न्यू इंडिया और शिक्षा दोनों के बेहतर है कि BHU से H और AMU से M निकल जाए
यूजीसी के पैनल का एएमयू के एम और बीएचयू के एच पर मतभेद है. देखा जाए तो पैनल की बात सही है और देश के एक नागरिक के तौर पर हमें पैनल द्वारा कही बातों का सम्मान करना चाहिए.
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कहने को भारत एक लोकतांत्रिक देश है. एक ऐसा देश जिसका आधार ही हिन्दू और मुस्लिम एकता है. मगर ये एकता तब खंड-खंड हो जाती है जब हम व्यक्ति को उसके धर्म के आधार पर बांट कर अलग कर दें. यानी हिन्दू अपने आसपास से मुस्लिम को अलग कर दे और मुस्लिम अपने पास से हिन्दू को जुदा कर दे. मुझे नहीं पता कि ये शिक्षा का तकाजा था या वोटबैंक की राजनीति कि जब महामना ने बनारस विश्वविद्यालय का निर्माण किया तो इसमें उन्होंने, हिन्दू जोड़ा और जब सर सैय्यद अहमद खान अलीगढ़ विश्व विद्यालय का निर्माण कर रहे थे तो उन्होंने इसमें मुस्लिम जोड़ना जरूरी समझा.
देखा जाए तो पैनल ने सही समय में एक सही बात कही है जिसे नकारा नहीं जा सकताशायद आपको बात बेहद बचकानी लगे. मगर ये सत्य है कि दो अलग-अलग समुदायों को सशक्त करने के नाम पर जब दो अलग शिक्षण संस्थान बने तब जो बंटवारा हुआ उसका दंश भारत आज तक सह रहा है. और शायद भविष्य में भी ऐसा ही हाल रहे. बहरहाल यूजीसी के एक पैनल ने राय दी है कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के नामों से हिंदू और मुस्लिम जैसे शब्दों को हटाया जाना चाहिए. इसके पीछे पैनल का तर्क है कि ये शब्द इन विश्वविद्यालयों की धर्मनिरपेक्ष छवि को नहीं दिखाते हैं.
10 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कथित अनियमितताओं की जांच के लिए बनाए गए इस पैनल ने, भले ही अपनी सारी प्राथमिकताओं को दर किनार कर दिया हो. मगर इस बात के लिए ये वाकई बधाई के पात्र हैं कि इन्होंने अपने विमर्श के विषय के लिए 'हिन्दू' 'मुस्लिम' शब्द को निकाले जाने को चुना.
यदि पैनल की ये बात मान ली जाए तो ये सांप्रदायिक ताकतों के मुंह पर करारा तमाचा होगा
ये कोई व्यंग्य नहीं है और न ही हम इसपर किसी तरह का कोई कटाक्ष कर रहे हैं. आप भी बिल्कुल सही ही सुन रहे हैं. भले ही इस पैनल ने विश्वविद्यालयों की लाइब्रेरी में किताबों की स्थिति को न देखा हो. भले ही इस पैनल ने लैब में मौजूद उपकरणों की कमी को सिरे से खारिज कर दिया हो. भले ही इस पैनल द्वारा हॉस्टल में छात्रों की मूल-भूत सुविधाओं पर विचार न करा गया हो. भले ही इन्हें छात्राओं की सुरक्षा जरूरी मुद्दा न लगा हो मगर जिस मुद्दे को अंत में ये विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सामने लेकर आए उसके लिए इनकी निंदा नहीं बल्कि तारीफ होनी चाहिए.
देखा जाए तो इस पैनल की बात सही है. शिक्षा सबके लिए होती है, उसपर सबका समान अधिकार होता है. ऐसे में अगर उसमें 'धर्म' जोड़ दिया जाए तो निश्चित तौर पर समाज गर्त के अंधेरों में चला जाएगा. कह सकते हैं कि इससे समाज में मौजूद सोशल इंजीनियरिंग का ढांचा बिगड़ जाता है और लोगों के बीच एक अलग तरह की कुंठा का संचार होता है.
उपरोक्त बात को ऐसे भी समझा जा सकता है कि जब हम ये मान लें कि किसी जगह पर केवल हिन्दुओं का वास है या फिर वहां सिर्फ मुसलमान ही रहते हैं तो बात अधूरी रह जाती है. चीजों का मजा तब है जब हम साथ रहें और एक दूसरे की बातों और संस्कृति को समझें. अंत में यही कहा जा सकता है कि भले ही पैनल के घड़ी की सुई हिन्दू मुस्लिम पर आकर अटक गयी हो, मगर इंडिया से न्यू इंडिया बनते भारत को उनकी कही इस बात पर खुशी जाहिर करनी चाहिए और इसपर विचार करना चाहिए.
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