3 केस, जिन्होंने लड़कियों के माता-पिता की नींद उड़ा दी है
माता-पिता तो हमेशा अपने बच्चों के बारे में सोचते हैं मगर पिछले कुछ दिनों में श्रद्धा वाल्कर, तुनिषा शर्मा और कंझावला में मारी गई अंजलि ने उनकी चिंता और बढ़ा दी है. यही चिंता इन तीन बेटियों के माता-पिता ने भी की थी जो अंत में सच साबित हो गई.
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बेटी के माता-पिता की चिंता क्या होती है? यह मैं समझ सकती हूं क्योंकि मैं भी किसी की बेटी हूं. मेरे पास सुबह और शाम पापा का कॉल जरूर आता है. मां भी फोन करती हैं. वे भले ही जाहिर नहीं होने देते मगर उनकी बातों में छिपी टेंशन को मैं पहचानती हूं. शायद दुनिया की हर बेटी पहचानती होगी.
माता-पिता तो हमेशा अपने बच्चों के बारे में सोचते हैं मगर पिछले कुछ दिनों में श्रद्धा वाल्कर, तुनिषा शर्मा और कंझावला केस ने उनकी चिंता और बढ़ा दी है. यही चिंता इन तीन बेटियों के माता-पिता ने भी की थी जो अंत में सच साबित हो गई. ये तीनों बेटियों में एक बात कॉमन है कि ये तीनों वो कर रही थीं जो करना चाह रही थीं. अपने सपने पूरे कर रही थीं. वे तीनों इंडिपेंडेंट और सफल थीं. ये उनकी काबिलियत थी के वे अपने पैरों पर खड़ी थीं. उनकी जिंदगी में किसी की दखल नहीं थी. वे आगे बढ़ना चाहती थीं मगर उनके साथ कांड हो गया.
वैसे तो माता-पिता बेटियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते हैं मगर इन तीनों केस ने उनकी टेंशन को और बढ़ा दी है
श्रद्धा वाल्कर (हत्याकांड)
श्रद्धा वाल्कर अपने प्रेमी आफताब पूनावाला के साथ लिव इन में रह रही थी. उसके माता-पिता ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की थी मगर उसने किसी की नहीं सुनी. उसने कहा था कि वह बालिग है और अपनी जिंदगी का फैसला ले सकती है. मां तो चिंता में चल बसी थी. पिता ने भी कहा भी था कि घर आकर रहो, मगर उसने उनकी बात नहीं मानी थी. आखिरकार वही हुआ जिसका डर था, आफताब ने उसके 35 टुकड़े कर दिए. श्रद्धा वाल्कर अगर अपने माता-पिता की चिंता को समझती तो आज जिंदा होती.
तुनिषा शर्मा (सुसाइड कांड)
तुनिषा के पास दौलत, शोहरत सबकुछ था. मगर वह शीजान खान के प्यार में थी. वह डिप्रेशन में रहने लगी थी. तुनिषा को मां को उसकी चिंता थी. उन्हें शीजान खान के साथ उसका रिश्ता पसंद नहीं था. रिपोर्ट्स के अनुसार, 15 दिन पहले दोनों का ब्रेकअप हो चुका था और तुनिषा ने शो के सेट पर फांसी लगाकर अपनी जान दे दी.
कंझावला केस (एक्सीडेंट कांड)
इस केस के बारे में क्या ही कहा जाए? मगर इतना समझ आता है कि वह लड़की इतना आजाद थी कि 31 दिसंबर की रात काम के सिलसिले में बाहर जा सकती थी. यानि घरवाले उसके काम को समझते थे. हो सकता है कि मां ने उसे 31 की रात को बाहर जाने के लिए मना किया होगा मगर उसने कहा हो कि दो घंटे में आ जाउंगी. काश कि उसने मां की बात मान ली होती तो उसका एक्सीडेंट नहीं हुआ होता.
वैसे तो माता-पिता बेटियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते हैं मगर इन तीनों केस ने उनकी टेंशन को और बढ़ा दी है. वे किसी भी हाल में अपनी बेटियों की सुरक्षा चाहते हैं. वे नहीं चाहते हैं कि उनकी बेटी किसी गलत रिश्ते में पड़े. वे चाहते हैं कि बेटियां अंदर ही अंदर घुटने के बदले अपने मन की उलक्षन उनके साथ शेयर करें. एक्सीडेंट कभी भी हो सकता है फिर भी जब तक बच्चा घर नहीं आ जाता माता-पिता को चैन नहीं मिलता है. मां-बाप चाहते हैं कि चाहें कोई भी बात हो बेटियां अपनी परेशानी उनके साथ बांटे. कोई भी बात हो उन्हें बताएं, ताकि वे उनकी मदद कर पाएं औऱ गलत कदम उठाने से रोक सकें.
लड़कियों को चाहिए कि वे आजाद रहें मगर अपने माता-पिता की बातों को इग्नोर न करें. वे जिंदगी में आगे बढ़े मगर अपने माता-पिता को पीछे न छोड़ें. वे कितनी भी समझदार हो जाएं मगर अपने माता-पिता की बातों पर गौर करना ना छोड़ें, क्योंकि एक वही हैं जो सच में आपकी भलाई चाहते हैं. वरना जमाने में कुछ लोग आपको नोंच खाने के लिए बैठे ही हैं.
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