ये कैसे चोर हैं जो चोरी का सामान लौटाते हैं और माफी भी मांगते हैं?
कुछ किस्सों पर यकीन कर पाना मुश्किल होता है. इस बेइमानी के जमाने में ईमानदारी और इंसानियत किसे देखने को मिलती है? लेकिन इन चोरों ने तो कमाल ही कर दिखाया है. मतलब चोर होते हुए भी जो ईमानदारी इन्होंने दिखाई है इसका कोई जवाब नहीं है.
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कुछ किस्सों पर यकीन कर पाना मुश्किल होता है. इस बेइमानी के जमाने में ईमानदारी और इंसानियत किसे देखने को मिलती है? लेकिन इन चोरों ने तो कमाल ही कर दिखाया है. मतलब चोर होते हुए भी जो ईमानदारी इन्होंने दिखाई है इसका कोई जवाब नहीं है. मेरे हिसाब से वह इंसान बहुत ही खुशनसीब होगा जिसे लगभग विलुप्त हो चुके इस गुण के दर्शन मिल जाए.
असल में उत्तर प्रदेश के बांदा में चोरों ने गजब की मिसाल पेश की है. ऐसा लगता है कि ये एकदम प्रोफेशनल चोर हैं जो कायदे कानून के हिसाब से चोरी करते हैं. इन चोरों ने बता दिया है कि हमारे दिल में दया है. हुआ यूं कि इन चोरों ने एक वेल्डिंग की दुकान से सामान चुरा लिया.
उन्हें किसी ने पकड़ा भी नहीं लेकिन बाद में जब उन्हें पता चला कि दुकानदार गरीब है और कर्जे के पैसे से दुकान खोली है तो उन्हें अपने किए पर पछतावा होने लगा. चोरों को दुकानदार की परेशानी का एहसास हुआ तो उनका दिल पसीज गया और उन्होंने माफी मांगते हुए सारा सामान लौटा दिया.
बेइमानी के जमाने में ईमानदार चोर सबक सिखा गए
ये कहावत तो सुनी होगी कि घोड़ा घास से दोस्ती करेगा तो खाएगा क्या? इस दुनिया में भला कौन दूसरों के बारें में इतना सोचता है. हम यह नहीं कहते कि चोरी करना अच्छी बात है लेकिन भावुक होकर चोरों ने जो नेक काम किया है वह इंसानियत की एक मिसाल है. भला चोर कबसे इतना सोचने लगे, उन्हें किसी तो बस सामान से मतलब होता है.
मतलब चोरी भी करनी है लेकिन किसी गरीब का दिल भी नहीं दुखाना है. भई, इतने नियम के पक्के चोर हमने तो नहीं देखे. चोरों ने पहले चुराए गए सामान तो एक बोरी में अच्छे से पैक किया और उसके ऊपर एक माफीनामा निखकर चिपका दिया. उस माफीनामे में चोरों ने लिखा है कि हमें आपकी दुकान के बारे में गलत सूचना मिली थी.
इमोशनल चोरों ने सारा समान वापस लौटाकर दुकानदार से माफी मांग ली. चोरों एक चिट्ठी में ये भी लिखा कि पीड़ित के दुकान में गलत सूचना मिलने की वजह से चोरी हुई है. दिलचस्प बात ये है कि चोरों ऐसे ही चोरी किया हुआ समान नहीं लौटा दिया बल्कि पहले चुराए गए सामान को एक बोरी और डिब्बे में पैक किया और फिर उसके ऊपर माफीनामा लिखकर दुकानदार के पास भेजा. उन्होंने लिखा कि हमें माफ कर दीजिए हमें पता नहीं था कि आप इतने गरीब हैं.
माफीनामे में हिंदी भाषा में लिखा था कि ‘ये सामान दिनेश तिवारी का है. हमें बाहरी आदमी से आपके बारे में जानकारी मिली थी. जानकारी देने वाले ने हमें बताया था कि दिनेश कोई मामूली आदमी नहीं है लेकिन जब हमें इनकी असलियत पता चली तो हमें बहुत दुःख हुआ. इसलिए हम आपका सामान लौटा रहे हैं. गलत लोकेशन की वजह से हमसे गलती हुई.’
असल में दिनेश तिवारी आर्थिक रूप से काफी कमजोर हैं. अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए कुछ समय पहले ही वेल्डिंग का काम शुरू किया था. इस काम के लिए उन्होंने 40 हजार रूपए उधार लिए थे. एक दिन वे गए तो देखा कि दुकान का ताला टूटा हुआ था. यह देख उनके होश उड़ गए, वे शिकायत भी नहीं करा पाए थे कि घर के कुछ दूर उनका सामना पैक किया हुआ मिला.
हो सकता है कि किसी के लिए यह बहुत छोटी सी बात हो लेकिन जिसके लिए दुकान ही सबकुछ हो उसके बारे में सोचिए. फिल्म मनी हाइस्ट में चोर किस तरह देखते-देखते हीरो बन जाते हैं. असल जिंदगी के ये चोर हीरो ना सही लेकिन इंसानियत का पाठ तो पढ़ा ही गए. वरना इस मतलबी दुनिया में कौन दूसरों के बारे में सोचता है?
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