ज़रूरी तो नहीं कि लड़की है इसलिए सही है, लड़का है तो गलत ही होगा
किसी भी relationship में आज बड़ी ही आसानी के साथ लड़की पक्ष द्वारा लड़के को बदनाम कर उसकी जिंदगी बर्बाद कर दी जाती है. हमें ठहर कर सोचना चाहिए कि लड़के सिर्फ़ लड़के हैं इसलिए ग़लत हैं तो ऐसा बिलकुल भी नहीं है.
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तुम लड़की हो और इसलिए हर बार तुम्हीं सही होगी, तो ये ग़लत है. प्यार करते वक़्त आगे-पीछे का नहीं सोचा तो जब स्टैंड लेने के बात आई क्यों पीछे हट गई? फ़िल्म देख कर घर से भागी और बाप-भाई ने पकड़ लिया तो आराम से पुलिस के सामने बोल दिया कि, 'हम को उठा कर ले गया था. हमारा बलात्कार किया. उसके बाद तुम चली आयी अपने घर. जहां शायद तुम्हारा जीवन भी नर्क हुआ होगा. मगर सोचा उस लड़का के बारे में जो अब जेल में है. जिसके मां-बाप दर-ब-दर भटक रहे हैं अपने बेटे को बेगुनाह साबित करने के लिए. वो लड़का जिसके आगे तमाम उम्र बाकी है अब प्यार करने की सज़ा जेल में बैठ कर काट रहा. जब निकलेगा तो बलात्कारी के टैग के साथ निकलेगा. क्या ज़िंदगी होगी जेल से निकलने के बाद उसकी? कौन नौकरी देगा? कौन अपनी बेटी ब्याहेगा!
प्यार के अंतर्गत आज तमाम मामले ऐसे हैं जिसमें लड़कों को जबरन दोषी बनाया गया है
तुम्हारी तो शादी मर्ज़ी या बिन मर्ज़ी के हो ही जाएगी. शादी हुई तो फिर बच्चे भी होंगे. धीरे-धीरे करके तुम रम जाओगी अपनी गृहस्थी में. शायद तुम कहोगी कि तुम भी मर-मर के जी रही हो मगर फिर भी जी तो रही हो. वो लड़का तो ज़िंदा रह कर भी उसी दिन मर गया न जिस दिन तुमने पुलिस के सामने स्टैंड नहीं लिया. तुम बालिग़ थी न. कहती पुलिस को कि अपनी मर्ज़ी से गयी हूं. भागी नहीं हूं. प्यार करती हूं. शादी इसी से करूंगी. तब क्यों चुप रही? मरने से डर गयी तो फिर किसी बात पर मुंह खोलने का हक़ नहीं है तुमको. तुम कायर थी. वजह जो भी हो तुम यहां ग़लत हो.
और हमारे देश का क़ानून कहता है न कि चाहे एक गुनहगार का गुनाह साबित न हो पाए चलेगा. मगर एक बेगुनाह को सज़ा नहीं होनी चाहिए. मगर इस देश में हज़ारों लड़के हैं जिन्हें प्यार करने की सज़ा मिली है. वो जेल में हैं तो कुछ बलात्कारी का टैग ले कर घूम रहे हैं. इन लड़कों के लिए कोई नहीं सोचता. इनके बारे में कोई बात नहीं करता. जबकि ग़लत तो इनके साथ भी हुआ है न. सताये तो ये भी गए हैं.
जेंडर-इक्वॉलिटी की बात करने वाले, इन लड़कों के बारे में कभी बात नहीं करते. कहीं भी इस बात का ज़िक्र नहीं होता कि वो लड़के जिन पर ये ग़लत आरोप लगे थे और जो कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद बाइज़्ज़त बरी हुए आख़िर उनका क्या हुआ? क्या वो अपनी ज़िंदगी दुबारा शुरू कर पाए. क्या समाज ने उन्हें खुले बाहों से स्वीकार किया क्या? वो जो जेल में पांच साल या सात साल गुज़ार कर आए, उन सालों के बदले क्या मुआवज़ा मिला? उन लड़कों के मां-बाप ने जो दुःख झेले उसकी भरपाई कैसे हुई?
नहीं, कहीं भी आपको इन बातों के बारे में कोई जानकारी मिलेगी क्योंकि हमारे देश में जो क़ानून है वो लड़कों के लिए शुष्क है. मैं यहां इस बात की वकालत नहीं कर रही कि लड़कियों को मिले अधिकार ग़लत हैं. मैं यहां सिर्फ़ ये समझाना चाह रही कि जिस तरह लड़कियों को हक़ मिलें हैं अपने साथ हुए अन्याय के लिए कोर्ट में दस्तक देने की, लड़कों को भी वही हक़ मिले. सिर्फ़ कोई लड़की कभी डर, कभी किसी मजबूरी में आ कर अगर अपने प्रेमी को बलात्कारी या अपहरणकर्ता ठहरा दे तो बस उसी को सही मान कर लड़कों को जेल में ठूस देना गलत है. लड़कों को जेल भेजने से पहले उन्हें अपनी बात रखने का हक़ मिले.
अभी पिछले ही दिनों असम से ख़बर आयी थी न, जिसमें पुलिस एक लड़के को पहले किसी लड़की के अपहरण के जुर्म में गिरफ्तार कर के ले गयी. बाद में उसकी बहनों को भी. जबकि लड़के के फ़ोन में उस लड़की के साथ हुई चैट और जब मिले थे उस वक़्त के साथ की फ़ोटो साक्ष्य के रूप में मौजूद था. लेकिन सिर्फ उस लड़की ने कह दिया कि लड़के ने अपहरण किया था तो उसे गिरफ्तार कर लिया गया.
ये तो महज़ एक उदाहरण है. ऐसी सैकड़ों घटनाएं हर साल घटती है. प्रेम-कहानियां और शादियां कैसे लड़की के घरवालों की वजह से बलात्कार और अपहरण में बदल जारी है, इसका पता तो सबको चल जाता है मगर इस पर कोई बहस नहीं होती. लड़के बस क़ुर्बान हो जाते हैं. ये क़ुर्बानी रुकनी चाहिए. इस पर ठहर कर सोचना चाहिए. लड़के सिर्फ़ लड़के हैं इसलिए ग़लत हैं तो ये सही बात नहीं है.
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