जानिए, इलाहाबाद हाई कोर्ट के कुछ ऐतिहासिक फैसलों के बारे में
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ सुनाया था फैसला... 150 सालों के इतिहास में इलाहाबाद कोर्ट के इन फैसलों को सुनकर चौंक गए थे लोग!
-
Total Shares
अपने बेबाक, साहसिक और ऐतिहासिक फैसलों के लिए विख्यात इलाहाबाद उच्च न्यायालय की 150वीं वर्षगांठ खत्म हो गई है. वैसे तो इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कई ऐतिहासिक फैसले दिए, लेकिन कुछ फैसले ऐसे भी हैं जो दुनिया भर में मशहूर हुए. आइये जानते हैं इलाहाबाद हाईकोर्ट के ऐसे बड़े ऐतिहासक फैसलों के बारे में...
1. जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को 6 साल तक चुनाव लड़ने पर लगाई थी रोक...
बात वर्ष 1971 की है जब लोकसभा चुनावों में "गरीबी हटाओ" नारे के ज़रिए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को शानदार जीत हासिल हुई थी. वो रायबरेली से 1 लाख से ज्यादा वोटों से जीती थीं लेकिन उनसे चुनाव हारने वाले समाजवादी नेता राजनारायण ने चुनाव परिणाम को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दे डाली. उन्होंने आरोप लगाया था कि इंदिरा गाँधी गलत तरीके अपनाते हुए सरकारी मदद लेकर चुनाव जीता है. उन पर यह आरोप लगाया गया था कि उनके सचिव यशपाल कपूर जो सरकारी पद पर थे, खुलकर चुनाव प्रचार कर रहे थे. इंदिरा गाँधी को अदालत में पेश होना पड़ा और इस तरह आजाद भारत की वो पहली प्रधानमंत्री बनीं जिसे किसी अदालत में पेश होना पड़ा था. 12 जून 1971 को न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इंदिरा गांधी का चुनाव परिणाम निरस्त तो किया ही साथ ही अगले 6 साल तक चुनाव लड़ने के लिए भी अयोग्य घोषित कर दिया था.
2. अयोध्या में राम मंदिर मुद्दे पर फैसला...
इलाहाबाद उच्च न्यायालय 30 सितंबर 2010 को विवादित राम मंदिर मुद्दे पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था. हाईकोर्ट ने अयोध्या के विवादित स्थल को रामजन्मभूमि करार देते हुए विवादित जमीन का एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े में जमीन बांटने का फैसला दिया था. हाईकोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन का तीन हिस्सों में बंटवारा किया था इसमें से एक हिस्सा हिंदू महासभा को दिया गया था जिसमें राम मंदिर बनना था. दूसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया था. विवादित स्थल का तीसरा हिस्सा निरमोही अखाड़े को दिया गया था. हालाँकि, इस हाईकोर्ट के फैसले को देश के सर्वोच्च न्यायालय यानि सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी जहां केस अभी भी जारी है.
3. तीन तलाक पर फैसला...
पिछले साल इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार देते हुए कहा था कि यह प्रथा मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ है. उच्च न्यायालय का यह भी मानना था कि कोई भी पर्सलन लॉ बोर्ड संविधान से ऊपर नहीं है. उच्च न्यायालय के अनुसार संविधान में सब के लिए समान अधिकार हैं और इसमें मुस्लिम महिलाएं भी शामिल हैं. न्यायमूर्ति सुनील कुमार ने अपने फैसले में यहां तक कह डाला था कि इस्लामिक कानून तीन तलाक पर गलत व्याख्या कर रहा है. हालाँकि, इस फैसले को भी उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा चुकी है.
4. नेताओं और अधिकारियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ें.. अगस्त 2015 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपनी ऐतिहासिक टिप्पणी में कहा था कि अधिकारियों, नेताओं और जजों के बच्चों को अनिवार्य रूप से सरकारी स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए ताकि सरकारी शिक्षा पद्धति में सुधार लाया जा सके. यह टिप्पणी हाई कोर्ट ने खस्ताहाल प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था पर नाराजगी जाहिर करते हुए दी थी. उच्च न्यायालय ने कहा था कि निगम, अर्ध सरकारी संस्थानों या अन्य कोई भी राज्य के खजाने से वेतन उठा रहा हो उनके बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ना अनिवार्य किया जाए. इतना ही नहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव को आदेश दिया था कि जो कोई इसका पालन नहीं करता उससे फीस वसूली जाए और उनका प्रमोशन और इन्क्रीमेंट को भी रोक दिया जाए.
5. जाति आधारित रैलियों पर रोक... जुलाई 11, 2013 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने अहम फैसले में पूरे उत्तर प्रदेश में जातियों के आधार पर होने वाली राजनीतिक दलों की रैलियों पर रोक लगा दी थी. न्यायमूर्ति उमानाथ सिंह तथा न्यायमूर्ति महेंद्र दयाल की खंडपीठ ने केंद्र तथा राज्य सरकार समेत भारत निर्वाचन आयोग एवं चार राजनीतिक दलों भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी को नोटिस भी जारी किए थे. याचिकाकर्ता का तर्क था कि इससे सामाजिक एकता और समरसता को जहां नुकसान हो रहा है, वहीं ऐसी जातीय रैलियां तथा सम्मेलन समाज में लोगों के बीच जहर घोलने का काम कर रहे हैं, जो संविधान की मंशा के खिलाफ था.
ये भी पढ़ें-
'84 दंगों के साये में कांग्रेस कैसे करेगी 'दिल्ली की बात, दिल के साथ'
आपकी राय