मुझे मेरा टीचर लौटा दो!
अपने शिक्षक के प्रति बच्चों के प्यार ने ये तो साबित कर दिया कि किसी भी इंसान को अगर जीतना है तो उसे प्यार दें. प्यार में इतनी ताकत होती है कि वो मजबूत से मजबूत इंसान को काबू में कर सकता है.
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गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।
जब भी कभी शिक्षकों को याद करना होता या फिर हर शिक्षक दिवस पर ये दोहा हर किसी की जुबान पर आता है. ऐसा माना जाता है कि किसी भी बच्चे के पालन पोषण और उसकी परवरिश में उसके घर के बाद अगर किसी का अहम् योगदान होता है तो वो शिक्षक ही है. यही कारण है कि शिक्षक और छात्रों के रिश्ते को बहुत ही पवित्र माना जाता है.
लेकिन जैसा कि दुनिया की रीत है. समय के साथ हर चीज बदलती है. तो शिक्षक और छात्रों का रिश्ता भी बदल गया. फिर हमारे सामने जूली और मटूकनाथ के उदाहरण आए. बच्चों को पीटने की ऐसी शिकायतें सामने आईं कि कोर्ट को बीच में आना पड़ा और बच्चों के प्रति शिक्षकों की कठोरता पर लगाम लगी. लेकिन इन सब के बावजूद आज भी अगर मैं पीछे पलटकर अपने बचपन को याद करती हूं तो मेरी शैतानियों, मां पापा के बाद अगर कोई एक चीज याद आती है तो मेरे टीचर.
कुछ टीचर बहुत सख्त होते हैं. और कुछ ऐसे कि उनके बगैर फिर स्कूल सूना लगने लगता है. अमूमन शिक्षकों के लिए तो ऐसे उदाहरण नहीं मिलते. लेकिन फिर भी गाहे बगाहे शिक्षकों के प्रति बच्चों के प्रेम की कुछ कहानियां हमारे सामने आईं हैं. और वो ऐसी कहानियां हैं जिन्होंने हमारी आंखों के कोरों को भिंगा दिया.
बच्चों ने टीचर के ट्रांसफर के विरोध में स्कूल का बायकॉट कर दिया
ऐसी ही एक कहानी है 28 साल के भगवान की. चेन्नई के वेल्लियाग्राम स्थित स्कूल के शिक्षक भगवान बुधवार को जब स्कूल के गेट से बाहर जाने लगे तो उन्हें चारों तरफ से बच्चों ने घेर रखा था. वो सभी बच्चे उन्हें स्कूल से जाने से रोक रहे थे. आंखों में आंसू लिए इन बच्चों को सिर्फ को धुन थी कि अपने टीचर को हम यहां से जाने नहीं देंगे.
आज के समय में स्कूली बच्चों में अपने टीचर के लिए ऐसा प्यार बहुत कम देखने के लिए मिलते हैं. तिरुवल्लूर जिले के स्कूल के छात्रों ने अपने टीचर के ट्रांसफर की खबर मिलने के तुरंत बाद ही विरोध प्रदर्शन करना शुरु कर दिया. और सुखद ये रहा कि बच्चों के इस विरोध में उनके माता पिता ने उनका साथ दिया. नतीजतन अपने फेवरेट टीचर के ट्रांसफर के विरोध में मंगलवार को स्कूल के सभी बच्चों ने स्कूल का बायकॉट किया और एक भी बच्चा स्कूल नहीं गया. अपने इस विरोध के जरिए वो सरकार को ये दिखाना चाहते थे कि ये फैसला बच्चों को स्वीकार्य नहीं है.
निथ्या नाम की छात्रा का कहना है, "हम नहीं चाहते हैं कि टीचर का ट्रांसफर किया जाए. स्कूल में हमारी सबसे ज्यादा सहायता वो ही करते थे. हम में से कई बच्चों के लिए तो वो बड़े भाई की तरह हैं." खैर वैसे तो हर शिक्षक कहते हैं कि उन्हें उनके छात्र प्यार करते हैं. लेकिन भगवान के छात्र कहते हैं, "हर टीचर भगवान सर नहीं हैं." चार साल में ही भगवान ने अपने छात्रों के साथ अटूट रिश्ता बना लिया. वो उनके लिए शिक्षक, भाई, एक विश्वसनीय दोस्त और बड़े भाई जैसे थे.
प्रिंसिपल तक ने शिक्षा विभाग से ट्रांसफर रोकने का निवेदन कर दिया
एक छात्र तमिलरसन का कहना है, "हम में से कई बच्चे अंग्रेजी नहीं जानते थे. न ही अंग्रेजी पढ़ने में मन लगाते थे. लेकिन उनके प्रोत्साहन और साथ के बाद हमने बहुत सुधार किया. वह हमेशा हमारे लिए खड़े रहते थे. अगर हमें कोई संदेह हुआ तो उसे दूर करने के लिए हमेशा हमारी मदद करते थे. हम कभी भी उनसे बात करना चाहते थे तो वो हमारे लिए मौजूद होते थे. यहां तक की स्पेशल क्लास के बाद हम उन्हें देर शाम या फिर रात को भी कॉल कर सकते थे."
भगवान की खासियत ही यही थी कि उन्होंने बच्चों को सिलेबस के बंधन में नहीं बांधा. सिलेबस के अलावा वो बच्चों को सामान्य ज्ञान, सामाजिक सेवा, अपने स्किल को बढ़ाने और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए तैयार करते थे. ताकि बच्चों को नौकरी मिल जाए और उनका जीवन संवर जाए.
प्रिंसिपल ए अरविंद ने कहा कि उन्होंने बच्चों के माता पिता के अनुरोध पर शिक्षा विभाग को चिट्ठी लिखी है और निवेदन किया है कि अगर इस टीचर का ट्रांसफर रोका जा सकता है तो रोक दिया जाए. प्रिंसिपल ने कहा "हमने विभाग से अनुरोध किया है कि अगर शिक्षक का ट्रांसफर रोका जा सकता है तो रोक दिया जाए. वह हमारे सबसे अच्छे शिक्षकों में से एक है. साथ ही छात्रों को भी उससे बहुत स्नेह है. हालांकि होना ऐसा ग्रामीण स्कूलों में आम बात है. लेकिन इस बार बच्चों के अभिभावक भी इमोशनल हो गए हैं."
इस बीच, शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने कहा कि भगवान का ट्रांसफर उनकी तैनाती का हिस्सा है और शिक्षण पदानुक्रम पर आधारित है. उन्हें जहां जरुरत होगी वहां टीचरों का ट्रांसफर करना ही पड़ेगा.
हालांकि बच्चे बहुत भावुक होते हैं. लेकिन अपने शिक्षक के प्रति बच्चों के प्यार ने ये तो साबित कर दिया कि किसी भी इंसान को अगर जीतना है तो उसे प्यार दें. प्यार में इतनी ताकत होती है कि वो मजबूत से मजबूत इंसान को काबू में कर सकता है. वहीं शिक्षक ने ये साबित कर दिया कि ग्रामीण या शहरी क्षेत्र से फर्क नहीं पड़ता. बल्कि आपकी निष्ठा से पड़ता है. अपने काम को काम नहीं समझकर उससे प्यार करने लगें फिर देखिए कैसे सारी कायनात आपके कदमों में होगी. और वो भी सिर्फ आप पर प्यार ही लुटा रही होगी.
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