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Updated: 27 अक्टूबर, 2015 04:51 PM
अभिषेक पाण्डेय
अभिषेक पाण्डेय
  @Abhishek.Journo
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चीन के एक अर्थशास्त्री जोशोवू ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया है कि चीनी पुरुषों को अपनी पत्नियों को दूसरे पुरुषों के साथ साझा करनी चाहिए. है न चौंकाने वाला बयान! लेकिन इस सुझाव के पीछे की वजह आपके होश उड़ा देगी. जानिए क्या है विकास की सरपट रेस में दौड़ते और चमकते चीन से जुड़ा काला सच.

लड़कियों की चीन में भारी कमी के कारण ही जी जोशोवू नामक चीनी अर्थशास्त्री ने अपनी पत्नियों को दूसरे पुरुषों के साथ साझा करने का उपाय सुझाया. ताकि लड़कियों की कमी के कारण शादी के सुख से वंचित कुंवारे पुरुषों को यौन हिंसक बनने से रोका जा सके. जोशोवू का कहना है कि चीन में लड़कियों की कमी को सप्लाई और डिमांड के सिद्धांत से समझा जा सकता है. जब लड़कियों की कमी है तो उनकी डिमांड ज्यादा होगी, ऐसे में धनी पुरुष को शादी के लिए लड़की पहले मिल जाएगी लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर पुरुष कुंवारे रह जाएंगे. ये कुंवारे युवक शादी के लिए लड़कियां न मिलने पर रेप और छेड़छाड़ जैसी घटनाओं का हिस्सा न बने इसके लिए शादीशुदा पुरुषों को इन कुंवारे लड़कों के साथ अपनी पत्नियों को साझा किया जाना चाहिए. जोशोवू के इस सुझाव के खिलाफ लोगों ने नैतिकता का हवाला देते हुए कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की और चीनी सोशल मीडिया में इसके खिलाफ विरोधी बयानों की बाढ़ आ गई. लेकिन, चीन में महिला-पुरुषों के जनसंख्‍या अनुपात की सच्‍चाई तो होश उड़ा देने वाली है.   

शर्मसार करने वाला लैंगिक भेदभावः

अगर आप सोचते हैं कि लैंगिक भेदभाव के मामले में सिर्फ भारतीय ही सबसे आगे हैं और कन्या भ्रूण हत्या जैसी समस्या सिर्फ भारतीय समाज का हिस्सा है तो जरा रुकिए, क्योंकि चीन में लैंगिक भेदभाव की हालत भारत से भी बदतर है. 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में प्रति 1000 हजार लड़कों पर 943 लड़कियां हैं. देश में इस मामले में सबसे पिछड़ा राज्य है हरियाणा, जहां प्रति 1 हजार लड़कों पर महज 879 लड़कियां ही हैं. लेकिन चीन की हालत तो हमारे सबसे निचले पायदान पर खड़े राज्‍य हरियाणा से भी बदतर है. चीन में प्रति 1000 लड़कों पर 862 लड़कियां ही हैं. ये आंकड़ें दिखाते हैं कि विकास के मामले में अमेरिका तक की नींद उड़ाने वाला चीनी समाज महिला अधिकार के मामले में किस कदर पिछड़ा हुआ है. ओलिंपिक में जिस देश की लड़कियां अपने खेल से पूरी दुनिया में अपनी धाक जमाती हैं उसी देश में उनके साथ ऐसा सलूक शर्मनाक है. 

बच्चियों की हत्या से दागदार है चीनी इतिहासः

चीन का इतिहास बच्चियों की हत्या से भरा पड़ा है. इसकी शुरुआत हजारों साल पहले बौद्ध दर्शन से प्रभावित चीन से शुरू होकर, कंफ्यूसियस दर्शन से होती हुई आधुनिक कम्युनिस्ट सरकार तक बदस्तूर जारी रही है. चीन के समाज में हमेशा से ही लड़कों को लड़कियों की अपेक्षा ज्यादा तवज्जो मिलती रही है. इसके पीछे चीनी लोगों की यह सोच काम करती रही है कि लड़के परिवार का नाम आगे ले जाते हैं, लड़के मुश्किल वक्त में परिवार के काम आते हैं जबकि लड़कियों पर किया गया खर्च बेकार चला जाता है क्योंकि वे शादी करके अपने पति के घर चली जाती हैं. इन्हीं सोच के कारण चीनी समाज लड़कियों को जन्म से पहले या जन्म के बाद भी बेहद क्रूर तरीके से मौत के घाट उतारता रहा है. 18वीं और 19वीं सदी में तो नवजात बच्चियों को पानी में डुबोकर मार दिया जाता था या पेड़ पर लटका दिया जाता था, ताकि वे खुद ही मर जाएं.

30 वर्षों में करोड़ों बच्चियों की हत्याः

चीन ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए 1979 में वन चाइल्ड पॉलिसी लागू की (एक पैरेंट्स एक ही संतान). इस पॉलिसी से निश्चित तौर पर चीन को अपनी जनसंख्या को नियंत्रित करने में मदद मिली और इससे काफी हद तक चीन में महिला-पुरुष अनुपात को बेहतर करने में भी मदद मिली. लेकिन इसके कुछ दुष्परिणा भी सामने आए. एक अध्ययन के मुताबिक इस पॉलिसी के लागू होने के बाद से पिछले 40 सालों के दौरान चीन में करीब 33 करोड़ 60 लाख बच्चों को गर्भ में ही मार दिया गया. इनमें से ज्यादातर लड़कियां थीं. इतना ही नहीं, पिछले तीन दशकों में चीन की लाखों बच्चियों को पश्चिमी देशों के पैरेंट्स ने अवैध तरीके से गोद लिया.

नतीजा यह हुआ:

एक अनुमान के मुताबिक 2020 तक चीन में 3 करोड़ कुंवारे युवक होंगे. जिन्हें शादी के लिए लड़कियां नहीं मिल पाएंगी क्योंकि चीन में लड़कों के मुकाबले लड़कियों की भारी कमी है. इसी को देखते हुए चीनी सरकार ने वन चाइल्ड पॉलिसी में कुछ छूट दी है और ग्रामीण इलाकों में जिस दंपत्ति की पहली संतान लड़की है उसे दूसरा बच्चा पैदा करने की इजाजत दी गई. साथ ही यदि पति-पत्‍नी खुद इकलौती संतान रहे हों, तो वे भी दूसरा बच्चा प्‍लान कर सकते हैं. ताकि लड़कियों की संख्‍या बढ़े.

चीन और भारतीय समाज में लड़कियों की कमी दिखाती है कि भले ही ये दोनों देश आर्थिक मोर्चे पर जितनी भी तरक्की करें, लेकिन उनके यहां महिलाओं के साथ भेदभाव जारी है. हैरानी की बात ये है कि ऐसा तब है जबकि यहां के लोग कहीं ज्यादा सम्पन्न और पढ़े-लिखे हैं. यानी की पढ़े-लिखे और सम्पन्न लोग भी कन्या भ्रूण हत्या और लड़कियों के साथ भेदभाव की घटनाओं में शामिल हैं. हालांकि पिछले कुछ दशकों में दोनों ही देशों में स्थिति सुधरी है लेकिन महिलाओं के साथ भेदभाव खत्म नहीं हुआ हैं.

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लेखक

अभिषेक पाण्डेय अभिषेक पाण्डेय @abhishek.journo

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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