Safoora zargar bail पर समर्थक खुश न हों, इसके पीछे तमाम नियम और शर्ते हैं!
दिल्ली दंगों की साजिश रचने के केस (Delhi riots conspiracy case) में सफूरा जरगर को जमानत (Safoora Zargar Bail) दिए जाने के बाद उनके समर्थक फूले नहीं समां रहे हैं मगर उन्हें समझना चाहिए कि जमानत की शर्तों ने सफूरा पर लगे आरोपों की गंभीरता को अंडरलाइन ही किया है.
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एंटी सीएए प्रोटेस्ट (Anti CAA Protest) के दौरान पूर्वी दिल्ली में दंगे भड़काने (Delhi riots conspiracy case) के आरोपों के चलते बीते अप्रैल में अपने घर से गिरफ्तार हुई और तिहाड़ जेल में बंद रही जामिया मिल्लिया इस्लामिया (Jamia Millia Islamia ) की एमफिल की छात्रा सफूरा जरगर (Safoora Zargar) को आखिरकार राहत मिल गई. कोर्ट ने सफूरा की जमानत (Safoora Zargar Bail) मंजूर कर ली है. बता दें कि दंगा भड़काने के संगीन आरोपों के सिलसिले में जेल में बंद सफूरा 3 माह की गर्भवती हैं और उनको ये जमानत मानवीय आधार पर दी गयी है. खबर से वो तमाम लोग खुश हैं जो इस गिरफ्तारी को अमानवीय बता रहे थे और कह रहे थे कि अपने इस फैसले से सरकार ने जामिया की छवि बदनाम करते हुए एक निर्दोष को फंसाने के काम किया है. सफूरा को जमानत मिलने से भले ही उनके समर्थक फूले न समा रहे हों. मगर उन्हें जान लेना चाहिए कि सफूरा पर लगे आरोप बेहद संगीन हैं. सफूरा पर लगे आरोपों की गंभीरता कैसी है? इसका अंदाजा उन शर्तों (Safoora Zargar Bail Rules) से लगाया जा सकता है जो उनके सामने जमानत मिलने के ठीक पहले रखी गयी हैं.
सफूरा जरगर को जमानत तो मिल गयी है मगर उनपर तमाम तरह की शर्तें भी लगाई गयी हैं
जी हां बिल्कुल सही सुना आपने आज भले ही सफूरा को जमानत मिल गयी हो मगर इस जमानत में तमाम तरह के नियम और शर्ते हैं और अब ये पूर्णतः सफूरा पर निर्भर करता है कि वो नियमों का पालन करती हैं या फिर अपने स्वभाव के मुताबिक उनका उल्लंघन.
#SafooraZargar has been granted bail on humanitarian grounds. This is good news, but she should have been granted bail in the first week of arrest because she meets all the legal conditions for bail.
— Faye DSouza (@fayedsouza) June 23, 2020
बताते चलें कि जिस वक्त जमानत की सुनवाई कोर्ट में चल रही थी दिल्ली पुलिस की ओर से कोर्ट में पेश हुए वरिष्ठ वकील तुषार मेहता ने कहा था कि यदि सफूरा को मानवीय आधार पर जमानत दी जाती है तो सरकार को इसमें कोई आपत्ति नहीं है. साथ ही उन्होंने ये भी कहा था कि सफूरा पर यह शर्त लगाई जाए कि उसके खिलाफ जिस तरह के आरोप हैं, उस तरह की गतिविधियों में वह शामिल नहीं होगी. और अपने खिलाफ चल रही जांच में मदद करने के लिए हर वक्त दिल्ली पुलिस के जांच अधिकारी के समक्ष हाज़िर होगी.
Delhi HC grants regular bail to Safoora on furnishing a personal bond of ₹10k and on the following conditions:a. She should not indulge in activities she is being investigated forb. She should refrain from hampering investigation
— Live Law (@LiveLawIndia) June 23, 2020
भले ही अटॉर्नी जनरल तुषार मेहता की ये दलील अंत में दिल्ली हाईकोर्ट के जमानत आदेश का हिस्सा न बनी हो मगर जो नियम कोर्ट ने सफूरा की जमानत के सिलसिले में रखे हैं उनको देखकर साफ हो गया है कि यदि सफूरा ने उनका सही ढंग से पालन किया तो इसमें फायदा किसी और का नहीं बल्कि स्वयं सफूरा का है.
इस पूरे विषय पर कुछ और बात करने से पहले हमारे लिए उन नियम और शर्तों पर बात करना और उन्हें समझना बहुत जरूरी हो जाता है जिसके आधार पर दिल्ली हाई कोर्ट ने जामिया मिल्लिया इस्लामया की छात्रा सफूरा जरगर को जमानत दी है.
1- जमानत से पहले न्यायमूर्ति राजीव शेखर की पीठ ने सफूरा को कोर्ट के सामने 10 हज़ार रुपए का बॉन्ड पेश करने को कहा है. साथ ही ये भी कहा है कि सफूरा को उन गतिविधियों में लिप्त नहीं होना चाहिए जिनकी जांच की जा रही है.
2- सफूरा को जांच में बाधा डालने से बचना चाहिए.
3- यदि सफूरा को किसी काम के सिलसिले में दिल्ली छोड़ना पड़ा तो उन्हें दिल्ली छोड़ने से पहले संबंधित अदालत की अनुमति लेनी होगी.
4- सफूरा को हर 15 दिनों में एक बार फोन के जरिये मामले के आईओ से संपर्क करना होगा और अपनी स्थिति से अवगत कराना होगा.
सफूरा की ये जमानत इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि कोर्ट ने साफ़ कर दिया है कि जमानत के इस आदेश को किसी अन्य मामले में मिसाल के रूप में नहीं माना जाना चाहिए. गौरतलब है कि 10 अप्रैल को दिल्ली के जामिया नगर से दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल द्वारा गिरफ्तार की गई सफूरा ज़रगर ने ट्रायल कोर्ट से अपनी ज़मानत खारिज होने के 4 जून के आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट में चैलेंज किया था.
उस वक़्त सफूरा की जमानत याचिका को ख़ारिज करते हुए ट्रायल कोर्ट ने कहा था कि 'जब आप अंगारे के साथ खेलना चुनते हैं, तो आप हवा को दोष नहीं दे सकते कि चिंगारी थोड़ी दूर तक पहुंच जाए और आग फैल जाए.' साथ ही ट्रायल कोर्ट ने ये भी कहा था कि जांच के दौरान एक बड़ी साजिश की जांच की गई और अगर किसी साजिशकर्ता द्वारा किए गए षड्यंत्र, कृत्यों और बयानों के सबूत थे, तो यह सभी के खिलाफ स्वीकार्य है.
दिल्ली हिंसा में सफूरा की भूमिका पर बात करते हुए अदालत ने कहा था कि भले ही आरोपी (जरगर) ने हिंसा का कोई काम नहीं किया था, वह गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत अपने दायित्व से नहीं बच नहीं सकती.
बहरहाल, अब जबकि सफूरा को बेल मिल गयी है तो देखना दिलचस्प रहेगा कि वो अपनी पिछली गलतियों से सबक लेती हैं या फिर उनके बागी तेवर और बहुत ही कम समय में मिली लाइम लाइट उन्हें दोबारा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आंदोलन करने के लिए बाध्य करती है. सवाल तमाम हैं. जवाब वक़्त देगा. फ़िलहाल अच्छे दिन सफूरा और उनके समर्थकों के आए मुराद कोर्ट ने कुछ घंटों की सुनवाई में पूरी कर दी है.
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