पुरुषों की कुंठा को बलवान करते फिल्मी रेप सीन
फिल्मों में रेप सीन पूरी तरह से मनोरंजक बनाया जाता है ताकि दर्शक इस सीन को एंजॉय कर सकें. मतलब रेप सीन भी एंटरटेनिंग होना चाहिए. रवीना टंडन की बातें हैरान करते हुए आंखें खोल देती हैं...
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सिनेमा के रेप सीन (Rape Scene) में लड़की को हाय बेचारी के रूप में दिखाया जाता है. उसके कपड़े फट जाते हैं. वह चिल्लाती है, रोती है, रेपिस्ट के हाथ जोड़ती है. वह भगवान की दुहाई देती है मगर फिर भी ऐसा सीन दिखलाया जाता है कि उसकी इज्जत लुट गई. वह खुद को बचा नहीं पाती है. इससे क्या मिल जाता है? ऐसा किसके लिए होता है?
रेप सीन में दिखाया जाता है कि विलेन अपनी पूरी ताकत के साथ हीरोइन पर हावी पड़ जाता है और उसका रेप कर देता है. जब फिल्म काल्पनिक ही है तो यह क्यों नहीं दिखलाया जाता कि हीरोइन ने खुद को बचा लिया. ये क्यों नहीं दिखलाया जाता कि हीरोइन पूरी ताकत के साथ हीरो से लड़ती है और जीत जाती है, क्योंकि रेप सीन एक तरह से लड़ाई ही तो होती है.
फिल्मों में ऐसा क्यों नहीं होता कि हीरोइन रेप सीन में हीरो को मार दे. किसी फिल्म में ऐसा हुआ हो मुझे याद नहीं. अगर होता भी तो वह महिला केंद्रित फिल्म होती है. माना जाता है कि इस फिल्म की हीरो एक महिला है.
हर बार लड़की को अबला नारी के रूप में पेश किया जाता है
फिल्मों में रेप सीन पूरी तरह से से मनोरंजक बनाया जाता है ताकि दर्शक इस सीन को एंजॉय कर सकें. मतलब रेप सीन भी एंटरटेनिंग होनी चाहिए. रेप सीन में हीरोइन को टूट कर बिखरा हुआ दिखाया जाता है. रेप सीन कई तरह से शूट किए जाते हैं. कई बार रेप सीन के हर एंगल को फिल्माया जाता तो कई बार ऐसे सीन दिखाए जाते हैं जिससे समझ में आ जाए कि लड़की का रेप हुआ है. जैसे लड़की डरी सहमी हुआ रो रही है उसके बाल बिखरे हैं.
रेप सीन को पुरुषों की ताकत की जीत के रूप में दिखाया जाता है. कभी ऐसा नहीं हुआ कि विलेन हार जाए. लड़की विलेन को मार दे. लड़की उस विलेन पर हावी पड़ जाए. रेप करने वाले पुरुष को महिला से अधिक ताकतवार दिखाया जाता है. उतनी देर के लिए वह अपनी मर्दानगी दिखाता है. भले बाद में उसके साथ जो भी हो. रेप करते वक्त वह अपना बल दिखाता है औऱ खुद पर घमंड करता है.
हर बार लड़की को अबला नारी के रूप में पेश किया जाता है. जो कभी खुद की रक्षा नहीं कर सकती. वह खुद को नहीं बचा सकती. विलेन अकेला होकर भी उस पर भारी पड़ जाता है. वह रोने के सिवा कुछ नहीं कर पाती. वह अपना दिमाग नहीं लगाती और बचाओ, बचाओ चिल्लाती रहती है. जैसे उसके अंदर कोई ताकत ही नहीं है. फिर कहीं से हीरो आता है औऱ वह उसे बचाता है. मतलब यह फिल्मों ने हमें यह मनवा दिया है कि हीरोइन अकेले खुद की देखभाल नहीं कर सकती, उसे जिंदगी में अपनी रक्षा के लिए हीरो की जरूरत पड़ेगी. जैसे वह अकेली किसी काम की नहीं है. उसे बचाने हीरो ही आएगा.
असल में रवीना टंडन ने एनआई को दिए इंटरव्यू में कहा है कि फिल्म इंडस्ट्री में मुझे घमंडी कहा जाता था क्योंकि मैं कहती थी कि रेप सीन में मेरे कपड़े नहीं फटेंगे. मैं कुछ सीन को करने में असहज महसूस करती थी. मैं स्विमिंग कॉस्ट्यूम पहनने, किसिंग सीन के लिए साफ मना कर देती थी. जिसकी वजह से कई बड़ी फिल्में मेरे हाथ से निकल गईं.
रवीना टंडन की यह बात सही है कि रेप सीन में कपड़े का फटना आम बात है. ऐसा कभी नहीं होता कि कभी रेपिस्ट का कपड़ा हीरोइन फाड़ दे. रेप सीन में हमेशा हीरोइन को ही शर्मिंदा होते दिखाया जाता है, जबकि विलेन रेप करके भी घमंड में रहता है. इसलिए हम कह रहे हैं कि फिल्मों में रेप सीन ने पुरुषों की कुंठा को बल दिया है.
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