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Updated: 14 नवम्बर, 2015 01:54 PM
धीरेंद्र राय
धीरेंद्र राय
  @dhirendra.rai01
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किसी भी यूरोपीय देश की तुलना में फ्रांस में सबसे ज्यादा आतंकी हमले होते हैं. लेकिन उसकी कुछ खास वजहे हैं.

फ्रांस का एक कट्टर कानून

फ्रांस में 2004 में बनाए गए एक कानून के मुताबिक किसी भी व्यक्ति को अपनी आस्था का प्रदर्शन करने की इजाजत नहीं है. इसकी वजह से सिक्खों को पगड़ी पहनने से रोका गया. मुस्लिम महिलाएं बुरका नहीं पहन सकतीं. 2014 में तो चेहरा ढंकने को ही गैरकानूनी बना दिया गया. सभी लोगों से संविधान के इन कट्टर नियमों का पालन कराया जा रहा है. फ्रांस की जनगणना में भी लोगों के धर्म को दर्ज नहीं किया जाता.

सबसे ज्यादा मुस्लिम यहां

पूरे यूरोप में सबसे ज्यादा मुस्लिम फ्रांस में ही बसते हैं. यहां की आबादी में हर दस में से एक व्यक्ति मुस्लिम है. इनमें से ज्यादातर उत्तर-पश्चिमी अफ्रीका के उन देशों से आए हैं, जहां पहले कभी फ्रांस का शासन था.

मुसलमानों से दूरी है समाज में

फ्रांस में जन्मी मुस्लिम परिवारों की तीसरी पीढ़ी से भी भेदभाव की खबरें आती रहती हैं. मुस्लिम बच्चों से स्कूल में ठीक बर्ताव नहीं किया जाता तो कर्मचारियों से उनके काम की जगह पर. बहुसंख्यक ईसाई मानते हैं कि मुस्लिम उनमें घुल-मिलकर धीरे-धीरे उनके देश पर कब्जा कर लेंगे.

83 प्रतिशत रोमन कैथोलिक समाज खुद को मानता है सबसे श्रेष्ठ

आर्ट-कल्चर की समृद्ध परंपरा वाले फ्रांस के लोग खुलेपन के पक्षधर हैं. उनमें श्रेष्ठता का एक स्थाई भाव है, जिसकी वजह से ब्रिटिश को भी नीची नजर से देखते हैं. मुस्लिम कट्टरपंथ के लिए तो कोई जगह ही नहीं है. वे उसका प्राय: मजाक बनाते हैं. फ्रांस के राइट और लेफ्ट विंग दोनों ही मुसलमानों के फ्रेंच होने पर सवाल उठाते हैं.

पेरिस में पत्रिका चार्ली एब्दो के दफ्तर पर हुए हमले के बाद खबर तो यही आई थी कि पैगंबर का कार्टून इसकी वजह था. जबकि हकीकत यह है कि चार्ली एब्दो तो लंबे समय से फ्रांस में चले आ रहे वर्ग संघर्ष का एक छोटा से हिस्सा है. कल्चर वॉर. 2006 में इसी पत्रिका ने पैगंबर मोहम्मद का विवादास्पद कार्टून छापा था. बावजूद इसके कि इस्लाम में पैगंबर की आकृति बनाना वर्जित है. मामला कोर्ट में गया. पत्रिका ने तर्क दिया कि फ्रांस के कानून के मुताबिक हमारी पत्रिका भी किसी धर्म को नहीं मानती. अदालत ने पत्रिका के पक्ष में यह कहते हुए फैसला दिया कि चार्ली एब्दो को अपनी बात कहने की आजादी है.

...और संघर्ष अभी भी जारी है.

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धीरेंद्र राय धीरेंद्र राय @dhirendra.rai01

लेखक ichowk.in के संपादक हैं.

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