ये साइंस ही इंसानी नस्ल की जान लेगा !
हाल ही में एक ऐसी रिसर्च हुई है जो लड़का चाहने वाले लोगों के लिए रामबाण का काम करेगी. लेकिन मेडिकल साइंस की ये तरक्की कहीं इंसानी नस्ल के लिए खतरा न बन जाए ?
-
Total Shares
पुरुष प्रधान समाज के लिए एक और खुशखबरी है जनाब! एक नई रिसर्च आई है जिसमें ये बताया गया है कि गर्भधारण करने से पहले महिला का ब्लडप्रेशर इस बात पर असर डालता है कि होने वाला बच्चा लड़का होगा या लड़की. जी हां, रिपोर्ट के मुताबिक अगर प्रेग्नेंट होने से पहले महिला का ब्लडप्रेशर हाई रहा तो लड़का होने की उम्मीद ज्यादा है और अगर ब्लड प्रेशर कम रहा तो लड़की होने की उम्मीद ज्यादा है.
रिसर्च टीम के एक सदस्य थे डॉक्टर रवि रत्नाकरण जो टोरंटो के माउंट सिनाई हॉस्पिटल में एंडोक्रिनोलॉजिस्ट हैं. उनका कहना है कि इस फैक्टर का पता पहले नहीं चला था, लेकिन अब स्टडी से ये साफ हुआ है कि बीपी भी बच्चे के लिंग पर असर डालता है. ये स्टडी चीन में की गई थी और 1411 महिलाओं के सैम्पल लिए गए थे. उनका ब्लड प्रेशर, उम्र, शराब और सिगरेट के सेवन को नापा गया. इसी स्टडी का फल है ये रिपोर्ट..
मेडिकल साइंस की इस तरक्की से लड़का चाहने वाले लोग बहुत खुश होंगे |
भई वाह! क्या खूब तरक्की कर रही है मेडिकल साइंस. इस रिपोर्ट से बेटा चाहने वालों के लिए तो 100% सफलता पाने के नए द्वार ही खुल गए हैं. बेटा चाहिए तो बीवी का ब्लडप्रेशर बढ़ा दो. चाहे गुस्सा दिलाकर, चाहे दवाई खिलाकर, चाहे डांटकर उससे कहो कि अपना बीपी हाई रखा करो. बिलकुल वैसे ही जैसे झोलाछाप बाबा लड़का पैदा करने की फुल गारंटी वाली दवाई देते हैं. इतना ही नहीं ये रिसर्च तो उन लोगों के लिए रामबाण का काम करेगी जिनके घर लड़कियां ज्यादा हैं.
इस साइंटिफिक रिसर्च से तो आगे आने वाले समय में मेडिकल का खर्च भी बच जाएगा. ना ही किसी की हत्या का पाप लगेगा. कुछ भी कहिए हिंदुस्तान जैसे देश में तो ये अव्वल दर्जे का काम करेगी. साइंटिफिक रिसर्च है भाई, लाखों खर्च किए गए होंगे इसपर. आसान थोड़ी है इतनी महत्वकांक्षी खोज करना. एक्सपर्ट्स की कई रातों की मेहनत होती है ये.
ये भी पढ़ें- औरतों पर हुक्म चलाने वालों के लिए सऊदी अरब से जवाब आया है
क्या होगा बिटिया का...
2011 की जनगणना में ये बात सामने आई थी कि 7 साल तक के बच्चों की तुलना में 71 लाख लड़कियां कम हैं. ये आंकड़ा 2001 में 60 लाख था और 1991 में 42 लाख. अब लिंग अनुपात 1000 लड़कों में 915 लड़कियों तक पहुंच चुका है जो 1961 से लेकर अब तक में सबसे कम है.
खैर जमाना थोड़ा तो बदला है. एक अन्य रिसर्च के मुताबिक लोग अपनी पहली संतान लड़की होने पर खुश होते हैं, लेकिन फिर भी चाहते हैं कि अगला तो लड़का ही हो. पिछले 10 सालों में 31 लाख से 60 लाख के बीच लड़कियों को कोख में ही मार दिया गया.
एक बार साइंस को छोड़िए और जरा ये सोचिए कि ये रिसर्च उन देशों के पुरुष मुखियाओं को पता चल गई जहां महिला अनुपात, भ्रूण हत्या और बेटे की चाह चरम पर है तो क्या होगा. ना जाने कितनी ही महिलाएं साइंस की इस खोज की भेंट चढ़ जाएंगी. जिन महिलाओं का शरीर पहले ही कई बच्चे पैदा करके कमजोर हो चुका है उनके लिए ये कितनी खतरनाक बात हो सकती है.
सदियों से ये प्रथा चली आ रही है कि इंसानों का समाज पुरुष प्रधान रहा है. लिंग परिक्षण और लड़कियों की हत्या का मामला कोई नया नहीं है. इंसान को छोड़ दिया जाए तो बाकी हर प्रजाती में स्त्री को ही श्रेष्ठ माना जाता है. मोर सुंदर होता है फिर भी मोरनी को रिझाता है. गाय अगर बछड़े को जन्म देती है तो ग्वाले को दुख होता है. पुरुष प्रधान समाज के लिए तो ये रिसर्च शायद नए रास्ते खोल दे. कुछ दिनों में शायद इसके भी किस्से आएंगे कि लड़के की चाह में किसी महिला को ब्लडप्रेशर बढ़ाने की दवाई दी गई. उसकी जान मायने थोड़ी रखती है. जो मायने रखता है वो है बेटी होगी या बेटा.
आपकी राय