सागर की हत्या अपमान का बदला था, तो चैन से क्यों नहीं हैं सुशील कुमार?
एक कहावत है बदले की भावना में इंसान अंधा हो जाता है. सुशील कुमार (Sushil Kumar) पर यह लाइन एकदम सटीक बैठती है. एक ओलंपियन खिलाड़ी के पतन की कहानी फिल्मी लग सकती है, लेकिन यह आने वाली जनरेशन के लिए एक बड़ा सबक है.
-
Total Shares
एक कहावत है बदले (revenge) की भावना में इंसान अंधा हो जाता है. सुशील कुमार (Sushil Kumar) पर यह लाइन एकदम सटीक बैठती है. एक ओलंपियन खिलाड़ी के पतन की कहानी फिल्मी लग सकती है, लेकिन यह आने वाली जनरेशन के लिए एक बड़ा सबक है. असल में इंसान की फितरत है कि जब उसे कुछ पसंद नहीं आता, किसी कारण उसका नुकसान हो जाता है, या फिर अगर उसे अपमान महसूस होता है तो उसके अंदर बदले की भावना जन्म लेती है.
अक्सर देखा जाता है कि जब दो लोगों का झगड़ा होता है तो एक-दूसरे से बदला लेने की कोशिश की फिराक में रहते हैं. वे बदला लेने का प्लान बना लेते हैं लेकिन आखिर में हासिल कुछ नहीं होता. उल्टा नफरत के चक्कर में उनकी ही जिंदगी बर्बाद हो जाती है.
सुशील कुमार ने कॉलर पकड़ने का लिया बदला?
अब सुशील कुमार को ही ले लीजिए, कैसे कुछ दिनों पहले तक वह देश का शान था और अब बदला लेने के चक्कर में अपनी सारी मेहनत और शोहरत पर खुद ही पानी फेर लिया. जो लोग सुशील की तारीफ करते नहीं थकते थे अब वही उसे ट्रोल कर रहे हैं और मांग कर रहे हैं कि उसके सभी अधिकार छीन लिए जाएं. लोग सोशल मीडिया पर रिएक्शन दे रहे हैं कि सुशील को सजा हो, यह खिलाड़ी के नाम पर धब्बा साबित हुआ.
दरअसल, जूनियर पहलवान सागर धनखड़ हत्याकांड (Sagar Dhankar Murder Case) केस में सुशील कुमार और उसके साथी दिल्ली पुलिस की रिमांड पर हैं. चलिए आपको बताते हैं कि वारदात वाली रात में बदले की पूरी कहानी क्या है.
सुशील कुमार के साथ उस दिन क्या हुआ था
पहलवान सागर धनखड़ की मौत 4 मई की रात छत्रसाल स्टेडियम (Chhatrasal Stadium) में हुई थी. यह गुस्से में आकर की गई लड़ाई नहीं थी बल्कि इसकी बाकायदा प्लानिंग की गई थी. यानी बदला लेने के लिए पहले से ही साजिश रची गई थी. दरअसल, वारदात वाले दिन सुशील कुमार जब दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम आया था तो उसके साथ अधिक पहलवान नहीं थे. वहीं अचानक उसकी कुख्यात गैंगस्टर काला जठेड़ी के भांजे सोनू, सागर, अमित, भक्तु, रविंद्र और विकास से कहासुनी के बाद झगड़ा हो गया.
उन लोगों ने सुशील कुमार को जबरदस्त तरीके से अपमानित किया और हावी होकर उसकी शर्ट का कॉलर पकड़ लिया. इसके बाद उन्होंने सुशील को बाद में देख लेने की धमकी देते हुए दौड़ाया भी. इतना होने के बाद सुशील स्टेडियम से तो चला गया लेकिन उसने मन में अपमान का बदला लेने की ठान ली. उसे अपनी यह बेइज्जती बर्दाश्त नहीं हुई. गुस्से और तनाव में आकर उसने उसी दिन बदला लेने की ठान ली कि अब तो वह उन्हें सबक सिखाकर ही मानेगा. माना जा रहा है कि यह लड़ाई दिल्ली मॉडल टाउन वाले फ्लैट को लेकर हुई थी.
बदला लेने के लिए पागल सुशील ने कुख्यात नीरज बवाना और असौदा गिरोह के बदमाशों का सहारा लिया. कुछ घंटों में ही सुशील ने हरियाणा से बदमाशों को बुला लिया और उसी रात सोनू, सागर और उनके बाकी साथियों की बुरी तरह से पिटाई कर दी. घटना में सागर के सिर पर गंभीर चोट लग गई, जिस कारण अस्पताल में उसकी मौत हो गई.
बदला की भावना को लेकर क्या कहती है स्टडी
एक अध्ययन के अनुसार, इंसान बदला लेने के बाद खुद को नॉर्मल महसूस करता है. अपमानित होने के बाद जब वह सामने वाले से किसी भी तरह से बदला ले लेता है तो उसे लगता है कि अब सब सामान्य है. वह खुद को भी नॉर्मल महसूस करता है. जबकि बदला लेने की भावना अपने साथ 10 और मुसीबत लेकर आती है.
यह रिसर्च पर्सनैलिटी ऑफ सोशल साइकोलॉजी जर्नल में प्रकाशित है. इस अध्ययन की मानें तो ऐसे मामलों में लोग खुद को बैलेंस करने के लिए ही बदला लेने की सोचते हैं. जब वे अपमानित या उपेक्षा करने वाले शख्स से बदला ले लेते हैं तो खुद को पहले की तरह ठीक महसूस करने लगते हैं.
असल में गुस्सा, नफरत और बदले की भावना, तबाही को जन्म देती है. जब कोई इंसान किसी से नफरत करता है तो वह उसकी ही जिंदगी जीने लगता है. वह खुद को भूल जाता है. वह अपनी खुशी से खुश ना होकर उसके दुख से अच्छा महसूस करता है. उसके अंदर इतनी नेगेटिविटी भर जाती है कि वह हर वक्त सामने वाले को नुकसान पहुंचाने की सोचने लगता है. इस तरह वह अपनी लाइफ खराब कर लेता हैं. बदले की भावना हमेशा ही दुख लेकर आती है चाहे नफरत कम हो या ज्यादा, इसका परिणाम हमेशा तबाही लाता है.
कई लोग बदले की आग में जलकर सामने वाले को सबक सिखाना चाहते हैं. उनका पूरा समय बाकी बातों से हटकर उसपर ही हावी हो जाता है. इसी कारण कई लोग आपराधिक घटना को अंजाम देने की कोशिश करते हैं और फिर अपनी लाइफ बर्बाद कर लेते हैं फिर सड़ते रहते हैं जेल की चारदीवारी में.
ऐसे बदले से क्या हासिल हुआ. उनके पीछे पूरा-परिवार भी तबाह हो जाता है. नौकरी छूट जाती है, अवार्ड छीन लिए जाते हैं और समाज में बदनामी होती है फिर जो इज्जत का फालूदा बनता है वो आप सुशील कुमार केस में देख ही रहे हैं.
बदले वाली रात की पूरी फिल्मी कहानी
सुशील ने हरियाणा से दिल्ली आए अजय और अन्य साथियों को एक जगह बुलाया. सबने मिलकर खाना खाया और शराब पी. करीब रात 12 बजे सभी 5-6 कारों में सवार होकर रात 12 बजे शालीमार बाग में रविंद्र के घर गए. रविंद्र घर के नीचे ही आइसक्रीम खा रहा था. रविंद्र और उसके दोस्त विकास को इन लोगों ने कार में अगवा कर लिया.
इसके बाद वे मॉडल टाउन स्थित सोनू के फ्लैट पर पहुंचे. इसके बाद वे सोनू, सागर धनखड़, अमित और भक्तु को उठाकर रात 1 बजे के आस-पास छत्रसाल स्टेडियम ले आए. जहां पार्किंग एरिया में सभी छह पहलवानों को घेरकर लाठी, डंडे और हॉकी स्टिक से पिटाई शुरू कर दी. सुशील, 15 बदमाशों के साथ मिलकर उन्हें मार रहे था. वहीं रविंद्र भागने में सफल रहा और उसने ही उसने पीसीआर कॉल की. पुलिस का सायरन सुनते ही बदमाश अपनी गाड़ियां मौके पर ही छोड़कर फरार हो गए. कुछ तो स्टेडियम के पिछले गेट से निकल गए.
घायल सागर को बाबू जगजीवन राम अस्पताल ले जाया गया. जहां एम्स ट्रॉमा सेंटर में शिफ्ट करने बाद सुबह उसकी मौत हो गई. वहीं पोस्टमार्टम रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि सागर को मल्टीपल फ्रैक्चर थे. उसकी सिर की कई हड्डियां टूटी हुईं थीं और दिमाग में चोट लगने की वजह से उसकी जान चली गई.
बदला लेने से बेहतर था ये विकल्प...
ऐसा माना जाता है कि बदला लेने से अच्छा है खुद को बदल लेना ही है. सुशील का हाल तो आपने देख ही लिया. जो सुशील लोगों की आंखों का तारा था आज वह सबकी नजरों से गिर चुका है. ऐसे बदले का क्या फायदा जो आपको खुद ही तबाह कर दे. वैसे भी किसी से बदला लेने से आप और आपके दुश्मन के बीच कोई फर्क नहीं रहता.
ऐसा कहा जाता है कि बदला लेना साहस की नहीं बल्कि कमजोरी की निशानी होती है. जो लोग दुश्मनी करने और बदला लेने में विश्वास रखते हैं वे तो कायर और कमजोर ही कहलाएंगे. उन्हें साहसी बोलकर वीरता का इनाम तो नहीं दिया जा सकता. बदला लेने की भावना इंसान को खुद ही अंदर से जला देती है.
बदला लेने वाला इंसान खुद ही अपनी सफलता के रास्ते बंद कर देता है. इससे बेहतर तो सामने वाले को माफी देना है. इससे कम से कम मन तो शांत रहता है. सुशील ने सागर से बदला लेने के लिए प्लान बनाया और खुद का सबकुछ तबाह कर लिया. कॉलर पकड़ने पर अगर बेइज्जती महसूस हुई तो क्या अब किसी को मार देने से फूल बरस रहे हैं या ऐसी गिरी हुई हरकत करने के लिए उसकी आरती उतारी जा रही है...
आपकी राय