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Updated: 08 सितम्बर, 2016 05:06 PM
सुनील बाजारी
सुनील बाजारी
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ट्विटर पर जनता की समस्याओं को चुटकियों में सुलझाने वाले 'प्रभु' ने आखिर जनता को अच्छे दिन दिखा ही दिए. अब डिजिटल इंडिया का दौर है लिहाजा आप मोबाइल फोन पर तो मुफ्त में (यानी 4जी के दाम पर) बात कर सकेंगे, लेकिन यदि आपको राजधानी, दुरंतो और शताब्दी ट्रेनों में यात्रा करनी है तो उसके लिए आपको यकीनन लोन लेना पड़ेगा. या यूं कहें कि अब आपका स्तर उपर उठ जाएगा और आप हवाई यात्रा का आनंद तो ले सकते हैं, लेकिन इन ट्रेनों में यात्रा करना आम आदमी के बस की बात नहीं रह जाएगी.  

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 9 सितंबर से राजधानी, दुरंतो और शताब्दी ट्रेनों के लिए शुरू होगा 'फ्लैक्सी फेयर सिस्टम'

महात्मा गांधी कहते थे कि भारत गांवों में बसता है और एक छोटा भारत हर रोज हमारी ट्रेनों में सफर करता है. शायद इसीलिए अब तक की सरकारों ने ट्रेनों का किराया तो बढ़ाया लेकिन इस बात का ध्यान रखा गया कि ये 'छोटा भारत' प्रभावित न हो. उसकी जेब पर इतना भार न आ जाए कि उसे लगे कि उसके साथ छल किया जा रहा है. रेलवे के निजीकरण की भी बात भी गाहे बगाहे सामने आती रही है. फिर दौर आया अच्छे दिनों का, यानी बुलेट ट्रेन का सपना दिखाया गया. लेकिन अब रेल मंत्रालय ने 9 सितंबर से राजधानी, दुरंतो और शताब्दीक ट्रेनों के लिए 'फ्लैक्सी फेयर सिस्टम' शुरू करने की घोषणा की है. ये आम आदमी के लिए इस सरकार का अब तक का सबसे बड़ा झटका है.

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यदि आप इसे आम आदमी के लिए उठाया गया कदम समझते हैं तो रुकिये. मोटा मोटा समझें तो औसतन हर 10 फीसदी बर्थ बिकने के बाद आधार किराया 10 प्रतिशत बढ़ जाएगा. पहली 10 फीसदी सीटों के अलावा ट्रेन की बाकी सीटों की बुकिंग के लिए अब यात्रियों को 100 फीसदी तक ज्यादा किराया देना पड़ सकता है. दूसरी 10 फीसदी सीटें भरने के बाद तीसरी 10 फीसदी सीटों पर फिर से 10 फीसदी किराया बढ़ जाएगा. इस तरह से 50 फीसदी सीटें भरने के बाद आखिरी 50 फीसदी सीटों के लिए यात्रियों को 50 फीसदी ज्यादा किराया देना होगा. इस तरह इस क्लास के पैसेंजर्स को आखिरी 10 फीसदी सीटों के लिए करीबन दोगुना किराया देना पड़ सकता है. इसके लिए बाकायदा एक ऊपरी लिमिट भी तय की जाएगी.

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 आधार किराए के अतिरिक्त रिजर्वेशन चार्ज, सुपरफास्ट चार्ज, कैटरिंग चार्ज, सर्विस टैक्स जैसे अन्य शुल्क अलग से वसूले जाएंगे

राजधानी और दुरंतों ट्रेनों के लिए ये ऊपरी लिमिट आधार किराए से डेढ़ गुना ज्यादा हो सकती है. शताब्दी में ये लिमिट आधार किराए का 1.4 गुना होगी. इतना ही नहीं, इसके अलावा आधार किराए के अतिरिक्त रिजर्वेशन चार्ज, सुपरफास्ट चार्ज, कैटरिंग चार्ज, सर्विस टैक्स जैसे अन्य शुल्क अलग से वसूले जाएंगे. इसमें एक लॉलीपॉप भी दिया जा रहा है. यानी यदि किसी निचली क्लास का किराया ऊपरी क्लास के किराए से ज्यादा हो जाता है तो यात्री को बुकिंग के समय उच्च श्रेणी में यात्रा का विकल्प दिया जाएगा.

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इसका असर करंट बुकिंग पर भी पड़ेगा. इससे बची सीटों को करंट बुकिंग के लिए खोला जाएगा. और इसका किराया अंतिम टिकट के विक्रय मूल्य के बराबर होगा. यहां भी इसके बाद तमाम अतिरिक्त शुल्क भी इसमें जोड़े जाएंगे. यानी आपको डेढ़ से दोगुना किराया तक देना पड़ सकता है. इन ट्रेनों के हर क्लाास के टिकट का आखिरी दाम रिजर्वेशन चार्ज पर प्रिंट किया जाएगा ताकि ट्रेन के किराए में बदलाव पर चार्ज वसूला जा सके. इसका इस्तेरमाल बिना टिकट ट्रेन में यात्रा कर रहे यात्रियों से जुर्माना वसूलने में भी किया जाएगा.

देश की आबादी जिस रफ्तार से बढ़ रही है उस हिसाब से ट्रेनों की संख्या में वृद्धि नहीं हो पाई, ये संभव भी नहीं है. आज भी रेल हमारे देश में मानव आवागमन का सबसे प्रमुख साधन है. गरीब आदमी यानी बीपीएल से लेकर मध्यम आय वर्ग के लिए लंबी दूरी की यात्रा का तो ये एक मात्र विकल्प है. इस लिहाज से इन 'खास' ट्रेनों में भी आम आदमी को दिक्कत न हो इसका ख्याल तो रखा ही जा सकता था. हम इसे आम आदमी के नजरिये से इसलिये देख रहे हैं क्योंकि टैक्स पेयर्स के पैसे से ही ये ट्रेनें चलाई जा रही हैं.

अब आखिर में रेल मंत्री सुरेश प्रभु से विनती है कि देश में गरीबी के आकलन के लिए वर्ष 2012 में बनाई गई रंगराजन कमेटी पर भी एक नजर डाल लें. इस कमेटी ने 2014 में नई सरकार के समक्ष ही अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी. इस कमेटी के मुताबिक प्रत्येक दस में 3 व्यक्ति अभी भी गरीब हैं. उपभोक्ता खर्च के आधार पर शहरी क्षेत्रों में 47 रूपये और ग्रामीण इलाकों में 32 रूपये प्रतिदिन खर्च करने वाला गरीब नहीं होगा. यानी गरीब आदमी आपकी लिस्ट या प्राथमिकता में शामिल ही नहीं है.

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अब बात देश के आम आदमी की यानी टैक्स पेयर्स की तो इस वर्ष फरवरी में केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2015-16 में देश की प्रति व्यक्ति मासिक आय लगभग 6,452.58 रुपये मासिक रहने का अनुमान है. तो इस वर्ग की भी केवल ऊपरी लेयर ही आपकी ट्रेनों के नए किराये को अफोर्ड कर सकती है. बाकी जैसी देश की आबादी है और आम आदमी की मजबूरी है, अर्थात जिसे जरूरत होगी यानी 'मरता क्या न करता' वो तो यात्रा करेगा ही. इससे प्रभुजी की ट्रेनें को ठसाठस रहेंगी ही और राजस्व भी बढ़ेगा.

लेखक

सुनील बाजारी सुनील बाजारी @skbazari

लेखक टीवी पत्रकार हैं

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