शिवलिंग, ज्योतिर्लिंग, बुद्धलिंग और यमराज लिंग: अलग अलग प्रकार से होती है लिंग पूजा!
शैव मत के अनुसार शिव ही परम पुरुष हैं और पार्वती उनकी प्रधान प्रकृति या माया हैं इसलिए दोनों के संयोग को ही ज्योतिर्लिंग के रुप में भी दिखाया जाता है. लिंग का मूल अर्थ ही दृश्यमान होता है. अर्थात जब निराकार परमात्मा खुद को प्रकृति के साथ दृश्यमान या भौतिक रुप में प्रगट करता है तो उसे ज्योतिर्लिंग कहते हैं. इसे पुरुष जननांग समझने की भूल मत कीजिये.
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क्या लिंग पूजा का संबंध सिर्फ हिंदू धर्म से है? क्या इसका संबंध सिर्फ भगवान शिव से ही है या हिंदू धर्म किसी अन्य देवता की भी लिंग पूजा की जाती है? काशी के ज्ञानवापी मस्जिद मे कोर्ट के आदेश के बाद हुए सर्वे में वजूखाने के बीचो बीच स्थित 12 फीट चौड़े और 4 फीट ऊंचे एक काले पत्थर के मिलने के बाद से एक बड़ा विवाद सा उठ खड़ा हुआ है. हिंदू पक्ष का कहना है कि ये शिवलिंग है, जबकि मुस्लिम पक्ष का दावा है कि ये एक फव्वारा है. मुस्लिम पक्ष का ये भी कहना है कि इस काले पत्थर में उपर में एक छेद है, और इस दृष्टि से भी ये शिवलिंग नहीं है. जबकि हिंदू पक्ष का कहना है कि न केवल ये पत्थर शिवलिंग है बल्कि ये विश्वेश्वर महादेव का ज्योतिर्लिंग है. महाभारत, स्कंद पुराण, अग्नि पुराण, पद्म पुराण आदि ग्रंथों के अनुसार ये पत्थर विश्वेश्वर महादेव का ज्योतिर्लिंग है जिन्हे अविमुक्तेश्वर महादेव भी कहा गया है. पुराणों के अनुसार काशी का ये क्षेत्र महाभारत काल से ही अविमुक्त क्षेत्र के नाम से जाना जाता है. जिस ज्ञानवापी कुएं का जिक्र महाभारत में कपिला ह्र्द के नाम से किया गया है वही स्कंद पुराण आदि में ज्ञानवापी कुएं के रुप में किया गया है जिसका निर्माण स्वयं भगवान शिव ने किया था.
ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में शिवलिंग मिलने के बाद सवाल ये भी है कि क्या लिंग पूजा का संबंध सिर्फ और सिर्फ भगवान शिव से ही है
लेकिन मुस्लिम पक्ष इस काले पत्थर से स्वरुप को लेकर अड़ा हुआ है और उसका कहना है कि इस काले पत्थर मे गोल छेद इसके शिवलिंग होने की संभावना को नकारता है. लेकिन प्रश्न ये भी है कि आखिर किसी पत्थर के शिवलिंग होने की पहचान क्या है? शिवलिंग के कितने प्रकार हैं? शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग में क्या अंतर है? क्यों सभी शिवलिंगो को ज्योतिर्लिंगों का दर्जा प्राप्त नहीं है? क्या लिंग पूजा का संबंध केवल भगवान शिव की पूजा से है ?
सबसे पहले हम बात करते हैं कि लिंग कहते किसको हैं. लिंग पुराण के अनुसार शिव परमेश्वर हैं और वो निराकार हैं. वह निराकार परमेश्वर जब स्थूल या साकार रुप धारण करते हैं तो उन्हें लिंग कहा जाता है. निराकार शिव को अलिंगी और साकार शिव को लिंगी कहा जाता है. शिव पुराण के अनुसार भी शिव परम ब्रह्म हैं और उनका निराकार रुप निष्कल कहा जाता है. निष्कल या निराकार रुप ही जब खुद को दृश्यमान करता है तो वो लिंग के रुप में प्रगट होता है.
परम ब्रह्म शिव का साकार रुप साकल कहा जाता है जो शरीर धारण कता है. जब निराकार परम पुरुष प्रकृति के साथ समन्व्य करते हैं तो वो लिंग के रुप में प्रगट होते है और इसके बाद सृष्टि का निर्माण संभव होता है. निराकार परमेश्वर जब खुद को एक ज्योति के रुप में प्रगट करता है तो इसे ज्योतिर्लिंग कहा जाता है. ज्योतिर्लिंग स्वयंभू होते हैं और वो साक्षात निराकार शिव के साकार रुप में प्रगट होते हैं. ज्ञानवापी में पाए जाने वाले काले रंग के इस पत्थर के बारे मे हिंदू पक्ष का यही दावा है कि ये स्वयंभू शिव के द्वारा स्वयं को एक ज्योतिर्लिंग के रुप में प्रगट किया गया है.
झारखंड के चतरा स्थित बौद्ध लिंग जिसे, बौद्ध स्तूप भी कहते हैं
लिंग का अर्थ प्रजनन अंग नहीं होता है. शिव पुराण और लिंग पुराण के अनुसार ये परम पुरुष और प्रकृति के संयोग को दिखाता है. चूंकि शैव मत के अनुसार शिव ही परम पुरुष हैं और पार्वती उनकी प्रधान प्रकृति या माया हैं इसलिए दोनों के संयोग को ही ज्योतिर्लिंग के रुप में भी दिखाया जाता है. लिंग का मूल अर्थ ही दृश्यमान होता है. अर्थात जब निराकार परमात्मा खुद को प्रकृति के साथ दृश्यमान या भौतिक रुप में प्रगट करता है तो उसे ज्योतिर्लिंग कहते हैं. शैव मत शिव को परम पुरुष मानता है इसलिए प्रधान प्रकृति के साथ उनके दृश्यमान रुप को शिव का ज्योतिर्लिंग कहा जाता है.
वास्तव में ज्योतिर्लिगं सिर्फ भगवान शिव और पार्वती के संयोग का ही परिणाम नहीं है. सूर्य के भी ज्योतिर्लिंग होते हैं.तेलंगाना के कालेश्वरम मंदिर में यमराज के भी ज्योतिर्लिंग हैं. अब शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग के बीच क्या फर्क है समझने की कोशिश करते है. सबसे पहली बात ज्योतिर्लिंग स्वयं परम पुरुष ईश्वर के द्वारा खुद को प्रगट करना है , शिव लिंग मानव निर्मित भी हो सकते हैं और प्रकृति निर्मित भी .
प्रकृति के द्वारा निर्मित शिवलिंग का सबसे अच्छा उदाहरण अमरनाथ गुफा में हरेक वर्ष बनने वाला बर्फ का शिवलिंग है. मानव निर्मित शिवलिंग कई प्रकार के हो सकते हैं. ये पत्थर के भी हो सकते हैं. लोहे के भी हो सकते हैं, पारे के भी शिवलिंग हो सकते हैं और लकड़ी के भी शिवलिंग बनाए जा सकते हैं. शिवलिंग अष्टधातु के भी बनाए जा सकते हैं. नमक, गुड़, बालू किसी भी पदार्थ से शिवलिंग का निर्माण हो सकता है.
इनके आकारों में समानता आवश्यक नहीं है. इसके लिए बस आवश्यक शर्त है कि वो एक योनि नुमा अर्घ पर स्थापित हो. योनि नुमा अर्घ शक्ति का प्रतीक है और उसपर खड़ा पत्थर लिंग या परमात्मा के दृश्यमान होने का प्रतीक है. दूसरी शर्त है कि जिसे हम शिवलिंग बनाकर पूजना चाहते हैं उसकी प्राण प्रतिष्ठा की जाए. शिवलिंग के निर्माण के आकारों और प्रकारों में भी काफी विभिन्नता होती है. लिंग पुराण के अनुसार शिवलिंग की ऊंचाई कम से कम 12 अंगुल की होनी ही चाहिए. उससे बड़ा हो तो कोई बात नहीं है.
चतरा (झारखंड) के इटखोरी में सहस्त्र शिव सहित शिवलिंग
शिव लिंग के आकारों में विभिन्नता भी बहुत ज्यादा है. द्विविग शिवलिंग देवताओं की पूजा के लिए बनाया जाता है और इसका आकार ज्योति के आकार का होता है. गणाभा शिवलिंग का आकार सीताफल के जैसा होता है. अरुशा लिंगम नारियल के आकार जैसा दिखता है. स्वयंभू लिंग रुद्राक्ष के आकार का होता है.
शिवलिंग के निर्माण और उसकी पूजा के लिए भी कोई एक विधान नहीं है. मां पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए जो कठिन तपस्या की थी उस दौरान वो रोज बालूका निर्मित शिवलिंग की पूजा करती थीं और उसे रोज प्रवाहित कर देती थीं.
क्या लिंग पूजा सिर्फ हिंदू धर्म और विशेषकर शैव मत के द्वारा ही की जाती है? इस प्रश्न का जवाब हमें झारखंड के चतरा जिले में स्थित इस बुद्ध के स्तूप से मिलता है जो शिवलिंग के आकार का है. इसके अलावा नेपाल के काठमांडू के पास स्थित स्वयंभूनाथ मंदिर में तो शिवलिंग जैसी आकृति में भगवान बुद्ध को ही दिखाया गया है.
बौद्ध मत में हिंदू देवी देवताओं की मान्यता दी गई है. स्वयं त्रिपिटक में ब्रह्मा और इंद्र आदि देवताओं को वर्णन मिलता है. त्रिपिटक के अनुसार बुद्ध के ज्ञान प्राप्त करने के बाद ब्रह्मा उनके पास आए और उन्होंने ही बुद्ध को सारे संसार को उपदेश देने के लिए कहा. बौद्ध मत उस वक्त सनातन धर्म का ही एक संप्रदाय था जो अवैदिक श्रमण परंपरा को मानता था. सनातन धर्म की दो मुख्य शाखाएं रही हैं – वैदिक और अवैदिक परंपराएं.
वैदिक परंपरा में वेदों को धर्म का मूल माना गया है. जबकि अवैदिक परंपराओं में यज्ञों का विरोध किया गया है. इसी अवैदिक परंपरा से कई शाखाएं निकली है जिनमें जैन संप्रदाय, अनिश्वयवाद, आजीविक संप्रदाय, चार्वाकवाद, और बौद्ध संप्रदाय प्रमुख हैं.
वैदिक परंपरा से ही ब्राह्णण ग्रंथों की रचना हुई और ब्राह्णण परंपरा का विकास हुआ जो वेदों, उपनिषदों, आरण्यकों और पुराणों को महत्वपूर्ण मानता था. दूसरी परंपरा को श्रमण परंपरा कहा गया . इस श्रमण परंपरा से ही जैन मत, बौद्ध मत और आजीविक जैसे मतों का प्रचार हुआ. हिंदू धर्म का मूल ‘कस्मै देवाय हविषा विधेम’ ( ऋग्वेद) है, जिसका अर्थ है कि सभी देवता मुझे बड़े ही लगते हैं तो आखिर किस देवता की पूजा करें हम?
इस विचारधारा के तहत एक हिंदू अपने इष्ट देवता को सभी देवताओं से उपर रखता है. जैसे शिव के उपासक शिव को विष्णु से भी बड़ा मानते हैं और विष्णु, ब्रह्मा और सारी सृष्टि की उत्पत्ति शिव से ही मानते हैं, वैसे ही वैष्णण संप्रदाय विष्णु से ही शिव ,ब्रह्मा और सारी सृष्टि की उत्पत्ति मानता है. ऐसा ही विचार बौद्ध मत में भी फैला जब उनके यहाँ महायान शाखा का जन्म हुआ. महायान शाखा में बुद्ध सबसे बड़े हैं और इनके अंदर ही शिव, विष्णु, ब्रह्मा आदि देवता आते हैं.
नेपाल में स्वयंभू नाथ मंदिर स्थित बुद्ध लिंग
महायान के बोधिसत्व के सिद्धांत के अनुसार हरेक प्राणी निरंतर दूसरे प्राणियों का निरंतर कल्याण करता हुआ अलग अलग जन्मों में अपनी स्थिति को उच्च करता है और आखिर में वो बुद्धत्व को प्राप्त कर सकता है. इस संसार में अनेक प्राणी बुद्धत्व को प्राप्त करने के करीब पहुंच चुके हैं. महायान मत के बोधिसत्व सिद्धांत के अनुसार शिव भी अगले जन्मों में बुद्धत्व को प्राप्त करेंगे. महायानी बौद्ध ग्रंथ करंधव्यूह सूत्र और सधर्मा पुण्डरिक सूत्रों के अनुसार शिव की उत्पत्ति एक महान बोधिसत्व अवलोकितेश्वर के मस्तक से हुई है. महायानी ग्रंथों में शिव को बुद्ध से शिक्षा लेते भी दिखाया गया है.
इसका अर्थ ये कहीं से भी नहीं है कि बौद्ध मत और शैव मत में कोई विरोध था. बल्कि ये उस ऋग्वैदिक सूत्र ‘कस्मैं देवाया हविषा विधेम’( किस देवता को अपना हविष्य समर्पित करें हम) का ही वो विस्तार है जो बौद्ध धर्म में भी अभिलक्षित होता है.
निष्कर्षतः यही कहा जा सकता है कि लिंग पूजा का अर्थ प्रजनन अंगों की पूजा से नहीं है बल्कि ये निराकार परमेश्वर के एक भौतिक स्वरुप की आऱाधना है. दूसरे लिंग पूजा सिर्फ शैव मत में ही नहीं होती है बल्कि सूर्य पूजा , विष्णु पूजा आदि में भी होती है. तीसरे बौद्ध धर्म भी लिंग पूजा को मान्यता देता नज़र आता है. चौथे शिवलिंग का कोई निश्चित आकार तय नहीं किया जा सकता है . इसे पौराणिक और धार्मिक स्त्रोतों के आधार पर ही मान्यता दी जाती है. ज्ञानवापी के मामले में भी ऐसा ही अपेक्षित है.
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