जो श्रद्धा के पिता ने कहा वो हम चाह कर भी नहीं समझ सकते...
श्रद्धा के पिता विकास वाल्कर की एक-एक बात सुनकर यही लग रहा है कि उनका दिमाग पूरी तरह अपनी बेटी के मौत में उलझा हुआ है. ऐसा लग रहा है वे कहीं खोएं हुए हैं. शायद वे यही सोच रहे होंगे कि काश मैंने अपनी बेटी को जाने नहीं दिया होता. काश वह मेरी बात मान गई होती...
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बेटी को खोने का गम क्या होता है? यह तकलीफ सिर्फ वह पिता की समझ सकता है जिसने अपने कलेजे के टुकड़े को खोया हो. जिस बेटी की इतनी दर्दनाक मौत हुई हो उस पिता को लगता होगा कि उसके सीने पर 10 किलो का पत्थर बांध दिया गया हो. वह कहीं भी चला जाए उसे चैन की सांस नहीं आती होगी. शायद उसे अपने लिए सुकून चाहिए भी नहीं होगा. उसे रातों को नींद भी नहीं आ रही होगी. वह इसी सोच में डूबा होगा कि बेटी के हत्यारे को सजा कैसे दिलाए? आप शायद समझ गए होंगे कि हम श्रद्धा वॉकर के पिता विकास वॉकर की बात कर रहे हैं जो अपने बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए एड़ी चोटी एक किए हुए हैं.
वसईपुलिस अगर सही समय पर एक्शन लेती तो मेरी बेटी आज जिंदा होती
असल में आरोपी आफताब अमीन पूनावाला ने बेरहमी से श्रद्धा की हत्या कर उसके शरीर के करीब 35 टुकड़े किए थे. वह टुकड़ों को महरौली के जंगलों में फेंक रहा था. कई रिपोर्ट्स में यह बात सामने आई है कि वह श्रद्धा को मेंटली औऱ फिजिकली हरैस कर रहा था. वह श्रद्धा को मारता-पीटता था. अब दिल्ली पुलिस आफताब के खिलाफ जांच कर रही है. इसी सिलसिले में आज विकास वॉकर ने महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात की और पहली बार मीडिया के सामने आकर अपने दर्द को बयान किया.
श्रद्धा के पिता ने जो कहा उसी में उनका दर्द छिपा है-
-मैं बहुत परेशान हूं. मेरी तबियत ठीक नहीं रहती.
-वसईपुलिस अगर सही समय पर एक्शन लेती तो मेरी बेटी आज जिंदा होती.
-आफताब से मेरी बेटी की हत्या की है इसकी सही से जांच होनी चाहिए.
-आफताब के परिवार की जांच होनी चाहिए, उन्हें भी सजा मिलनी चाहिए.
-जैसा मेरी बेटी के साथ हुआ वैसा किसी के साथ न हो, आफताब को फांसी की सजा मिलनी चाहिए.
-जिन बच्चों को 18 साल के बाद आजाद रहने की इजाजत मिल जाती है उस पर प्रतिबंध लगना चाहिए या काउंसलिंग होनी चाहिए.
मेरी बेटी ने घर छोड़ते वक्त कहा था कि मैं बड़ी हो चुकी हूं, आत्मनिर्भर हूं, अब मैं कुछ भी कर सकती हूं
श्रद्धा के पिता की एक-एक बात सुनकर यही लग रहा है कि उनका दिमाग पूरा अपनी बेटी के मौत में उलझा हुआ है. ऐसा लग रहा है वे कहीं खोएं हुए हैं. शायद वे यही सोच रहे होंगे कि काश मैंने अपनी बेटी को जाने नहीं दिय़ा होता. काश उस पर सख्ती की होती, काश उसे घर में बंद कर दिया होता, काश पुलिस मेरी बात पहले सुनती, काश मैंने ये कर लिया होता, काश वो कर लिया होता को मेरी बेटी आज जिंदा होती.
ये किसने कह दिया कि 18 साल की उम्र में बच्चे समझदार हो जाते हैं. वे अपनी जिंदगी से जुड़े सही फैसले कैसे ले सकते हैं. वे तो कितने भी बड़े हो जाएं वो तो माता-पिता के लिए बच्चे ही रहेंगे. काश मेरी बेटी ने मेरी बात सुन ली होती...हमने बहुत कोशश की मगर एक पिता के मन की बात हम समझ नहीं पाए, हम समझ भी नहीं सकते. वे अपने अंदर उठने वाली लहर को खुद ही शांत कर रहे हैं. वे खुद ही सवाल कर रहे हैं और खुद को ही जवाब दे रहे हैं.
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