12 किरदारों के रिश्तों का 'काला' सच, जिससे उपजा एक क़त्ल
तो चलिए 12 किरदारों की मदद से इस पूरी मिस्ट्री को आज सुलझाते हैं. पर इसे सुलझाने के लिए हमें 46 साल पहले 1969 में जाना पड़ेगा. क्योंकि यही वो साल था जब इंद्राणी नाम की पहेली का जन्म हुआ था.
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रिश्तों में पेंच की ये एक अजीब दास्तां है... कुछ ऐसी, जिसे आप जितना सुलझाते हैं, उतना ही उलझते जाते हैं... आप किसी भी रिश्ते का नाम लीजिए... मां-बेटी का, मां-बेटे का, बाप-बेटी का, बाप-बेटे का, भाई-बहन का बहन-भाई का... सगे का सौतेला का... बहन से इश्क का... मौसी से इश्क का या फिर बाप की बेटी के साथ नाजायज़ रिश्ते का.
इस कहानी में हर रिश्ते का एक पेंच है. हर रिश्ते में प्यार है तो झगड़ा भी. सच है तो झूठ भी. फरेब है तो धोखा भी.
गद्दारी की ईंटों पर खड़ी की गई रिश्तों की इस इमारत में दौलत है तो शोहरत भी. हा,,,बस कुछ नहीं है तो है ईमानदारी. बस यूं समझ लीजिए कि यहां कोई ऐसा सगा नहीं, जिसने सामने वाले को ठगा नहीं.
एक परिवार के बिखरे और उलझे हुए रिश्तों की ये वो कहानी है जो हिंदुस्तान के घर-घर में सुनी और सुनाई जा रही है. इसीलिए जरूरी हो जाता है रिश्तों के इस जाल को आप समझ सकें ताकि शीना की कहानी सुलझ सके. और इसके लिए जरूरी है कि पहले आप इस परिवार के हर किरदार को जान लीजिए.
1. उपेंद्र बोरा
2. दुर्गा रानी बोरा
3. इंद्राणी
4. सिद्धार्थ दास
5. शीना
6. मिखाइल
7. संजीव खन्ना
8. विधि
9. पीटर मुखर्जी
10. शबनम
11. राहुल
12. रॉबिन
यही वो 12 किरदार हैं जिनके इर्दगिर्द ये पूरी कहानी घूमती है. वो कहानी जिसका क्लाइमेक्स शीना के कत्ल के साथ होता है. पर शीना आखिर क्यों मारी गई? क्यों एक मां ने अपनी ही बेटी का खून किया? क्यों एक मां अपनी बेटी को बहन बताती रही? क्यों एक पति 13 साल तक अपनी बीवी के बच्चों के रिश्तों को समझ नहीं पाया? क्यों एक मां अपने दो बच्चों को अपना नाम देने की बजाए अपने मां-बाप का नाम देती है? क्यों खुद शीना ये जानते हुए भी कि राहुल रिश्ते में उसका भाई लगता है उससे प्यार कर बैठती है? क्यों... क्यों... आखिर क्यों
जितना इस परिवार का रिश्ता उलझाने वाला है उससे कही-कहीं ज्यादा ये सवाल बेचैन करने वाले हैं. पर सवाल तो सवाल हैं जवाब मंगते हैं वो. और जवाब इसी परिवार के रिश्तों में छुपा है. वो जवाब जो सारा देश सुनना चाहता है. जानना चाहता है.
तो चलिए इन 12किरदारों की मदद से इस पूरी मिस्ट्री को आज सुलझाते हैं. पर इसे सुलझाने के लिए हमें 46 साल पहले 1969 में जाना पड़ेगा. क्योंकि यही वो साल था जब इंद्राणी नाम की पहेली का जन्म हुआ था. दीसपुर, गुवाहाटी में.
दिसपुर, असम : 1969
उपेंद्र कुमार बोरा का परिवार कुछ वक्त पहले ही तेजपुर से दिसपुर शिफ्ट कर गया था. परिवार के लोग छोटी-मोटी नौकरी और कारोबार किया करते थे. उपेंद्र कुमार के भाई की पत्नी का नाम है दुर्गा रानी दास. दरअसल दुर्गा की शादी उपेंद्र के बड़े भाई से हुई थी. 1969 में दुर्गा ने एक बेटी को जन्म दिया जिसका नाम रखा इंद्राणी.
मगर इंद्राणी के जन्म के कुछ वक्त बाद ही दुर्गा का पति उसे छोड़ कर चला गया. इसी के बाद उपेंद्र ने जो कि रिश्ते में दुर्गा के देवर लगते थे दुर्गा से शादी कर ली. रिश्ते में धोखे की शुरूआत यहीं से होती है.
अब इंद्राणी दुर्गा और उपेंद्र के घर में पलने लगी. मां सगी थी पर बाप सौतेला. 1975 में इंदाणी को दिसपुर के सेंट मेरी स्कूल में दाखिला मिल गया. इसके बाद दसवीं तक की पढ़ाई इंद्राणी ने यहीं से की. लेकिन वो दसवीं का इम्तेहान सेंट मेरी स्कूल से नहीं दे सकी. दरअसल उसे बीच में ही सकूल छोड़ना पड़ा. कहते हैं कि इसकी वजह उसके सौतेले पिता उपेंद्र बोरा थे. दरअसल इंद्राणी को करीब से जानने वालों की मानें तो इंद्राणी घर की चारदीवारी के अंदर अपने सौतेले बाप की हवस का शिकार बन रही थी.
बाप से दूर जाने के लिए इंद्राणी दिसपुर से शिलॉंग चली गई. उसने दसवीं का इम्तेहान प्राइवेट से पास किया और फिर शिलॉंग के लेडी कीन कालेज से 11वीं और बारहवीं की पढ़ाई की. शिलॉंग में पढ़ाई के दौरान ही इंद्राणी की मुलाकात सिद्धार्थ दास से होती है. दोनों में लंबे वक्त तक अफेयर चलता है. और फिर दोनों शादी कर लेते हैं. अब इंद्राणी लगभग बीस साल की हो चुकी थी.
रिश्ते में दूसरा धोखा 1989 में मिलता है. 1989 में अचानक इंद्राणी अदालत में एक हलफनामा देती है. उस हलफनामे में लिखा था कि उसने सिद्धार्थ दास से तलाक ले लिया है और अब उससे उसका कोई ताल्लुक नहीं है. हलफनामे में वो दो बच्चों का भी जिक्र करती है. कहती है कि बेटी शीना चार साल और बेटे मिखाइल तीन साल की कस्टडी भी वो नहीं लेना चाहती. बाद में शीना और मिखाइल की परवरिश की जिम्मेदारी उपेंद्र और दुर्गा संभालते हैं.
अब सवाल ये है कि अगर सिद्धार्थ दास ही शीना और मिखाइल का पिता था तो उसने तलाक के बाद दोनों बच्चों की कस्टडी क्यों नहीं मांगी? क्या दोनों बच्चे यानी शीना और मिखाइल का असली बाप सिद्धार्थ नहीं था... अगर हां... तो फिर शीना और मिखाइल का असली बाप कौन है...
इसी सवाल के साथ 1989 में तब पहली बार ये सवाल उठा था कि शीना और मिखाइल इंद्राणी के बच्चे हैं या फिर भाई-बहन? और इन्हीं सवालों से बचने के लिए 1990 के बाद इंद्राणी दिसपुर छोड़ कर कोलकाता पहुंच जाती है. शीना और मिखाइल को कहानी के पहले दो किरदार उपेंद्र और दुर्गा के पास छोड़ कर.
कोलकाता : 1990
कोलकाता आने से पहले से ही इंद्राणी एचआर कनसलटेंसी का काम किया करती थी. दिसपुर में रहने के दौरान भी वो अकसर इसी सिलसिले में कोलकाता आती रहती थी. इसलिए कोलकाता उसके लिए नया नहीं था.
मगर इस बार कोलकाता आने के बाद उसकी मुलाकात संजीव खन्ना से होती है. उन दिनों खन्ना कोलकाता में केबल टीवी का कारोबार किया करता था. दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो गया. अफेयर काफी लंबा चला. फिर 1995 में दोनों ने शादी कर ली. लेकिन यहां भी रिश्तों की बुनियाद झूठ की ईंटों पर ही रखी गई...
इंद्राणी ने संजीव खन्ना से पहली शादी या शीना और मिखाइल के बारे में कुछ नहीं बतया. खन्ना की मानें तो इंद्राणी अपने पास हमेशा दो बच्चों की तस्वीरें रखती थीं... जिनका नाम शीना और मिखाइल था, लेकिन उनके बारे में पूछने पर इंद्राणी ने हमेशा दोनों को अपना भाई बहन ही बताया.
शादी के बाद दोनों को एक बेटी हुई. विधि. इसके बाद कुछ वक्त तक तो सबकुछ ठीक-ठाक रहा लेकिन जल्द ही दोनों के रिश्तों में तल्खियां आ गईं. इंद्राणी ने खन्ना से साल 1998 में तलाक ले लिया और दोनों अलग हो गए. यानी खन्ना के साथ इंद्राणी की शादीशुदा जिंदगी बस तीन साल चली.
खन्ना ने इसके बाद दूसरी शादी नहीं की. वो हमेशा चाहता था कि तलाक के बाद भी विधि उसी के पास रहे. लेकिन इंद्राणी विधि को साथ रखना चाहती थी.
संजीव खन्ना से अलग होने के बाद इंद्राणी का कोलकाता में रहना मुश्किल था. लिहाज़ा उसने दीसपुर के बाद अब कोलकाता छोड़ने का भी फैसला कर लिया. पर सवाल ये था कि अब कहां? और तभी उसे लगा कि जिंदगी की कड़ुवी यादों को भुलाने और नए सपनों में रंग भरने के लिए सपनों की नगरी मुंबई से बेहतर जगह कोई और नहीं. बस इसी के बाद इंद्राणी ने मुंबई जाने का फैसला कर लिया.
मुंबई : 1999
दिसपुर और फिर कोलकाता से होते हुए अब इंद्राणी सपनों की नगरी मुंबई में थी... पर इस बार वो अपनी बेटी विधि के साथ थी. शीना और मिखाइल की तरह उसने विधि को संजीव खन्ना के पास नहीं छोड़ा था. जबकि संजीव खन्ना चाहता था कि विधि उसके पास रहे.
ज़ाहिर है अब सवाल ये उठता है कि अगर विधि को लेकर इंद्राणी की ममता इतनी ज्यादा थी तो फिर शीना और मिखाइल के लिए क्यों नहीं? ये सवाल फिर उस सवाल पर ले जाता है कि वीना और मिखाइल सचमुच उसके बेटे थे या अजीब रिश्ते से जन्मे भाई-बहन?
खैर मुंबई पहुंचते ही इंद्राणी के सपनों को पर लग जाते हैं.
अपनी पुरानी जिंदगी के पेचीदा मोड़ों से गुजरती हुई अब वो स्टार इंडिया में एचआर मैनेजर थी. और यहीं उसकी मुलाकात पहली बार पीटर मुखर्जी से होती है. जो तब स्टार इंडिया के एक कामयाब सीईओ थे.
पर पेशे में कामयाबी के झंडे गाड़ने वाले पीटर मुखर्जी की निजी जिंदगी उतनी कामयाब नहीं थी. शादी के सालों बाद पत्नी शबनम से तलाक हो चुका था. दो बेटे राहुल और रॉबिन भी ज्यादातर पिता पीटर की बजाए मां शबनम के साथ देहरादून में रहते थे.
रिश्तों के इसी खालीपन के बीच उधर मुंबई के स्टार इंडिया के दफ्तर में पीटर और इंद्राणी की मुलाकातों का सिलसिला शुरू होता है. शुरू में ये सिलसिला पेशे तक था. मगर फिर जल्द ही ये पेशेवर रिश्ता प्यार में बदल जाता है. इसी के बाद दोनों शादी करने का फैसला करते हैं और 2002 में मुंबई में ही शादी कर लेते हैं.
शादी से पहले इंद्रणी पीटर को तलाकशुदा पति संजीव खन्ना और बेटी विधि के बारे में तो सब सच बताती है पर शीना और मिखाइल के रिश्तों को छुपा जाती है. दोनों को अपना छोटा भाई-बहन बता कर.
इसी बीच पीटर का स्टार इंडिया के साथ कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने जा रहा था. पर कॉन्ट्रैक्ट के साथ शर्त ये भी थी कि स्टार इंडिया छोड़ने के बाद पीटर एक खास मुद्दत तक किसी और कंपनी को ज्वाइन नहीं करेंगे. और इसी कॉन्ट्रैक्ट की शर्त ने इंद्राणी को अचानक बुलंदी पर पहुंचा दिया.
दरअसल शर्त से बचने के लिए पीटर ने इंद्राणी के नाम से कंपनी खोल ली. और इंद्रामी अचानक ताकतवर बन गईं. बिजनेस में सीधे उनका दखल होने लगा. इसके बाद पीटर ने 2007 में 9X चैनल शुरू किया... इस कंपनी में वे खुद चेयरमैन बने और इंद्राणी को सीईओ बना दिया... 9X चैनल, INX मीडिया और INX न्यूज़ को जोड़कर शुरू किया गया था.
इंद्राणी अब सब कुछ खुद देख रही थीं. हर चीज में उनकी दखल थी. मगर फिर 2009 में दोनों ने कंपनी से इस्तीफ़ा दे दिया.
गुज़रते वक्त के साथ पीटर और इंद्राणी की जोड़ी अब कारोबार की दुनिया में पूरी मज़बूती से अपने पैर जमाने लगी थी... अब दौलत-शोहरत दोनों की बारिश हो रही थी. दोनों का कारोबार कई सौ करोड़ को पार कर चुका था और दोनों अब एक नहीं कई कंपनियों के मालिक बन चुके थे... उनके पास सेंट्रल मुंबई के पॉश इलाके यानी वर्ली में दो आलीशान फ्लैट्स के अलावा इंग्लैंड में भी दो घर थे... इसी दौरान मुखर्जी परिवार ने आईएनएक्स ग्रुप की भी शुरुआत की... और देखते ही देखते कंपनी को कामयाबी की ऊंचाई पर ले गए...
2006 से लेकर बाद के कई सालों तक इंद्राणी पीटर के साथ तकरीबन 13 कंपनियों की हिस्सेदार बन चुकी थी... इनमें कई कंपनियों को दोनों ने बेच दिया लेकिन
-- INX Executive Search
-- ABC Moviess
-- INX Productions
और
-- INX Services
नाम की चार कंपनियों का मालिकाना हक अपने पास ही रखा...
लेकिन प्रोफेशनल लाइफ़ में लगातार हासिल होती इन बुलंदियों के बीच अब इंद्राणी के लाइफ़ में एक नया ट्विस्ट आता है... अपनी जिस बेटी शीना को अब तक इंद्राणी अपने आखिरी पति पीटर मुखर्जी से अपनी बहन बता कर मिलाती रही, वही शीना अब अपने ख्वाबों के साथ मुंबई में क़दम रखती है... ना सिर्फ़ क़दम रखती है, इंद्राणी के ज़रिए कभी-कभार उस सौतेले बाप यानी पीटर मुखर्जी से भी मिलती है, जिन्हें वो जीजू पुकारती थी... इतना होने के बावजूद इंद्राणी शीना को ना तो अपने बहुत करीब आने देती है और ना ही पीटर के... बल्कि शीना दोनों से दूर मुंबई में ही किराए का मकान लेकर रहने लगती है और मुंबई मेट्रो में काम करने लगती है...
उधर, पीटर की पहली पत्नी से हुआ बेटा राहुल मुखर्जी भी देहरादून से मुंबई आ पहुंचता है... मगर असली मुसीबत तब शुरू होती है, जब हम उम्र राहुल और शीना धीरे-धीरे एक-दूसरे के क़रीब आने लगते हैं... मुखर्जी परिवार यानी पीटर और इंद्राणी को जब इन दोनों के रिश्ते का पता चलता है, तो जैसे घर में भूचाल आ जाता है... अब इंद्राणी अपनी बेटी शीना को राहुल से दूर रहने की हिदायत देती है... लेकिन शीना उसकी नहीं सुनती... और यहीं से इन मां-बेटी के बीच ऐसी दरार पड़ती है, जो वक्त के साथ लगातार बढ़ती जाती है...
तमाम धमकियों के बावजूद शीना और राहुल एक-दूसरे से दूर नहीं होते और 2011 में सगाई भी कर लेते हैं. बस इस सगाई के बाद ही इंद्राणी पूरी तरह बदल जाती है. दरअसल इंद्राणी को अब पहली बार लग रहा था कि शीना उसके शीशे के महल को चकनाचूर कर सकती है. करोड़ों की दौलत उसके हाथ से निकल सकती है. क्योंकि राहुल के साथ शादी होते ही वो भी उस दौलत का हिस्सेदार बन जाएगी.
इसीलिए इंद्राणी किसी भी कीमत पर शीना को राहुल की जिंदगी से निकाल फेंकना चाहती थी. मगर शीना इसके लिए तैयार नहीं थी. अब उस पर इंद्राणी की धमकियों और पैसे के लालच का भी कोई असर नहीं हो रहा था. उलटे तल्खी के दौरान अब शीना भी अपनी मां को ब्लैकमेल करने लगती है... ब्लैकमेल पीटर से अपने असली रिश्ते उजागर कर देने की... उसे ये बता देने की कि वो इंद्राणी की बहन नहीं बल्कि बेटी है.
अचानक अब सब कुछ इंद्राणी के खिलाफ हो रहा था. इंद्राणी को यकीन था कि शीना के साथ राहुल की शादी के फैसले को लेकर पीटर भी उसका साथ नहीं देंगे. लिहाज़ा इंद्राणी ने खुद ही इस मसले को हल करने का फैसला किया. फैसला शीना को मार डालने का. मगर शीना के कत्ल के बाद भी मसला खत्म नहीं होने वाला था. क्योंकि मिखाइल जिंदा रहता. लिहाज़ा उसने शीना और मिखाइल दोनों को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. और इसके लिए दिन चुना मंगलवार. तरीख चुनी 24 अप्रैल. और साल 2012.
इंद्राणी शीना और मिखाइल को रास्ते से हटाने का फैसला तो कर चुकी थी. मगर ये काम वो अकेले नहीं कर सकती थी. उसे इस काम के लिए किसी भरोसेमंद साथी की जरूरत थी. और तभी उसे अपने पूर्व पति संजीव खन्ना की याद आई. जिसकी कमजोर कड़ी यानी बेटी विधि उसके पास थी.
विधि का वास्ता देकर और विधि को अपना वारिस बनाने का हवाला देकर इंद्राणी ने संजीव खन्ना को अपने साथ मिला लिया. आधा काम हो चुका था. अब बस उसे एक और मददगार की जरूरत थी. जो कत्ल के बाद लाश ठिकाने लगा सके. इसके लिए उसने पहले से साजिश रची. मुंबई में ऑटो चला चुके मुखर्जी परिवार के भरोसेमंद ड्राइवर श्यामवर राय को चुना. पिर पैसों का लालच देकर उसे भी साजिश में शामिल कर लिया.
साजिश का पहला पड़ाव पूरा हो चुका था. अब बस कत्ल की बारी थी. शीना मुंबई में ही रहती थी. मगर मिखाइल गुवाहाटी में. उसे मुंबई लाना जरूरी था. इंद्राणी ने दांव फेंका. उसने शीना और राहुल की शादी की बात करने के बहाने से मिखाइल को मुंबई बुला लिया.
वो 24 अप्रैल 2012 की तारीख थी. दोपहर को मिखाइल इंद्राणी के वर्ली में मौजूद इसी बंगले में पहुंचता है. संजीव खन्ना पहले से बंगले में मौजूद था. इसके बाद मिखाल को घर में पानी पीने के लिए दिया जाता है. मगर पानी में बेहोशी की दवा मिली थी. उसके पीते ही मिखाइल को कुछ होने लगता है.
इसी बीच संजीव और इंद्राणी मिखाइल को घर में रुकने को कह कर बाहर निकल जाते हैं. ये कहते हुए कि वो शीना और राहुल को लेकर आ रहे हैं. मगर मिखाइल को पानी पीने के बाद से ही कुछ अजीब सा लगता है और वो फौरन इंद्राणी के घर से निकल जाता है.
दरअसल साजिश ये थी कि मिखाइल को बेहोशी की हालत में घर में ही गला घोंट कर मार डाला जाए और फिर सीना की तरह ही उसकी लाश भी उसी रायगढ़ के जंगल में जला दी जाए.
मगर ऐसा हो नहीं पाया. मिखाइल की किस्मत अच्छी थी. जो वो होश में ही घर से निकल गया और उसकी जान बच गई. उधर घर से बाहर जाने के बाद इंद्राणी और संजीव खन्ना को ये पता ही नहीं था कि मिखाइल होश में है और घर से जा चुका है.
लिहाज़ा इस बात से बेखबर इंद्राणी तय वक्त पर नेशनल कॉलेज से एक किलोमीटर दूर अपनी कार रोक देती हैं. यहां आने से पहले ही वो शीना को फोन कर तय जगह पर बुला चुकी थी. ठीक उसी झूठ के साथ जो उसने मिखाइल से कही थी. झूठ कि वो उसकी और राहुल की शादी की बात करने के लिए मिलना चाहती है.
शाम साढ़े छह बजे का वक्त था. इंद्राणी अब कार में शीना का इंतजार कर रही थी. कार में उसके साथ संजीव खन्ना के अलावा ड्राइवर श्यामवर राय भी था. शीना बस अब किसी भी पल वहां पहुंचने वाली थी.
24 अप्रैल 2012 : नेशनल कॉलेज, मुंबई - शाम 6.30 बजे
इंद्राणी के बुलावे पर शीना तय जगह पर पहुंच जाती है. उसके साथ तब राहुल भी था. मगर राहुल इंद्राणी को देखकर उसकी कार के करीब नहीं जाता. बल्कि शीना को वहां छोड़ कर अपनी कार से वापस लौट जाता है.
शीना जब इंद्राणी के कार के करीब पहुंचती है तो उसे अचानक ड्राइवर की बराबर वाली सीट पर संजीव खन्ना बैठा दिखाई देता है. उसे देखते ही शीना कार मे बैठने से इंकार कर देती है. मगर इंद्राणी जबरदस्ती उसका हथ पकड़ कर उसे कार के अंदर खींच लेती है.
कार अब भी वहीं खड़ी थी. इसके बाद इंद्राणी उसे पानी का बोतल देती है. मगर शीना पानी पीने से मना कर देती है. तब भी इंद्राणी उसे जदबरदस्ती पानी पिला देती है. पानी पीते ही शीना बेहोश हो जाती है. इसके बाद कार चल पड़ती है.
अब चलती कार में संजीव सीना के दोनों हाथ पकड़ लेता है और इंद्राणी अपने हाथों से अपनी शीना का गला घोंट देती है.
शीना दम तोड़ चुकी थी. इसके बाद श्यामवर राय कार को सीधे वर्ली में मौजूद इंदाणी के बंगले पर ले जाता है. और कार को गैराज में पार्क कर देता है. जबकि इंद्राणी और संजीव घर के अंदर पहुंचते हैं मिखाइल को देखने. पर मिखाइल पहले ही जा चुका था. दोनों घबरा जाते हैं. इसके बाद वो मिखाइल के मोबाइल पर फोन करते हैं. पर फोन बंद था.
उधर तब तक श्मायवर शीना की लाश उस बैग में पैक कर चुका था, जिसे इसी काम के लिए पहले से गैराज में रखा गया था. बैग में लाश के ऊपर कुछ कपड़े डाल कर बैग को डिकी में डाल दिया जाता है. और फिर इंतजार होता है रात के गहराने का. तब तक संजीव वर्ली में ही अपने होटल जा चुका था और ड्राइवर अपने घर.
सुबह होते ही एक बार फिर संजीव और श्यामवर इंद्राणी के घर पहुंचते हैं. पीटर मुखर्जी तब विदेश में थे.
इसके बाद तीनों उसी कार में बैठते हैं और रायगढ़ के लिए निकल पड़ते हैं. करीब दो घंटे में रायगढ़ पहुंचने के बाद तीनों घने जंगल के बीच बक्से से लाश निकालते हैं. इसके बाद पेट्रोल डाल कर उसे जला देते हैं. फिर कुछ देर बाद अधजली लाश को वहीं दफन कर देते हैं. इसके बाद उसी रोज़ संजीव कोलकाता लौट जाता है और श्यामवर अपने घर. इंद्राणी अपनी साज़िश में कामयाब हो चुकी थी.
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