने यह फैसला कोरोना वायरस के सामुदायिक संक्रमण को रोकने के लिए लिया है.

सऊदी सरकार के इस फैसले के बाद अब हमारी प्रमुख मस्जिदों के इमामों भी अपनी कौम से अपील करनी चाहिए की वे रमजान के दौरान घरों पर ही रहें. घरों में ही नमाज अदा करते रहें. सिर्फ मस्जिदें ही तो बंद नहीं हैं. देश के लाखों मंदिर, चर्च, गुरुद्वारे और अन्य धार्मिक स्थल भी बंद हैं. सब में पुजारी सांकेतिक पूजा कर भर लेते हैं. मस्जिद में भी इमाम और मुतवल्ली नमाज अदा कर लें.

लॉकडाउन में भी मस्जिदों में नमाज

हालांकि यह सबको पता है कि लॉकडाउन के दौरान भी केरल, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और कुछ अन्य राज्यों में मस्जिदों में लॉकडाउन के दिशानिर्देशों की धज्जियां उड़ाई जाती रहीं. केरल के कोझिकोड, त्रिचूर और तिरुवनंतपुरम में कम से कम तीन मामलों दो दर्जन से अधिक लोगों को मस्जिदों में नमाज पढ़ने के दौरान पकड़ा गया.

उत्तर प्रदेश के महाराजगंज में लॉकडाउन के दौरान भी मस्जिदों में नमाज पढऩे का सिलसिला थमा नहीं. पुलिस ने महराजगंज की एक मस्जिद में नमाज पढ़ रहे लोगों को गिरफ्तार किया. यानी सरकार और स्थानीय प्रशासन के बार-बार कहने के बावजूद कुछ बेशर्म लोग सुधर नहीं रहे. वे घरों में बैठने के लिए तैयार ही नहीं हैं. वे तो सारे समाज और देश को संकट में डाल रहे हैं.

ये सब तो पूरे देश ने तबलीगी जमात के मरकज में देखा था. सरकार के सोशल डिस्टेनसिंग के दिशा निर्देश लागू करने के बाद भी राजधानी के निजामउद्दीन इलाके में तबलीगी जमात के लोग हजारों की तादाद में एकत्र थे. वहां पर पुलिस पहुंची तो वे छिपे हुए थे. उनमें से दर्जनों कोरोना वायरस से संक्रमित भी थे. इन धूर्त लोगों के कारण भारत की कोरोना के खिलाफ जंग कमजोर हुई और मुस्लमान नाहक बदनाम हुआ.

अब रमजान का वक्त है तो सरकार के सामने चुनौती और भी बढ़ी है. रमजान में मस्जिदों में मुसलमान नमाज अदा करने के लिए तो पहुंचते ही हैं. बेशक पढ़े-लिखे मुसलमान तो रमजान के महीने में घरों में ही रहकर नमाज अदा कर लेंगे. हां, उन्हें ये अच्छा तो नहीं लगेगा. आखिर उन्होंने इस स्थिति की कभी कल्पना भी नहीं की थी. पर अब चारा भी क्या है? फिलहाल डर इसी बात का है कि कहीं गांवों और छोटे शहरों में मुसलमान बड़ी तादाद में मस्जिदों का रुख न कर लें.

अगर ये स्थिति बनती है, तब तो जो देश ने लॉकडाउन के दौरान जो पाया है वह सब निकल जाएगा. इसलिए यह आवश्यक है कि लॉकडाउन की अवधि को और आगे बढ़ा दिया जाए. वैसे भी अभी हम कोरोना को मात कहां दे पाएं हैं. सरकार का इस तरह का कोई भी कदम देश के व्यापक हित में ही होगा. जाहिर है कि आम मुसलनान इस बात को समझेंगे.

यदि तबलीगी जमात की घटिया हरकत और कुछ राज्यों में लॉकडाउन के दौरान भी नमाज अदा करने की कुछ घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो यह तो स्वीकार करना होगा कि देश के मुसलमानों ने भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लॉकडाउन को आगे बढ़ाने के फैसले पर अपनी मोहर लगाई है. वे भी देश के अन्य नागरिकों के साथ कोरोना के खिलाफ चल रही जंग में सरकार का साथ दे रहे हैं. कोरोना को धूल में मिलाने के बाद सारा देश मुसलमानों के साथ ईद के पर्व का जश्न मनाएगा.

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लेखक

आर.के.सिन्हा आर.के.सिन्हा @rksinha.official

लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं.

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