चाय अमृत सरीखी-धरती के लोगों के लिए ईश्वर का वरदान है, रिसर्च ने भी मोहर लगा दी!
अभी हाल ही में एक शोध हुआ है जिसने टी लवर्स को जश्न मनाने का मौका दे दिया है. ब्रिटेन में हुए एक शोध में पाया गया है कि जो लोग चाय ज्यादा पीते है विशेष रूप से काली चाय उन्हें मौत का खतरा कम रहता है.
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चाय... चाहे दूध की हो या बिना दूध की. मीठी हो या फिकी. एक सिप में खत्म हो या घंटों में. ग्रीन हो या फिर हर्बल 'चाय' Is Not a mere word. It's a sentence. Complete sentence... ये एक ऐसा वाक्य है जिसके बिना व्यक्ति का जीवन अधूरा है. यानी ईश्वर के वरदान के रूप में हम मानवों को मिली चाय वो कनक है, जिसे जो पिये बौराए. जो न पिये वो और ज्यादा बौराए. आज दुनिया में चाय के स्वरुप भले ही अलग हों लेकिन अच्छी बात ये रही कि चाय ने हम इंसानों के जैसे अपनी फितरत नहीं बदली. ये जैसी पहले थी, वैसी ही आज भी है. पहले भी इसने हमें तरो ताजा रखा आज भी ये क्रम बदस्तूर चल रहा है. Tea Haters चाय के विरोध में कितना भी दुष्प्रचार क्यों न कर लें, कितना भी एजेंडा क्यों न चला लें. लेकिन वो सोना ही क्या जो तपा न हो. चाय आदमी के लिए कितनी और किस हद तक जरूरी है फैसला हो चुका है. अभी हाल ही में एक शोध हुआ है जिसने टी लवर्स को जश्न मनाने का मौका दे दिया है. ब्रिटेन में हुए एक शोध में पाया गया है कि जो लोग चाय ज्यादा पीते है विशेष रूप से काली चाय उन्हें मौत का खतरा कम रहता है.
चाय को लेकर जो शोध हुआ है उसने टी लवर्स को जश्न मनाने का मौका दे दिया है
स्टडी के मुताबिक, जो लोग दिन में दो से तीन कप चाय पीते हैं, उनकी मौत जल्दी होने का खतरा कम हो जाता है. शोध के मुताबिक ज्यादा चाय पीने वाले लोगों का डेथ रेट 9 प्रतिशत से लेकर 13 प्रतिशत तक कम हो जाता है.
इस रिसर्च के बाद Tea Haters दलीलों की लंबी फेहरिस्त सामने रख सकते हैं. तरह तरह की बातें कर सकते हैं. लेकिन जिस तरह का ये शोध है ये बिलकुल सही समय पर हुआ है. शोध क्या है उसपर तसल्ली से बात होगी. मगर उससे पहले हमारे लिए ये समझ लेना बहुत जरूरी है कि अगर किसी चहेड़ी के लिए चाय अमृत सरीखी है. तो वहीं धरती पर वास करने वाले अन्यलोगों के लिए ये ईश्वर का वरदान है. और अब जबकि रिसर्च ने मोहर लगा दी है. जालिम दुनिया को जल्द से जल्द इस सच को स्वीकार कर लेना चाहिए.
दरअसल यूनाइटेड किंगडम स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के एक अन्य वर्टिकल नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट की एक रिसर्च टीम ने चाय के इस्तेमाल को लेकर एक बेहद अहम शोध किया है. शोध ग्रीन की जगह ब्लैक टी पर हुआ है और फिर जो परिणाम आए हैं वो हैरान करने वाले हैं.
रिसर्चर्स के अनुसार चाय का अधिक सेवन करने वाले वाले लोग विशेषकर ब्लैक टी पीने वाले लोगों में मौत का खतरा कम होता है. शोधकर्ताओं के अनुसार, जो लोग प्रतिदिन दो या उससे अधिक कप चाय का सेवन करते हैं उनका डेथ रेट 9 प्रतिशत से लेकर 13 प्रतिशत तक तक कम हो जाता है. ज्यादा चाय का सेवन करने से हृदय रोग या हार्ट अटैक जैसी बीमारियों से व्यक्ति की मौत नहीं होती है.
चूंकि दुनिया की एक बड़ी आबादी चाय का शौक रखती है इसलिए जर्नल एनल्स ऑफ इंटरनल मेडिसिन में इस रिसर्च को छापा गया है. शोध में कितना सच है या फिर इसे यूं ही अंजाम दिया गया है इसकी प्रमाणिकता पर भले ही संदेह हो लेकिन पूर्व में भी कई रिसर्च ऐसी हमारे सामने आ चुकी हैं जिनमें इस बात पर बल दिया गया है कि चाय में औषधीय गुण होते हैं.
भले ही तब लोगों ने चाय के फायदे पर गौर न किया हो लेकिन जब हम 40 से 69 वर्ष की आयु के उन पांच लाख लोगों को जिन्होंने नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट द्वारा की गयी इस रीसर्च में हिस्सा लिया, की बातों को सुनते हैं तो मिलता है कि चाय वाक़ई एक बेशकीमती चीज है.
गौरतलब है की शोध में हिस्सा लेने वाले लोगों से साल 2006 से 2010 तक के बीच का एक questionnaire भरवाया गया जिसमें 89 प्रतिशत लोगों ने माना कि वह ब्लैक टी का सेवन करते हैं. दिलचस्प ये कि ये तमाम लोग अब भी ब्लैक टी ही पी रहे हैं. स्टडी में इस बात पर बड़ी ही प्रमुखता के साथ बल दिया गया है कि जैसी क्वालिटी चाय में है उसे फ़ौरन से पहले हेल्दी डाइट में शामिल किया जाना चाहिए.
अब जबकि रिसर्च हमारे सामने है. ये टी हेटर्स को टी लवर्स में बदल पाती है या नहीं? इसका फैसला तो वक़्त की गर्त में छिपा है लेकिन हम इतना जरूर कहेंगे कि जैसे जल बिन जीवन सूना है ठीक वही हाल चाय का भी है. अंत में हम फिर इस बात को दोहराएंगे कि चाय के आलोचक चाय के विरोध में अजीबो गरीब तर्क दे सकते हैं. लेकिन चाय कैसे रिश्तों में गर्माहट लाती है इसका पता हमें तक चलता है जब हम अज्ञेय की उस कविता को पढ़ते हैं जो उन्होंने अपने पिता को ध्यान में रखकर लिखी थी. अपनी कविता में अज्ञेय कहते हैं कि
चाय पीते हुए
मैं अपने पिता के बारे में सोच रहा हूं.
अच्छी बात नहीं पिताओं के बारे में सोचना.
अपनी कलई खुल जाती है
कितना दूर जाना होता है
पिता से,
पिता जैसा होने के लिए!
पिता भी,
सवेरे चाय पीते थे
क्या वह भी
अपने पिता के बारे में सोचते थे...!!!
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