मक्का में महिला की जीत के मायने
जब भी सऊदी अरब के महिलाओं की बात होती है तो उन पर लागू सामाजिक पाबंदिया ही चर्चा का केंद्र बन जाती हैं. लेकिन इन सबके बावजूद जब साऊदी की महिलाओं में शिक्षा की बात करें तो आंकड़े चौंकाने वाले हैं.
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सऊदी अरब के निकाय चुनावों में जब महिलाओं को वोट डालने और चुनाव लड़ने की इजाजत मिली तो वहां ये किसी बड़े 'टैबू' के टूटने जैसा था. समूची दुनिया की मीडिया का ध्यान इस चुनाव पर लग गया. अब जबकि पिछले हफ्ते हुए चुनाव के नतीजे सामने आए तो साबित हो गया कि दुनिया के इस क्षेत्र में जहां बिना पुरुष के महिलाओं के घर से बाहर निकलने पर पाबंदी है, वहां बहुत कुछ बदल रहा है. इस चुनाव में 20 महिलाओं ने जीत हासिल की.
ऐसे नतीजे की उम्मीद किसी ने भी नहीं की थी. रियाद से सबसे ज्यादा चार महिलाओं ने जीत हासिल की. मुसलमानों के पवित्र मक्का शहर के मदरकाह इलाके से सलमा बिंत हिजाब अल-ओतिबी जीत हासिल करने में कामयाब रहीं. कासिम से भी एक महिला उम्मीदवार के चुनाव जीतने की खबर आई है. यह सऊदी अरब का सबसे रूढीवादी इलाका है.
मक्का से जीतने वालीं सलमा बिंत हिजाब अल-ओतिबी |
सऊदी में महिलाओं की शिक्षा
जब भी सऊदी अरब के महिलाओं की बात होती है तो उन पर लागू सामाजिक पाबंदिया ही चर्चा का केंद्र बन जाती हैं. लेकिन इन सबके बावजूद जब साऊदी की महिलाओं में शिक्षा की बात करें तो आंकड़े चौंकाने वाले हैं. और यह भारत के लिए भी एक सीख है. वहां महिलाओं में साक्षरता दर 91 फीसदी है. सऊदी अरब के शिक्षा मंत्रालय के एक आंकड़े के अनुसार 2009 में 59,948 लड़कियों ने स्नातक की डिग्री हासिल की जबकि पुरुषों की संख्या उनसे कम 55,842 ही रही. सऊदी में महिलाओं की उच्च शिक्षा को लेकर पहल काफी पहले 1962 में रियाद में शुरू हो गई थी. तब महिलाओं को पढ़ाई घर से ही करनी होती थी और वे केवल परीक्षा देने के लिए संस्थान में आ सकती थी.
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इस कार्यक्रम के जरिए कोशिश यह थी महिलाएं बेहतर शिक्षा हासिल कर अच्छी गृहणी और मां होने का फर्ज निभाएं. फिर महिलाओं के लिए कॉलेज और स्कूल खुलने लगे. यहां से उनकी शिक्षा दर में तेजी से बदलाव आया. भारत में तस्वीर इसके उलट है. 2011 के आंकड़े के अनुसार यहां महिलाओं में शिक्षा दर केवल 65.46 फीसदी है.
सामाजिक बराबरी में पिछड़ी सऊदी महिलाएं
इसमें कोई दो राय नहीं कि शिक्षा के मामले में सऊदी अरब की महिलाएं कई देशों से आगे हैं. लेकिन इसके बावजूद उनकी प्रतिभा का सही इस्तेमाल नहीं हो सका है. जाहिर तौर पर इसका कारण वहां का रुढ़िवादी समाज है. सऊदी में महिलाएं अकेले या परिवार की इजाजत के बगैर घर से बाहर नहीं जा सकती. पुरुष की इजाजत के बगैर नौकरी नहीं कर सकतीं. अजनबी पुरुषों से बात नहीं कर सकती. अपनी मर्जी से शादी या कहीं यात्रा तक नहीं कर सकतीं. यहां तक कि वहां उनके लिए गाड़ी चलाना भी अपराध है.
फिर भी सऊदी का ये चुनाव वहां की महिलाओं के लिए किसी उम्मीद से कम नहीं. जब चुन कर आई कोई महिला पहली बार वहां की शासन व्यवस्था में हिस्सेदारी निभाएगी.
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