आम लोगों के सुझाव से सुलझेगी या और उलझेगी कोलेजियम की गुत्थी!
कोलेजियम पर आम लोगों की राय मंगाने की जो बात सुप्रीम कोर्ट ने कही है वह एतिहासिक तो है लेकिन क्या कारगर भी है?
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सुप्रीम कोर्ट सहित देश के 24 उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति 1993 से कोलेजियम प्रणाली के तहत ही होती रही हैं. इस बीच पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता को लेकर सवाल हमेशा से उठते रहे. फिर इस मुद्दे को लेकर न्यायपालिका और विधायिका में टकराव की स्थिति भी आई. आखिरकार नरेंद्र मोदी सरकार राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग बिल (NJAC) पास कराने में कामयाब रही और इसी साल अप्रैल से यह कानून अमल में भी आ गया. जाहिर है, न्यायपालिका इससे सहमत नहीं थी. नतीजा यह रहा कि 16 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने NJAC को ही खारिज कर दिया. कोर्ट ने साथ ही यह भी माना कि कोलेजियम प्रणाली में सुधार की गुंजाइश है.
अब सवाल है कि जजों की नियुक्ति की व्यवस्था कैसी होनी चाहिए, जो विवादों से परे हो. इसका रास्ता निकालने के लिए जो कदम सुप्रीम कोर्ट ने उठाया है वह एतिहासिक तो है लेकिन क्या कारगर भी साबित होगा? कोर्ट ने आम लोगों से सुझाव देने को कहा है. कोर्ट के अनुसार विधि और न्याय मंत्रालय की वेबसाइट पर जाकर आम लोग अपनी राय दे सकते हैं. लोग अपने सुझाव 13 नवंबर शाम 5 बजे तक ईमेल कर सकते हैं.
कोर्ट ने क्यों कही लोगों से सुझाव देने की बात
दरअसल, बार काउंसिल सहित कई पक्षों ने कोर्ट से इस मसले पर और वक्त देने की गुहार की थी. यह मांग भी उठी कि व्यक्तिगत विचारों पर भी गौर किया जाए. साथ ही इस मसले पर तकरीबन 60 सुझाव भी पत्रों और ईमेल द्वारा सुप्रीम कोर्ट को प्राप्त हुए. यह सभी सीधे सुप्रीम कोर्ट को भेजे गए थे. इन पर भी गौर किया गया. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर खुले मंच की व्यवस्था की बात कही.
आम लोगों के सुझाव से निकलेगा हल?
आम लोगों से सुझाव मांगने का कोर्ट का यह कदम पहली नजर में आकर्षक लगता है. बिल बनाने को लेकर सरकारें पहले भी लोगों से सुझाव मांगती रही हैं. अखबारों में इश्तेहार देकर तो कभी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के जरिए. लेकिन न्यायिक व्यवस्था में ऐसा पहली बार हुआ है.
निर्भया कांड के बाद जब महिलाओं के साथ होने वाले अपराध के मामले में जस्टिस जे. एस. वर्मा के नेतृत्व में कड़े कानून बनाने की बात हुई तब भी सुझाव मांगे गए थे. तब कई संस्थाओं सहित आम लोगों ने भी उसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. अपनी समझ साझा की. लेकिन सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति, उनके ट्रांसफर भी क्या लोगों के दिल से जुड़े मुद्दे हैं? इस पूरे विषय पर तो केवल वही एक्सपर्ट, बुद्धिजीवी ही अपनी राय दे सकते हैं जो पहले भी ऐसे मुद्दों पर सक्रिय रहे हैं. वैसे भी, यह ऐसा जटिल मुद्दा बन गया है कि सैकड़ों सुझाव के बीच कहीं और जटिलताएं इससे न जुड़ जाएं.
कोर्ट ने कह दिया है कि 13 नवंबर तक जो सुझाव आएंगे केवल उन पर ही विचार होगा. पूरे मुद्दे पर कोर्ट ने 18 और 19 तारीख की सुनवाई की तारीख भी मुकर्रर कर दी है. फैसला कोर्ट का होगा लेकिन सरकार उससे कितनी सहमत होगी और कोलेजियम का विवाद क्या यहीं थम जाएगा, यह देखने वाली बात होगी.
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