सुप्रीम कोर्ट ने वेश्यावृत्ति को लीगल प्रोफेशन कहा है, क्या समाज भी ऐसा मानता है?
सुप्रीम कोर्ट ने वेश्यावृति को लीगल प्रोफेशन मानते हुए कहा है कि, अब पुलिस सेक्स वर्कर को परेशान नहीं कर सकती. पुलिस को सभी सेक्स वर्कर को सम्मान देना चाहिए.
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सुप्रीम कोर्ट ने वेश्यावृति को 'लीगल प्रोफेशन' कहकर एक नए विमर्श को जन्म दिया है. कल्पना कीजिए कि, किसी सेक्स वर्कर (Sex Worker) को किराए पर घर लेना है. वह अपने प्रोफेशन के बारे में मकान मालिक को बताती है. अंदाजा लगाइये उसे क्या जवाब मिलेगा?
कहना आसान है कि, सेक्स वर्कर को समान आधिकार दे दो. उन्हें भी ईज्जत के साथ जिंदगी जीने का हक है. उनके बच्चों को समाज में सिर उठाकर रहने हक है, लेकिन क्या समाज के लोग उन्हें दिल से अपना पाएंगे? जैसे सम्मान कोई सामान है जिसे उठाकर दूसरी जगह शिफ्ट करना है. या कोई प्रसाद जिसे थोड़ा उनमें भी बांट देना चाहिए.
सेक्स वर्कर को सम्मान दो लेकिन उसी गर्त में पड़े रहने दो
सुप्रीम कोर्ट ने वेश्यावृति को लीगल प्रोफेशन मानते हुए कहा है कि, अब पुलिस सेक्स वर्कर को परेशान नहीं कर सकती. पुलिस को सभी सेक्स वर्कर के साथ सम्मानजनक व्यहार करना चाहिए. उन्हें मौखिक या शारीरिक, किसी भी तरह से चोट नहीं पहुंचानी चाहिए. न ही उन्हें किसी तरह का संबंध बनाने के लिए मजबूर करना चाहिए.
कोर्ट ने तो बड़ी आसानी से कह दिया कि सेक्स वर्कर को इज्जत मिलनी चाहिए. अगर कोई बालिग महिला अपनी मर्जी से सेक्स वर्क का काम करती है तो उस पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए. माने पुलिस अब सेक्स वर्क को गाली नहीं दे सकती, अपशब्द नहीं कह सकती, शारीरिक शोषण नहीं कर सकती है और हाथ नहीं उठा सकती. सुनकर लगता है वाह कितना अच्छा फैसला है. आखिरकार वेश्याओं को उनका अधिकार मिल गया, लेकिन क्या सच में इस आदेश के बाद लोग एकदम से बदल जाएंगे. वो लोग जो सेक्स वर्कर के बारे में बात नहीं करना चाहते.
जिन सेक्स वर्कर से वे घृणा करते हैं उन्हें अपने सिर पर बिठा लेंगे? क्या वे अपनी नजर का चश्मा बदलकर सेक्स वर्कर को सम्मान देने लगेंगे, सम्मान तो छोड़ो क्या लोग सेक्स वर्कर का काम करने वाली महिला को समान समझ पाएंगे?
दरअसल, जस्टिस एल नागेश्वर राव, बीआर गवई और एएस बोपन्ना की बेंच ने यह निर्देश देते हुए कहा है कि, इस देश के हर व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानजनक जीवन का अधिकार है. इसलिए पुलिस जब छापा मारे तो सेक्स वर्कर को गिरफ्तार न करे. सेक्स वर्क में शामिल होना गुनाह नहीं है सिर्फ वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है.
खैर, ऐसे आदेश देना और ऐसी बड़ी-बड़ी बातें कहना आसान है लेकिन हकीकत में इसका क्या असर होगा? यह हम कुछ बिंदुओं से समझने की कोशिश कर रहे हैं.
1- क्या हम किसी ऐसी महिला का सम्मान करेंगे जो यह बताती है कि वह एक प्रोफेशनल सेक्स वर्कर है.
2- सेक्स वर्कर का काम करना लीगल है लेकिन इस प्रोफेशन की जगह कहां है? हर प्रोफेशन के लिए प्लेस फिक्स है तो फिर?
3- क्या मोहल्ले वाले यह बर्दाश्त कर पाएंगे कि उनके घरों के बीच वेश्यावृत्ति का प्रोफेशन चलना एक न्यू नॉर्मल है?
4- जिन्हें शराब की दुकान से परेशानी है ऐसे लोग सेक्स वर्क की 'दुकान' कैसे चलने देंगे?
5- क्या ऐसी महिला को कोई घर किराए पर देना चाहेगा जो वेश्यावृत्ति करती है?
6- क्या पहचान उजागर करने वाले सेक्स वर्कर के बच्चों को हम बराबरी की नजर से देख पाएंगे?
7- क्या सेक्स वर्कर जिन्हें समाज दुत्कारता है वे अपने प्रोफेशन का कार्ड बनवा पाएंगी?
8- सेक्स वर्क में शामिल होना गुनाह नहीं है सिर्फ वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है, दोनों बातें कैसे?
9- एक तरफ सेक्स वर्कर को सम्मान दो, दूसरी तरफ उनकी पहचान उजागर ना करो, क्यों?
10- तो अब सेक्स रैकेट में धकेले जाने वाले नाबालिग और बच्चों का क्या होगा?
कोर्ट का फैसला पढ़ने के बाद ये सारे सवाल किसी के भी दिमाग में आ सकते हैं. कोर्ट ने तो कह दिया सेक्स वर्क को सम्मान दो, लेकिन देगा कौन? दिन में लोग देखते ही दूरी बना लेते हैं. उनका मजाक उड़ाते हैं. उन्हें नीचा दिखाते हैं. दूसरी बात पुसिल छापा मारे लेकिन गिरफ्तार न करे. पुलिस छापा सिर्फ घूस लेने के लिए मारेगी क्या? ऐसे में उन महिलाओं का क्या होगा जिन्हें जबरदस्ती या धोखे से इस धंधे में घुसा दिया जाता है.
मतलब यह है कि सेक्स वर्कर को सम्मान दो लेकिन उसी गर्त में पड़े रहने दो. क्योंकि उनकी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए कुछ और करना सरकार के वश में नहीं है!
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