ट्रेन हादसे रोकने की तकनीक गोदाम में रखकर क्यों बैठे हो प्रभु !
सबसे दुख की बात ये कि रेल विभाग अब तक हुई दुर्घटनाओं से कोई सीख नहीं ले रहा है. ये रिपोर्ट बस धूल खाती रहती हैं. कार्यवाई के नाम पर रेलवे के कुछ छोटे कर्मियों की छुट्टी कर मामले को ठंडा करने से काम नहीं बनेगा.
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भारतीय परिवहन का प्रमुख तंत्र रेलवे पुन: एक बड़े दुर्घटना के चपेट में आया. मुजफ्फरनगर के खतौली में कलिंग उत्कल एक्सप्रेस के 13 डिब्बे पटरी से उतरे, जिसमें कम से कम 24 लोगों की मौत हो गई और 150 से ज्यादा घायल हुए. दुर्घटना की तस्वीरों से ही स्थिति के भयावहता को समझा जा सकता है. खतौली रेलवे स्टेशन से आगे जहां हादसा हुआ, वहां पटरी मरम्मत का कार्य चल रहा था. पटरी मरम्मत के औजार भी घटनास्थल पर पड़े हुए हैं, फिर भी चालक को इसकी कोई जानकारी नहीं दी गई. तथा कलिंग उत्कल एक्सप्रेस चश्मदीदों के अनुसार 100 किमी/घंटा की ज्यादा गति से मरम्मत वाली पटरियों से गुजरी, जिसके बाद यह हादसा होना तो तय ही था.
इस रेल हादसे में अब तक 24 लोगों की मौत हुई और 150 लोग घायल हैं
इस दुर्घटना में रेल मंत्रालय की लापरवाही साफ तौर पर देखी जा सकती है. सबसे महत्वपूर्ण यह दुर्घटना तब घटी है जब अगले महीने सितंबर में भारत में बुलेट ट्रेन की नींव रखी जानी है. इस हादसे की भयावहता को इससे ही समझा जा सकता है कि रेल का एक डिब्बा बगल के घर में घुसते हुए एक कॉलेज की बिल्डिंग में भी घुस गया. घर के लोग भी इस हादसे में घायल हुए.
आखिर मरम्मत वाली टूटी पटरियों पर रेलगाड़ी क्यों दौड़ी??
यह ट्रेक काफी दिनों से खराब था, जिसमें लगातार मरम्मत कार्य जारी था. चश्मदीदों के अनुसार एक महीना पहले भी यहां एक बड़ी रेल दुर्घटना को स्थानीय लोगों की पहल से रोका गया था. उस समय भी रेल पटरी मरम्मत के कारण टूटे ट्रैक पर ट्रेन आ रही थी, जिसे लाल कपड़ा दिखाकर किसी तरह रोका गया. इस घटना से भी रेलवे ने कोई सीख नहीं ली. यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है कि मरम्मत के दौरान टूटी पटरी पर आखिर ट्रेन को चलने की अनुमति कैसे मिली. कल भारी वर्षा हो रही थी, जिस कारण मजदूर नियत समय पर मरम्मत का कार्य नहीं कर पाए तथा वर्षा के कारण बीच में ही उन्होंने पटरी रिपेयरिंग का कार्य रोक दिया था. लेकिन लग रहा है, इसके प्रक्रियात्मक पहलुओं का पालन नहीं किया गया. ऐसे में तो स्पष्ट है कि रेलवे की जानलेवा लापरवाही दुर्घटना का प्रमुख कारण बनी.
रेलवे ट्रेक पर मरम्मत का कार्य चल रहा था
देश में रेल दुर्घटनाएं क्यों होती है? कैसे होती हैं? इसके कारण और निदान नीति निर्माता से लेकर आम आदमी सभी को पता हैं. फिर भी हर वर्ष ये दुर्घटनाएं होती हैं. उसकी जांच होती है, बैठकें होती हैं, मुआवजे की घोषणाएं होती हैं लेकिन स्थायी समाधान नहीं होता.
भारतीय रेलवे अंतर्देशीय परिवहन का सबसे बड़ा माध्यम है. दुनिया के इस सबसे बड़े रेल नेटवर्क में से एक भारत में हर रोज सवा दो करोड़ से भी ज्यादा लोग रेल की सवारी करते हैं. ऐसे में भारतीय रेल को दुर्घटनाओं को रोकने के लिए तीव्रतम प्रयास करने होंगे तथा तब तक प्रयत्नशील होना होगा, जब तक रेलवे दुर्घटनाओं को शून्य तक नहीं पहुंचा दे.
सत्य को स्वीकार करने से बचता रेल मंत्रालय-
घटनास्थल पर पटरी रिपेयरिंग का कार्य चल रहा था, परंतु रेलवे ने प्रारंभिक तौर पर रिपेयरिंग से इंकार किया है. रेलवे का कहना है कि जांच रिपोर्ट के बाद ही सच्चाई का पता चलेगा. एक तरह से कमिटी बनाकर जांच के नाम पर मामले को टालने का प्रयत्न है.
सबसे दुख की बात ये कि रेल विभाग अब तक हुई दुर्घटनाओं से कोई सीख नहीं ले रहा है. जांच समितियों की रिपोर्ट पर बाद में रेलवे द्वारा प्रभावी क्रियान्वयन के कमी से स्थिति में बदलाव नहीं आता है. ये रिपोर्ट बस धूल खाती रहती हैं. कार्यवाई के नाम पर रेलवे के कुछ छोटे कर्मियों की छुट्टी कर मामले को ठंडा करने से कार्य नहीं होगा. आवश्यकता है कि बड़े स्तर पर रेलवे की इस लापरवाही पर कार्यवाई कर जिम्मेवारी निर्धारित की जाए.
आज वैश्विक स्तर पर तकनीक के द्वारा दुर्घटनाओं को न्यूनतम करने के प्रयास हो रहे हैं, लेकिन भारतीय रेलवे में ऐसे समुचित प्रयास कम ही हुए हैं. अगर सूक्ष्मता पूर्वक भारतीय रेल की दुर्घटनाओं का विश्लेषण किया जाए तो करीब 80 प्रतिशत भारतीय रेल दुर्घटनाओं का कारण मानवीय भूल या चूक होती है. इस दुर्घटना के बाद पुन: यह प्रश्न उठता है कि आखिर रेलवे लोगों सुरक्षित रेल यात्रा कब उपलब्ध कराएगी? कब तक हम लोग अपने प्रियजनों को यूं ही खोते रहेंगे? इन हादसों का जिम्मेदार कौन है?
रेल में इस तरह के मानवीय त्रुटि को कैसे रोकें??
मानवीय चूक को रोकने के वैश्विक स्तर पर दो उपाय स्वीकार किए गए हैं-
1. आधुनिकतम तकनीक का प्रयोग कर मानवीय चूक को कम करना.
2. रेल कार्मिकों का उच्चस्तरीय प्रशिक्षण.
अगर आधुनिकतम तकनीक की बात करें तो इसमें 'यूबीआरडी' प्रमुख है. रेलवे ने रेल पटरियों की सुरक्षा निगरानी हेतु दक्षिण अफ्रीका से एक खास तकनीक यूबीआरडी आयात की है, जिसमें ट्रांसमीटर एक तरंग छोड़ता है और अगर रिसीवर को वह तरंग नहीं मिलती है तो पता चल जाता है कि कहीं बीच में कोई समस्या है. इस प्रणाली से पटरी के बारीक चटक का भी पता लग जाता है. इसके अतिरिक्त आधुनिक "लिंक हाफमैन बुश" डिब्बे की अनुपस्थिति से भी हताहतों की संख्या में वृद्धि होती है. लिंक हॉफमैन बुश से युक्त डिब्बे पटरी से उतरने के बाद भी ज्यादा असरदार तरीके से झटकों और इसके प्रभाव को झेल सकते हैं और ये पलटते नहीं. इससे जानमाल के नुकसान में अप्रत्याशित कमी आती है.
मानवीय चूक रोकने का दूसरा प्रमुख उपाय रेलकर्मियों का उच्चस्तरीय प्रशिक्षण है. इस मामले में जिस तरह जानलेवा लापरवाही दिखी, उससे रेल कर्मियों में प्रशिक्षण की भारी कमी स्पष्टत: देखी जा सकती है. जब तेज रफ्तार वाली ट्रेन चल रही हो तो ट्रैन के दोनों ओर तैनात कुशल तकनीशयन द्वारा दूर से आ रही रेलगाड़ी की चाल उसकी लहर व उसके नीचे से निकलने वाली अवांछित आवाजों तथा ईंजन व गार्ड के मध्य सभी डिब्बों के बीच झटकों व उनके परस्पर खिंचाव आदि पर पैनी नजर रखनी चाहिए. साथ ही जिस ट्रैक से वह तीव्र गति ट्रेन गुजर रही हो उसपर भी पूरी चौकस नजर रखी जानी चाहिए. खतौली रेल दुर्घटना में तो पटरी मरम्मत तक की जानकारी ड्राइवर को नहीं मिली.
मुआवजा हल नहीं-
इस बार भी रेल मंत्रालय ने मृतकों के परिजनों को 3.5 लाख, गंभीर रुप से घायलों को 50 हजार तथा सामान्य घायलों को 25 हजार मुआवजे की घोषणा की है. एक अनुमान के मुताबिक भारत में हर साल औसतन 300 छोटी-बड़ी रेल दुर्घटनाए होती हैं. जब भी कोई रेल दुर्घटना होती है, मुआवजे की घोषणा कर उसे भुला दिया जाता है. हमें इस प्रवृत्ति से बाहर आना होगा. रेलवे सुरक्षा के कई पहलू होते हैं, लेकिन प्रबंधन के स्तर पर सभी पहलू जुड़े रहते हैं. होता यह है कि रेलवे विभाग रेल सेवाओं में तो वृद्धि कर देता है, परंतु सुरक्षा का मामला उपेक्षित रह जाता है. राजनीतिज्ञों और प्रबंधकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रेलवे सिस्टम को एक तय सीमा से ज्यादा न खींचा जाए. रेलवे सुरक्षा और सेवाओं के मध्य समुचित संतुलन बनाए जाने की जरुरत है.
उम्मीद है कि इस वर्ष से अलग रेलवे बजट न होने के कारण रेल मंत्रालय के ऊपर लोकप्रिय निर्णय लेने का दबाव नहीं रहेगा और वह सुरक्षा पर समुचित खर्च कर सकेगी. अब समय आ गया है जब भारतीय रेलवे सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान करें, नहीं तो फिर हमलोग शायद किसी नई दुर्घटना के बाद भी इन्हीं मुद्दों पर चर्चा करते दिखेंगे.
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