सीवर की भीतर उतरा 30 साल का युवक बाहर आकर 50 का हो गया
महज 35 दिन में देश की राजधानी दिल्ली में 10 सफाई कर्मचारी अपनी जान गंवा बैठे और 1 दर्जन से अधिक अस्पताल में जीवन और मौत के बीच झूल रहे है, क्यों इनकी मौतों से सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता.
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मैंने 15 अगस्त को कहा था ठेकेदारी प्रथा ख़त्म हो।आज NDMC मीटिंग में ठेकेदारी प्रथा ख़त्म करने का निर्णय हुआ।सभी ग़रीब मज़दूरों को बधाई
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) August 21, 2017
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का यह ट्वीट देखकर मेरा मन खुशी की बजाय और सोच में डूब गया. क्योंकि दिल्ली में बीते 35 दिनों में जिन 10 मजदूरों की मौत हुई है वह सभी ठेके पर ही काम करते थे. ठेकेदारों ने ही उन्हें बगैर तैयारी के सफाई के लिए नीचे सीवर में उतारा था जहां उनकी दम घुटने से मौत हो गई. मरने वाले सभी ठेके पर काम करने वाले मजदूर थे.
केजरीवाल जी ने केंद्र सरकार के अधीन आने वाली एनडीएमसी से ठेकेदारी खत्म करने की बात कर दी, पर उनके अधिकार वाली दिल्ली सरकार में ठेकेदारी प्रथा जारी है. दिल्ली में कवरेज करने के दौरान मैं कई मृतक सफाई कर्मचारियों के घर गया, जानने की कोशिश की थी कि आखिर क्या वजह है जो आजादी के 70 साल बाद भी देश की राजधानी दिल्ली में किसी को नंगे बदन मौत के चेंबर में उतरना पड़ता है.
क्यों कोई भी सफाई कर्मचारी अपने लिए किट की मांग नहीं करता और कोई क्यों बगैर तैयारी के नीचे उतर जाता है.
दिल्ली के मुख्यमंत्री बीते दिनों लाजपत नगर में सीवर की सफाई करने के दौरान जान गंवा चुके जोगिंदर के घर पहुंचे थे, वहां उन्होंने 10 लाख रुपए की मदद देने का आश्वासन दिया.
सीवर की सफाई के दौरान मारा गया था जोगिंदर
हम जोगिंदर के घर पहुंचे यहां पता चला जोगिंदर के बाकी तीन भाई भी इसी काम में थे लेकिन समय रहते उन्होंने इस काम से दूरी बना ली. जोगिंदर के बड़े भाई विजय ने सीवर सफाई का काम 4 साल तक किया है, महज चार साल में शरीर का भारी नुकसान हो गया, सिर के बाल झड गए, शरीर की खाल जल गई, आंखों से कम दिखने लगा. 30 साल का विजय 50 साल का दिखने लगा. जिसके बाद विजय ने इस काम से तौबा कर ली थी.
जोगिंदर का भाई विजय, जो अब ये काम छोड़ चुका है
विजय ने बताया कि उस रोज भी एक ठेकेदार मेरे भाई को सीवर की सफाई के नाम पर घर से ले गया था, मेरे भाई के साथ दो और सफाईकर्मी थे, बिना किट के ठेकेदार ने जोगिंदर को नीचे उतार दिया, थोड़ी देर बाद जोगिंदर की तलाश में दो और मजदूर नीचे गए तो वह भी उसी जहरीली गैस की चपेट में जान गंवा बैठे.
दरअसल दिल्ली में बड़े गटर और सीवर की सफाई की जिम्मेदारी PWD और जल बोर्ड विभाग की है, दोनों ही विभाग दिल्ली सरकार के अधीन है, हर साल करोड़ों रुपए सीवर सफाई के लिए जारी किए जाते हैं लेकिन अधिकारी यह काम सरकारी कर्मचारियों से कराने के बजाय ठेकेदारों को दे देते हैं जिसके बाद ठेकेदार चंद पैसो के लालच में बगैर किसी सेफ्टी का ख्याल रखे ठेका मजदूरों से कराते है. और बिना सेफ्टी किट के मजदूरों को नंगे बदन नीचे उतार दिया जाता है.
ऐसे ही कहानी आनंद विहार इलाके की भी है जहां पर दो सगे भाई सेप्टिक टैंक में उतरे और जहरीली गैस की चपेट में आ गए काफी देर तक आवाज ना आने से घबराए उनके बुजुर्ग पिता आनन फानन में अपने बेटे की जान बचाने के लिए टैंक में कूद गए.
हालांकि पिता को तो फायर ब्रिगेड कर्मी ने बचा लिया लेकिन दो जवान बेटे अपनी जान गंवा बैठे. अब बुजुर्ग पिता का सहारा सहारा छिन गया है उन्हें अपने छोटे-छोटे नाती पोता के भविष्य अंधकार में डूबा हुआ नजर आ रहा है.
देखिए वीडियो
सुप्रीम कोर्ट का आदेश ताक पर
सुप्रीम कोर्ट का साफ आदेश है कि सीवर की सफाई के लिए कोई भी व्यक्ति को नीचे नहीं उतारा जाएगा केवल मशीन द्वारा ही सीवर सफाई होगी लेकिन हैरानी की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश वही की चारदीवारी के भीतर ही सिमट कर रह जाता है.
2013 में पास किया गया मैनुअल स्कैंवेंजर एंड रिहैबिलिटेशन एक्ट के अधिनियम के तहत किसी भी सफाई कर्मचारी को किसी भी रूप में मैला साफ नहीं करवाया जा सकता. ऐसा करने पर सज़ा हो सकती है.
नियोजन और उनके पुनर्वास अधिनियम 2013 के अनुच्छेद 6 के अनुसार सीवर सफाई के लिए किसी भी प्रकार का ठेका अमान्य है. और यदि बावजूद इसके भी किसी मज़बूरी में अगर सीवर या नाले में सफाईकर्मी उतारा जाता है तो उसे तमाम सुरक्षा उपकरण दिया जाए. और अगर यह नियम नहीं माना गया तो जो भी व्यक्ति सफाई कर्मचारी से यह काम करवा रहा है उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी.
हैरानी की बात है कि देश के दूरदराज और ग्रामीण इलाकों की बात तो छोड़िए, राजधानी दिल्ली में बीचों बीच वीआईपी इलाकों में इस तरह की घटनाएं होती हैं.
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