वैक्सीनेशन पर केंद्र सरकार के दावों से कोसों दूर नजर आ रही है हकीकत!
भारत में पांच एंटी कोविड वैक्सीन अभी भी ट्रायल फेज में हैं. बायो-ई सबयूनिट वैक्सीन की 30 करोड़ डोज अगस्त से दिसंबर के बीच मिलनी हैं, लेकिन यह वैक्सीन ट्रायल के आखिरी दौर में है. जायडस कैडिला और नोवैक्स भी ट्रायल फेज के तीसरे दौर में हैं. वहीं, भारत बायोटेक की नेजल वैक्सीन और जेनोवा की वैक्सीन भी ट्रायल के शुरुआती दौर में हैं.
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देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर फिलहाल थमती हुई नजर आ रही है. बीते मई महीने में कोरोना संक्रमण के रोजाना चार लाख मामले सामने आने के बाद अब ये आंकड़ा एक लाख से कम पर आ गया है. केंद्र सरकार का दावा है कि इस साल के अंत तक देश के 18+ उम्र के सभी लोगों का टीकाकरण (Vaccination) कर दिया जाएगा. केंद्र सरकार ने अपने दावे की सटीकता को साबित करने के लिए वैक्सीन का रोडमैप भी जारी किया था.
केंद्र सरकार ने दावा किया है कि देश में अगस्त से दिसंबर के बीच 216 करोड़ एंटी कोविड वैक्सीन डोज उपलब्ध हो जाएंगी. एंटी कोविड वैक्सीन का ये आंकड़ा सभी लोगों के टीकाकरण के लिए जरूरी संख्या से ज्यादा है. 8 जून तक वैक्सीन की पहली और दूसरी डोज लेने वाले लोगों को मिलाकर देश में करीब 24 करोड़ लोगों का टीकाकरण हो चुका है. लेकिन, टीकाकरण की सुस्त रफ्तार केंद्र सरकार के लिए चिंताजनक बनी हुई है. टीकों की कमी की वजह से कई जगहों पर वैक्सीन सेंटर्स बंद चल रहे हैं.
8 जून तक वैक्सीन की पहली और दूसरी डोज लेने वाले लोगों को मिलाकर देश में करीब 24 करोड़ लोगों का टीकाकरण हो चुका है.
उत्पादन बढ़ नहीं रहा, अन्य वैक्सीन ट्रायल फेज में
बीते महीने स्वास्थ्य मंत्रालय की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में नीति आयोग के सदस्य वीके पॉल ने कहा था कि 18+ के सभी लोगों के लिए अगस्त से दिसंबर तक 216 करोड़ वैक्सीन डोज उपलब्ध होंगी. जिसमें कोविशील्ड की 75 करोड़ डोज, कोवैक्सीन की 55 करोड़ डोज, बायो ई-सबयूनिट वैक्सीन की 30 करोड़ डोज, नोवैक्स की 20 करोड़ डोज, भारत बायोटेक नेजल वैक्सीन की 10 करोड़ डोज, जेनोवा वैक्सीन की 6 करोड़ डोज, जाइडस कैडिला की 5 करोड़ डोज और स्पूतनिक-वी की 15 करोड़ डोज उपलब्ध कराई जाएंगी. इस हिसाब से वैक्सीन का उत्पादन करने वाली कंपनियों को जुलाई से लेकर दिसंबर तक हर महीने 36 करोड़ वैक्सीन डोज का उत्पादन करना होगा. भारत में अभी टीकाकरण के लिए कोविशील्ड और कोवैक्सीन का ही व्यापक तौर पर इस्तेमाल हो रहा है.
फिलहाल सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोविशील्ड का उत्पादन प्रतिमाह 6 करोड़ डोज है. सीरम इंस्टीट्यूट पूरी क्षमता से काम करे, तो यह बढ़ाकर 10 करोड़ तक किया जा सकता है. सरकार ने कोविशील्ड के लिए 75 करोड़ का लक्ष्य रखा है. अगर कोविशील्ड की प्रतिमाह 10 करोड़ वैक्सीन डोज ही तैयार हो सकती हैं, तो सीरम इंस्टीट्यूट अपने लक्ष्य से 15 करोड़ डोज पीछे होगा. कोवैक्सीन बनाने वाली भारत बायोटेक कंपनी ने जुलाई से हर महीने 5.35 करोड़ वैक्सीन तैयार करने का दावा किया था. कंपनी के दावे पर भरोसा करें, तो कोवैक्सीन अपने लक्ष्य से थोड़ा ही पीछे रहेगी. इससे इतर सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा नोवैक्स और भारत बायोटेक द्वारा नेजल वैक्सीन भी बनाई जा रही है. इन दोनों वैक्सीन की कुल मिलाकर 30 करोड़ डोज तैयार की जानी हैं. इन वैक्सीन के उत्पादन से कोविशील्ड और कोवैक्सीन के उत्पादन पर असर पड़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.
रूसी वैक्सीन स्पूतनिक-वी 15 मई के आस-पास भारत में उपलब्ध होने लगेगी.
रूसी वैक्सीन स्पूतनिक-वी 15 मई के आस-पास भारत में उपलब्ध होने लगेगी. लेकिन, ये वैक्सीन किस मात्रा में उपलब्ध होगी, इसके बारे में जानकारी सामने नहीं आई है. वहीं, अन्य पांच वैक्सीन अभी भी ट्रायल फेज में हैं. बायो-ई सबयूनिट वैक्सीन की 30 करोड़ डोज अगस्त से दिसंबर के बीच मिलनी हैं, लेकिन यह वैक्सीन ट्रायल के आखिरी दौर में है. जायडस कैडिला और नोवैक्स भी ट्रायल फेज के तीसरे दौर में हैं. वहीं, भारत बायोटेक की नेजल वैक्सीन और जेनोवा की वैक्सीन भी ट्रायल के शुरुआती दौर में हैं. ट्रायल पूरा करने में इन्हें अभी समय लगेगा और इसके बाद वैक्सीन की कुल 16 करोड़ डोज का उत्पादन इन कंपनियों के लिए मुश्किल नजर आ रहा है.
एसओपी और गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस आएगी आड़े
वैक्सीन निर्माता कंपनी बायोलॉजिक-ई के वाइस प्रेसिडेंट डॉ विक्रम पराडकर ने एबीपी के दिए गए इंटरव्यू में कहा था कि दुनियाभर में तीन-चार किस्म की वैक्सीन बनाई जा रही हैं. हर वैक्सीन की तकनीक अलग है और उसको तैयार होने में भी समय लगता है. वैक्सीन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा एंटीजन होता है. इसे बनने में ही एक से तीन महीने का वक्त लगता है. अगर टीका वायरस आधारित है, तो वायरस को विकसित करने के लिए पहले सेल विकसित करने पड़ते हैं. फिर उससे रिकवरी कर एंटीजन हासिल करने के बाद टेस्टिंग की प्रक्रिया शुरू होती है. इसमें टेस्ट किया जाता है कि एंटीजन ठीक से बना है या नहीं, रोग प्रतिरोधक क्षमता बनाने वाले अंश ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं. इसके बाद वैक्सीन का निर्माण किया जाता है. आज इस्तेमाल की जा रही वैक्सीन वायल के कंपोनेंट का विकास तीन से चार महीने पहले शुरु किया जाता है. इस पूरी प्रक्रिया में लगने वाले समय को कम नहीं किया जा सकता है.
टीकाकरण की रफ्तार बड़ी चिंता
दिसंबर के अंत तक 18+ उम्र के सभी लोगों का टीकाकरण करने के लिए सरकार को प्रति दिन 50 लाख वैक्सीन डोज देनी होंगी. जून के महीने में टीकाकरण का औसत 27 लाख के करीब का है. जबकि मई महीने के शुरुआती तीन हफ्तों में यह 16.2 लाख पर आ गया था. जून के पहले हफ्ते में टीकाकरण का औसत 26 लाख रहा है. आगे इसके और बढ़ने की उम्मीद है. लेकिन, वैक्सीन की उपलब्धता निश्चित होने के बाद ही यह बढ़ पाएगा. अगर वर्तमान गति से ही टीकाकरण होता रहा, तो सबको टीका लगाने में दो से ढाई साल तक का वक्त लग सकता है.
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