दिल्ली वाले! ये दिवाली भी मनाएंगे और पटाखे भी जलाएंगे
बढ़ते प्रदूषण और पर्यावरण बचाने के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने दिवाली पर बिकने वाले पटाखों के सन्दर्भ में फैसला दिया है. अब देखना ये है कि सुप्रीम कोर्ट की कही बात को लोग मानते हैं या फिर उसे सिरे से खारिज कर देते हैं.
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दिवाली आने वाली है. लोगों ने मकान दुकान सब की सफाई और रंगाई पुताई करवा दी है. कंपनियों ने अपने दफ्तरों में काम करने वाले एम्प्लाइज के लिए मिठाई और गिफ्ट हैम्पर्स के आर्डर दे दिए हैं. सेल चल रही है तो वीकेंड पर, पड़ोस में स्थित मॉल से लोगों ने बीवी बच्चे के कपड़े ले लिए हैं. जो कुंवारे हैं उनके अपने अलग किस्म के प्लान हैं. कोई दोस्तों के साथ बाइक पर घूमने जा रहा है तो किसी को मां पिता जी से मिलने जाना है. कोई यारों संग बैठ के हार्ड रॉक म्यूजिक और कार्ड के बीच त्योहार को एंजोय करना चाहता है तो कोई कुछ. दिल्ली और एनसीआर में दिवाली को लेकर सभी उत्साहित और तैयारियां पूरी हैं.
दिवाली पर पटाखों की बिक्री पर बैन लगाकर कोर्ट ने लोगों को मुश्किल में डाल दिया है
उपरोक्त पंक्तियों को पुनः पढ़िये. देखिये कहीं कुछ छूटा तो नहीं है. इसे पढ़कर शायद आप यही कहें कि,'नहीं कुछ छूटा नहीं है दिवाली तो ऐसे ही होती है'. मगर हम खुद कहेंगे कि ऊपर लिखी पंक्तियां अधूरी हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि इनमें कहीं भी पटाखों का जिक्र नहीं है. हां वही पटाखे जिनकी बिक्री पर इस दिवाली सुप्रीम कोर्ट ने बैन लगा दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी बताया है कि पटाखों की बिक्री 1 नवंबर, 2017 से दोबारा शुरू हो सकेगी.
ज्ञात हो कि, अपने इस फैसले से सुप्रीम कोर्ट देखना चाहता है कि पटाखों के मद्देनजर प्रदूषण पर कितना असर पड़ता है. आपको बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री और भंडारण पर रोक लगाने वाले नवंबर 2016 के आदेश को बरकार रखते हुए यह फैसला सुनाया.
गौरतलब है कि न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए.के. सिकरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने फैसले को बरकरार रखते हुए कहा है कि,'हमें कम से कम एक दिवाली, पटाखे मुक्त त्योहार मनाकर देखना चाहिए.' अदालत ने कहा कि दिल्ली एवं एनसीआर में पटाखों की बिक्री और भंडारण पर प्रतिबंध हटाने का 12 सितंबर 2017 का आदेश एक नवंबर से दोबारा लागू होगा.
कोर्ट देखना चाहती है कि इस फैसले से प्रदूषण के स्तर पर कितना प्रभाव पड़ता हैइस फैसले के पीछे की वजह क्या है
पिछले साल कुछ बच्चों ने अपनी तरह की एक अनूठी याचिका सुप्रीम कोर्ट में डाली थी जिसने लोगों को हैरत में डाल दिया था. सुप्रीम कोर्ट में पटाखा बैन को लेकर अर्जी डाली थी. सुप्रीम कोर्ट में तीन बच्चों की ओर से दाखिल उस याचिका में दशहरे और दीवाली पर पटाखे जलाने पर पाबंदी लगाने की मांग की गई थी. बताया जा रहा है कि सभी याचिकाकर्ताओं की उम्र 6 से 14 महीने के बीच थी.
इस बैन को किस तरह देखते हैं आम दिल्ली वासी
भले ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर रोक लगाई हो मगर दिल्ली वाले त्योहार और पाठकों को लेकर समझौता नहीं करने वाले. त्योहार और पटाखों को लेकर उनके अपने तर्क हैं. लोगों का मानना है कि राजधानी साल भर प्रदूषण का दंश रहती है. रोज वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, नाइट्रोजन, सल्फर ऑक्साइड, अमोनिया जैसी गैसें घुलती हैं. यदि सरकार बढ़ते वायु प्रदूषण पर इतना फिक्रमंद है तो उसे साल भर रहना चाहिए और शहर में और शहर के आस पास मौजूद कल कारखानों और वाहनों पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगवा देना चाहिए. इस तरह किसी याचिका पर कार्यवाही करते हुए कोर्ट सिर्फ त्योहार का मजा किरकिरा कर रही है.
देखना ये भी है कि लोग कोर्ट के इस फैसले का कितना स्वागत करते हैलोगों ने कर रखा है पटाखों का इन्तेजाम
हम हिन्दुस्तानी हैं. प्रायः ये देखा गया है कि प्रायः हम वही करते हैं जिसपर रोक हो. चूंकि दिल्ली में पटाखों पर बैन लग चुका है. व्यापारी जल्द से जल्द अपना स्टॉक खत्म करने के लिए तमाम तरह के ऑफर चला रहे हैं तो वहीं लोगों ने भी दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों से पटाखे खरीद कर अपना कोटा पूरा कर लिया है. अतः कहा जा सकता है कि लोग दिवाली में एक दूसरे से गले भी मिलेंगे और भरपूर पटाखे भी जलाएंगे.
लोगों का मत है कि त्योहार साल में एक बार आता है तो उसे एन्जॉय करना चाहिए और रही बात पर्यावरण बचाने कि तो हमारे पास साल के 364 दिन हैं और उन दिनों में हम अवश्य ही पर्यावरण के लिए कुछ न कुछ तो कर ही लेंगे.
अंत में हम अपनी बात खत्म करते हुए बस इतना कहेंगे कि, निस्संदेह ही पर्यावरण का संरक्षण हमारे लिए जरूरी है और जैसे हम उसका संरक्षण दिवाली में कर रहे हैं ठीक वैसे ही हमें उसका संरक्षण साल भर करना चाहिए.बाकी दिल्ली वाले दिवाली भी मना रहे हैं और शायद ये पटाखे भी जला रहे हैं
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