ये माएं कुछ खास हैं..
मां का अस्तित्व बच्चों से होता है और इन खास माताओं का अस्तित्व भी उनके खास बच्चों की वजह से ही है. ये हैं स्पेशल मॉम्स, यानि खास बच्चों की खास माएं. विशेष जरूरतों वाले इन बच्चों को बड़ा करना किसी चुनौती से कम नहीं होता.
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एक औरत जब मां बनती है, उस दिन से उसका जीवन अपने बच्चे को समर्पित हो जाता है. पर कुछ माएं ऐसी हैं जिनका मां होना किसी युद्ध से कम नहीं होता, मां के रूप में जीवन भर संघर्ष करना जिनकी नियती है. मां का अस्तित्व बच्चों से होता है और इन खास माताओं का अस्तित्व भी उनके खास बच्चों की वजह से ही है. ये खास इसलिए भी हैं क्योंकि उनके गुण उन्हें सबसे जुदा बनाते हैं. ये हैं स्पेशल मॉम्स, यानि खास बच्चों की माएं. विशेष जरूरतों वाले इन बच्चों को बड़ा करना किसी चुनौती से कम नहीं होता.
ये समान्य माताओं से किस तरह अलग हैं, इनके संघर्ष दूसरी माताओं से क्यों ज्यादा होते हैं, उसे कुछ उदाहरणों द्वारा बताने की ये सिर्फ एक कोशिश है.
- लगभग हर घर में माएं सुबह अपने बच्चों को उठाती हैं और उनसे तैयार होने को कहती हैं. बच्चे उठकर रेडी हो जाते हैं. लेकिन स्पेशल मॉम्स के लिए सुबह अपने बच्चों को उठाना और तैयार करना किसी जंग से कम नहीं होता. माएं अपने बच्चों से सिर्फ पूछती हैं- 'तुमने ब्रश कर लिया? लेकिन स्पेशल मॉम्स पूछती नहीं, बल्कि उन्हें ब्रश करने के लिए प्रेरित करती हैं- 'ऊपर वाले दांत ब्रश करो. अब नीचे वाले दांत ब्रश करो. क्या तुमने साइड में ब्रश किया? अपना मुंह खोलो. ओहो..लाओ मुझे दो ब्रश. देखो तुम्हारा खाना अभी भी तुम्हारे दातों में लगा हुआ है.'
- माएं बच्चों के लिए फेवरेट खाना बनाती हैं, बच्चे मन से खाना खाते हैं. मां पूछती हैं- 'खाना कैसा बना है?', जबकि स्पेशल मॉम्स अपने हाथों से बच्चों को खाना खिलाती हैं, और कुछ पूछने के बजाए बस बच्चों को प्यार कर लेती हैं.
- स्कूल जाते समय माएं बच्चों को हाथ हिलाकर बाय करती हैं, बच्चे दौड़कर बस पकडते हैं. जबकि ये स्पेशल मॉम्स बच्चों को बस की सीट पर बैठाकर आती हैं.
- दुकान में जब कोई बच्चा ज्यादा नखरे करता है तो माएं उसकी मां की आलोचना करती हैं. स्पेशल मॉम्स खुद से कहती हैं 'मैं जानती हूं कि इस बच्चे में कौन सी अक्षमता है'
- माओं की सोशल लाइफ काफी एक्टिव होती है. वो पार्टियों में जाती हैं, रिश्तेदारों के यहां जाती हैं. लेकिन स्पेशल मॉम्स की सारी दुनिया उनके बच्चे होते हैं.
- माएं अपने बच्चों को स्पोर्ट्स और हॉबी क्लासेस करवाती हैं, बहुत सी माएं तो बच्चों को क्लास के लिए छोड़कर आने से भी बचती हैं. लेकिन ये स्पेशल मॉम्स मुस्कुराते हुए हर रोज या हर सप्ताह बच्चों को लेकर स्पेशल एजुकेटर, डॉक्टर और थेरेपिस्ट के चक्कर लगाती हैं.
- माताओं के बच्चों के पास टीचर होते हैं, जबकि स्पेशल मॉम्स के बच्चों के पास टीचरों की पूरी टीम होती है.
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- बच्चों के संदर्भ में माएं परफैक्शन की बात करती हैं. लेकिन स्पेशल मॉम्स स्किल्स की बात करती हैं, जैसे- खेलने का कौशल, बातचीत करने का कौशल, लाइफ स्किल्स, सोशल स्किल्स और वोकेशनल स्किल्स .
- गर्मियों की छुट्टियों में माताएं बच्चों के साथ छुट्टियां मनाती है, रिलैक्स होती हैं. लेकिन स्पेशल मॉम्स छुट्टियों में अपने बच्चों के लिए खुद ही होम टीचर, थैरेपिस्ट और कोच बन जाती हैं.
- माएं अपने बच्चों के शानदार करियर के सपने देखती हैं. लेकिन स्पेशल मॉम्स अपने बच्चों के लिए अच्छे अवसरों की उम्मीद करती हैं.
- माताएं रिलैक्स होने के लिए टीवी देख सकती हैं, फिल्में देख सकती हैं, म्यूजिक सुन सकती हैं, लेकिन स्पेशल मॉम्स को बाथरूम जाकर फ्रेश होने का ब्रेक मिलना भी बहुत बड़ी चीज है.
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- माएं किसी बेस्ट सेलर किताब को पढ़ना पसंद करती हैं, जबकि उस हिसाब से स्पेशल मॉम्स को तो स्पेशल नीड्स की सारी पुस्तकें पढ़ने के लिए डिग्री दी जानी चाहिए.
- माएं महीने में एक बार अपने पति के साथ डिनर पर या फिल्म देखने जाती हैं. जबकि स्पेशल मॉम्स को सोचना पड़ता है कि पति के साथ आखिरी बार समय कब बिताया था.
- करीब करीब सारे बच्चे प्ले ग्रुप में जाते हैं, जबकि स्पेशल मॉम्स के बच्चे थैरेपी ग्रुप में.
- माएं किटी पार्टी में जाती हैं, जबकि स्पेशल मॉम्स सपोर्ट ग्रुप, स्पेशल नीड वर्कशॉप या फोरम में जाती हैं.
- माओं को लगता है OT मतलब ओवर टाइम या ऑपरेशन थिएटर होता है, जबकि स्पेशल मॉम्स की वोकैबलरी किसी इंजीनियर से भी ज्यादा होती है.
यूं तो हर एक बच्चा अपने माता-पिता की परछांई होता है, लेकिन हर एक स्पेशल बच्चा जो कुछ भी सीख रहा है, अपनी अक्षमताओं से लड़ रहा है, उसकी हर उपलब्धि अपनी मां के समर्पण और उसकी मेहनत के बदौलत ही होती है.
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