तालिबान को सही ठहराने वाले लोग क्या अफगानिस्तान जाकर उनके शासन में रहना पसंद करेंगे?
दूर के ढोल सुहावने होते हैं, जबसे तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया है कुछ लोग इसी गलतफैमी में ही जी रहे हैं. तभी तो भारत में रहते हुए वे तालिबान का समर्थन कर रहे हैं. ऐसे लोगों को भारत की सरजमीं पर रहकर तालिबानियों को सपोर्ट करना बहुत आसान है, लेकिन मुश्किल हैं उन लड़ाकों के बीच रहना.
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दूर के ढोल सुहावने होते हैं, जबसे तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया है कुछ लोग इसी गलतफैमी में ही जी रहे हैं. तभी तो भारत में रहते हुए वे तालिबान का समर्थन कर रहे हैं. ऐसे लोगों को भारत की सरजमीं पर रहकर तालिबानियों को सपोर्ट करना बहुत आसान है, लेकिन मुश्किल हैं उन लड़ाकों के बीच रहना.
वे लड़ाके जिन्हें देखकर जाहिलियत वाली फीलिंग आती है. वे लड़ाके जो महिलाओं की इज्जत नहीं करते, वे लड़ाके जो बच्चियों से जबरदस्ती शादी करते हैं, वे लड़ाके जो वहां के लोगों की आजादी छीन लेते हैं, वे लड़ाके जो सरेआम कत्लेआम करते हैं.
तालिबान को सपोर्ट करने वालों पर तरस आता है
इन तालिबानी लड़ाकों के बीच जीना किसी मरने से कम नहीं होगा. ऐसे में कुछ लोग उनका समर्थन कर रहे हैं. ऐसे लोगों की सोच पर दया आती है, तरस आता यह सोचकर कि इनकी मानसिक हालात क्या होगी. दूसरी तरफ यह लगता है कि जो लोग अपने घर, अपने शहर और अपने देश की महिलाओं का सम्मान नहीं कर सकते, वे भला अफगानिस्तान की आवाम और वहां की महिलाओं का दर्द क्या समझेंगे.
एक बात और ऐसे लोग कुछ ही संख्या में हैं, लेकिन ये किसी जहरीली गैस से कम नहीं हैं जो धीरे-धीरे फैलती है. इस वक्त पूरी दुनियां जब तालिबान पर थू-थू कर रही है तब भी ये लोग आग में घी डालने का काम कर रहे हैं.
इन्हें यह नहीं पता कि अगर ये इस वक्त अफगानिस्तान में होते तो इन्हें कैसा महसूस होता? जब जान पर बन आती है तब समझ आता है वरना ज्ञान पर ज्ञान देना तो आज के जमाने का सबसे आसान काम है. इतना समझ जाइए, अगर आप इनको अफगानिस्तान जाने का बोलेंगे तो ये सबसे पहले मुकर जाएंगे क्योंकि हकीकत का पता इन्हें भी है. ये जानते हैं कि जितनी आजादी अपने देश में हैं उतनी कहीं नहीं. ऐसे में सवाल उठता है कि तालिबान को सही ठहराने वाले, क्या आफगानिस्तान जाकर उनके शासन में रहना पसंद करेंगे? जवाब आपको भी पता है.
अगर ऐसे लोग सिर्फ विशेष समुदाय या धर्म की वजह से उनको सपोर्ट कर रहे हैं तो ये सबसे बड़ी गलतफैमी में जी रहे हैं, क्योंकि जिन लोगों को वे बड़ी बेरहमी से गोलियों से भून रहे हैं वे भी इनके समुदाय के ही लोग हैं जो पूरी दुनियां के सामने चीख-चीख कर रहे हैं कि यह इस्लाम नहीं है. इस्लाम को हम भी मानते हैं लेकिन ये कट्टर धर्म के नाम पर कुछ और ही किया जा रहा है, जैसे हम इंसान नहीं जानवर है. किसी को जानवरों के साथ भी ऐसा सुलूक नहीं करना चाहिए…
कोई तालिबानियों की हिंदुत्व से तुलना कर रहा है, तो कोई अपनी राजनीति चमका रहा है. असल में ये इतना इसलिए बोल पा रहे हैं क्योंकि ये भारत में हैं किसी और देश में नहीं, ऐसी आजादी और कहां मिलेगी? सोशल मीडिया पर जब भी अफगानिस्तान में हो रहे जुर्म की बातें होती हैं तो भारत में रह रहे कुछ लोगों का एक तबका तालिबानी लड़ाकों का समर्थन करता नजर आता है.
असल में इन लोगों को अफगानिस्तान के आवाम से कोई मतलब नहीं हैं, वे कल मरते हैं तो भले आज मर जाएं. इन्हें ऐसा लगता है कि इनका कोई नया आका पैदा हो गया है जो इन्हें जन्नत की सैर कराएगा जबकि तालिबान की असलियत के बारे में इन्हें कुछ नहीं पता. वे कौन हैं, कहां से आए हैं, उनका मकसद क्या है, उनका इतिहास क्या है...ये लोग तो बस भेड़चाल चल रहे हैं...
पाकिस्तान और चीन की बात तो छोड़ ही दीजिए लेकिन भारत में ही ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो तालिबान की शान में कसीदे पढ़ रहे हैं. सबसे पहला नाम है ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के सदस्य सज्जाद नोमानी का.
असल में अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद सज्जाद नोमानी ने तालिबान को मुबारक दी. अपने बयान में तालिबान का समर्थन करते हुए नोमानी ने कहा कि एक निहत्थी कौम ने दुनिया की मजबूत फौजों को शिकस्त दी.
वहीं समाजवादी पार्टी से लोकसभा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने तालिबानी आतंकियों की तुलना देश के स्वतंत्रता सेनानियों के साथ की थी. शफीकुर्रहमान ने तालिबानी आतंकियों को देश के स्वतंत्रता सेनानियों की तरह बताया था.
ये तो वे नाम हैं जो हाइलाइट हो गए, लेकिन कुछ ऐसे नाम हैं जो सिर्फ सोशल मीडिया पर जहर फैलान के काम करते हैं, कुछ तो फेक आई वाले हैं. ये लोग तालिबान की खबरों पर सपोर्ट करने वाले कमेंट करते हैं. अफगानिस्तानी महिलाओं पर हो रहे जुर्म पर ऐसे लोगों का कहना है कि कीमती चीजें बुर्के में अच्छी लगती हैं. वहां की महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को ये लोग सही ठहराते हैं…अफगानिस्तान में जाकर ही इन लोगों की अक्ल ठिकाने आ सकती है.
यह कौन सा सेक्युलरिज्म है जो जाहिल तालिबानियों का समर्थन करने को कहता है? याद रखिए जो तालिबान का समर्थन कर रहा है वह पाकिस्तान का समर्थन है कर रहा है, वह चीन का समर्थन कर रहा है. जिन लोगों के मन में यह गलतफहमी है कि भारत को पाकिस्तान, चीन और अफगानिस्तान घेर देंगे तो यह देश झुक जाएगा वो याद रखें कि हिन्दुस्तानी हिन्दू हों या मुस्लिम, बात जब अपने वतन पर आती है तो वे दुश्मनों को छोड़ते नहीं हैं. हिंदुस्तान का जो भी मुसलमान तालिबान के समर्थन में खड़ा है, वह देश के लिए उतना ही बड़ा खतरा है जितने की तालिबानी...
शफीकुर्र रहमान ने तालिबान पर दिया था विवादित बयान#Video https://t.co/skuPhD7DRh
— AajTak (@aajtak) August 18, 2021
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