इस बार सुप्रीम कोर्ट की सख्ती से क्या लगेगा गुटखा पर बैन ?
गुटखा की बिक्री पर लगी रोक को दरकिनार करने के लिए निर्माता बिना तम्बाकू वाले पान मसाले के साथ सुगंधित चबाने वाला तम्बाकू अलग पैकेट में बेच रहे हैं. ताकि उपभोक्ता पान मसाले कि साथ इसे भी खरीद सकें और दोनों को मिलाकर खा सके. लेकिन सुप्रीम कोर्ट इसके खिलाफ सख्त है..
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गुटखा पर बैन के बावजूद जिस तरह इसकी खुलेआम बिक्री होती है, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने फिर कड़ा रूख जताया है. कोर्ट ने पान मसाला और गुटखा निर्माताओं को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 1 अगस्त 2011 को जारी अधिसूचना को सख्ती से पालन करने का आदेश दिया है. ये आदेश सुप्रीम कोर्ट ने पान, मसाला और गुटखा निर्माताओं द्वारा राज्य सरकारों द्वारा जारी अधिसूचना के खिलाफ दायर याचिक की सुनवाई के दौरान दिए.
2013 में भी सुप्रीम कोर्ट ने इस नियम को सही ठहराया था. लेकिन तम्बाकू निर्माता पान मसाला और चबाने वाले तम्बाकू के घटक अलग-अलग पैकेट में बेचकर सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश की भी अनदेखी करते रहे हैं. तम्बाकू उद्योग पर मंडरा रहे खतरे को देखते हुए निर्माताओं ने मामले को और लंबा खींचने की कोशिश की थी.
दरअसल, यह देखा गया है कि गुटखा की बिक्री पर लगी रोक को दरकिनार करने के लिए निर्माता बिना तम्बाकू वाले पान मसाले के साथ सुगंधित चबाने वाला तम्बाकू अलग पैकेट में बेच रहे हैं. ताकि उपभोक्ता पान मसाले कि साथ इसे भी खरीद सकें और दोनों को मिलाकर खा सके. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए सभी राज्यों के स्वास्थ्य सचिवों को इस संदर्भ में 9 नवंबर तक अनुपालना रिपोर्ट अदालत में पेश करने को कहा है.
ग्लोबल एडल्ट तंबाकू सर्वे 2010 के अनुसार भारत में 28 प्रतिशत युवा किसी भी तरह के तम्बाकू का इस्तेमाल करते हैं. इनकी संख्या करीब 25 से 3० करोड़ के आसपास है. इसमें स्मोकलेस तम्बाकू का इस्तेमाल काने वालों की संख्या करीब 17 करोड़ है. करीब 7 करोड़ स्मोकर्स है, और 5 करोड़ लोग दोनों का इस्तेमाल करते हैं.
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भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक तम्बाकू जनित रोगों के इलाज पर करीब 1 लाख करोड़ का खर्च भारत में होता है, जो की भारत के ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट का करीब एक फीसदी है. सवाल केवल धन का ही नहीं है. बल्कि करोड़ों लोग असमय काल के मुंह में समा जाते है. एक अहम बात ये भी है कि काला धन को भी बढ़ावा देता है क्योंकि इसमें व्यापार नगदी का ही प्रचलन है.
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इस उद्योग के लिए पिक्टोरियल वार्निंग को देने जैसे महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए गए है. पर इसका कोई बहुत असर होता नहीं दिखता है. ऊपर से कई सेलिब्रिटी ऐसे उत्पादों के प्रचार जुड़े हैं. बहरहाल, मौजूद आदेश से उम्मीद की जानी चाहिए कि पूरे देश में गुटखा उद्योग पर लगाम लगेगी.
गौरतलब है कि देश में होने वाले मुंह के कैंसर के मामलेां में से 90 प्रतिशत मामले चबाने वाले तंबाकू से जुड़े होते हैं. सुप्रीम कोर्ट के नए आदेश का सख्ती से पालन होता है तो इसका फायदा नजर आएगा और इससे युवाओं सहित सभी देशवासियों का भी भला होगा.
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