सबरीमाला फैसले का केरल की महिलाएं विरोध क्यों कर रही हैं?
जब सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की इजाजत मिली तो पूरे देश ने इसे महिलाओं के हक में माना और इसे महिलाओं की जीत की तरह सेलिब्रेट किया. लेकिन इसी फैसले का विरोध करने के लिए केरल की सड़कों पर हजारों महिलाएं उतर आईं.
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गांधी जयंती यानी 2 अक्टूबर का दिन. इसी दिन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा रिटायर हुए. और इसी दिन उनके एक फैसले के विरोध में जनता सड़क पर उतर आई. ये फैसला है सबरीमाला मंदिर से जुड़ा हुआ. जब 28 सितंबर को दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने सबरीमाला मंदिर पर फैसला सुनाया. महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत मिल गई. पूरे देश ने इसे महिलाओं के हक में माना और इसे महिलाओं की जीत की तरह सेलिब्रेट भी किया. लेकिन केरल की सड़कों पर इसी फैसले का विरोध करने के लिए हजारों की संख्या में महिलाएं उतर आईं. कुछ ने फैसले का विरोध करते हुए खुद को आग के हवाले तक करने की कोशिश की. लेकिन क्यों? आखिर महिलाएं इस फैसले का इतना कड़ा विरोध क्यों कर रही हैं, जिसे महिलाओं के हक में कहा जा रहा था?
केरल की सड़कों पर सबरीमाला फैसले का विरोध करने के लिए हजारों की संख्या में महिलाएं उतर आईं.
महिला ने खुद को लगा ली आग
2 अक्टूबर के दिन हजारों अयप्पा श्रद्धालु केरल की सड़कों पर नजर आए. राज्य के कई नेशनल हाइवे को जाम कर दिया गया. इस विरोध प्रदर्शन की शुरुआत करने वालों में प्रवीण तोगड़िया द्वारा शुरू किया गया अंतरराष्ट्रीय हिंदू परिषद भी था. राज्य की सड़कों पर अयप्पा मंत्रों के नारे लगाते हुए विरोध प्रदर्शन किया गया. हालांकि, एंबुलेंस और मरीजों को लेकर जाने वाली अन्य गाड़ियों को भीड़ ने रास्ता दिया, ताकि किसी की जान न जाए. इसी बीच इडुक्की की एक महिला कार्यकर्ता अंबिलि ने अपने ऊपर पेट्रोल डालकर आग लगा ली, लेकिन पुलिस ने तुरंत ही आग बुझा दी और महिला की जान बच गई. पंडालम में सबसे बड़ा प्रदर्शन देखा गया, जहां अयप्पा धर्म संरक्षण समिति ने पंडालम शाही परिवार के नेतृत्व में मार्च निकाला और मंगलवार को 'अयप्पा धर्म संरक्षण दिवस' के रूप में माना गया.
विरोध कर रहे लोगों की मांग है कि सुप्रीम कोर्ट सबरीमाला मंदिर को लेकर सुनाए गए फैसले पर फिर से विचार करे. उन्हें लगता है कि सुप्रीम कोर्ट को सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल की महिलाओं के वर्जित प्रवेश को वर्जित ही रहने देना चाहिए था. बहुत सी महिलाएं 'अयप्पा शरणम' के नारे लगा रही थीं. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि महिलाएं कहीं से भी पुरुषों से कमतर नहीं हैं और मंदिर में उनके प्रवेश पर लगी रोक भेदभाव को जन्म देती है. लेकिन महिलाओं के हक में गया ये फैसला ही अब महिलाओं के विरोध की वजह बन चुका है. महिलाएं खुद नहीं चाह रही हैं कि सबरीमाला मंदिर को भेदभाव का पैमाना समझा जाए. खैर, सड़कों पर तो ये प्रदर्शन मंगलवार को हुआ, लेकिन सोशल मीडिया पर इस फैसले का विरोध तभी शुरू हो गया था, जब ये फैसला सुनाया गया था.
Thousands of women throng to protect their culture against the #SabariMala verdict. These women are #ReadytoWait inspite the court ruling. What a shame Supreme Court failed to gauge the deep rooted hindu sentiments. #SaveSabarimala #Sabrimalapic.twitter.com/8EagcSrPgI
— Geetika Swami (@SwamiGeetika) October 3, 2018
सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी समझ लें
सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर को सबरीमाला मंदिर पर अपना फैसला सुनाते हुए करीब 800 साल पुरानी परंपरा को तोड़ दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने हर उम्र की महिला को सबरीमाला मंदिर में घुसने की इजाजत दे दी. अभी तक सबरीमाला मंदिर में सिर्फ 10 साल से कम और 50 साल से अधिक उम्र की महिलाएं ही प्रवेश कर सकती थीं. माना जाता है कि अय्यप्पा भगवान ब्रह्मचारी हैं, इसलिए वह महिलाएं मंदिर में प्रवेश नहीं करतीं, जिन्हें मासिक धर्म होते हैं. 10 साल के बाद ही लड़कियों में मासिक धर्म शुरू होता है और 50 साल की उम्र तक खत्म हो जाता है.
ट्विटर की जनता खिलाफत में
जैसे ही दीपक मिश्रा की बेंच ने ये फैसला सुनाया, देखते ही देखते ट्विटर पर जनता दो हिस्सों में बंट गई. एक वो हिस्सा था, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तारीफ करते नहीं थक रहा था, और दूसरा वो हिस्सा था, जिसे ये फैसला फूटी आंख नहीं सुहा रहा था. देखिए कुछ ट्वीट, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को गलत कह रहे हैं और अपने तर्क दे रहे हैं.
बीजेपी महिला मोर्चा की नेशनल सोशल मीडिया इनचार्ज प्रीति गांधी इस फैसले से खुश नहीं हैं. प्रीति ने ट्वीट करते हुए कहा है कि महिलाएं मंदिर में क्यों नहीं जा सकतीं, इसका कारण है. भगवान अयप्पा को एक ब्रह्मचारी की तरह पूजा जाता है. अपनी वरीयताओं को सिर्फ एक बिंदु सिद्ध करने के लिए भगवान पर थोपना सही नहीं है.
There is a reason why women are not allowed inside the temple. Lord Ayyappa is worshipped in the form of a 'brahmchari' at Sabarimala. Forcing our preferences on a god who is an eternal celibate just to prove a point is certainly not the way to go about. #SabarimalaVerdict
— Priti Gandhi (@MrsGandhi) September 28, 2018
मानिनी ने कहा है कि ये महिलाओं की जीत नहीं है. इससे भारत के हर हिंदू को नुकसान होगा.
#SabarimalaVerdict is not a victory for women, it is a loss for every Hindu in India. I mourn for my dharma and my plight in the land of my ancestors.
— Manini ♀ (@CuriousKudi) September 28, 2018
महिलाओं का एक समूह ऐसा भी था, जिसने ये कहा था कि यदि फैसला उनके हक में भी आ जाता है तो उन्हें कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता. अपनी श्रद्धा और विश्वास के चलते वो मंदिर में प्रदेश नहीं करेंगी. यदि हमें इस बात को समझना हो तो हम इसे एक ट्वीट के जरिए बहुत ही आसानी के साथ समझ सकते हैं.
Good that SC opens gates for women to #Sabarimala temple .But I as a Hindu women will never enter till age of 50.That's my devotion and no one can play with it.And I am sure there are women like me who would be on my side.#SabarimalaVerdict
— purva bhargava (@BhargavaPurva) September 28, 2018
कुछ साल पहले चला था #ReadyToWait
जब से सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश दिलाने की मांग शुरू हुई थी, तभी से महिलाओं को एक तबका इसके खिलाफ था. करीब दो साल पहले तो #ReadyToWait भी ट्विटर पर चला था, जिसमें महिलाओं ने अपनी बात कही थी. इस हैशटैग के साथ महिलाओं का कहना था कि वह मंदिर में पूजा करने के लिए 50 साल की उम्र तक का इंतजार कर सकती हैं. इसके लिए उन्होंने बाकायदा पोस्टर और बैनर लिए हुए अपनी तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर की थीं.
इन महिलाओं को लगता है कि सबरीमाला की परंपरा सही है और वह 50 साल की उम्र तक का इंतजार करेंगी.
गांधी जयंती को ही दीपक मिश्रा रिटायर हुए और इसी दिन केरल की सड़कों पर उनके फैसले का विरोध भी हुआ. इसी दिन राजधानी दिल्ली में किसानों पर लाठियां भी बरसीं. केरल में महिलाओं के विरोध प्रदर्शन का अभी हल नहीं निकला है. हल होगा भी क्या? सालों से इस बात की लड़ाई चली आ रही थी कि महिलाओं के साथ भेदभाव हो रहा है, उन्हें भी मंदिर में घुसने की इजाजत मिलनी चाहिए. अब इजाजत मिली है तो न सिर्फ पुरुषों का एक वर्ग बल्कि बहुत सारी महिलाएं भी इस फैसले के विरोध में सड़क पर उतर आई हैं. तो क्या महिलाएं खुद ही महिलाओं की दुश्मन बन गई हैं? या कहीं श्रद्धा से जुड़े इस मामले को महिला-पुरुष बराबरी का मामला समझकर सुप्रीम कोर्ट ने गलती की है?
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