जहां नोटबंदी से पहले ही एटीएम मशीनों से गायब था कैश
नोटबंदी की घोषणा के बाद पूरा देश एटीएम के आगे कतार में खड़ा हो गया था. छोटे शहरों में नोटबंदी की घोषणा से पहले अधिकांश एटीएम की स्थिति वैसे भी अच्छी नहीं थी. वे या तो खराब मिलते थे या फिर उनमें कैश नहीं होता था.
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ये वाकया नोटबंदी से चार दिन पहले यानी 4 नवंबर का है. मैंने बनारस से मुजफ्फरपुर जाने के लिए गूगल मैप पर रुट सिलेक्ट किया और दोपहर करीब 12 बजे निकल पड़ा. बनारस से निकलते वक्त इस बात से मैं बिल्कुल बेपरवाह था कि पर्स में कितने पैसे हैं और गाड़ी में कितना पेट्रोल. छठ पर्व की खरीदारी के कारण छोटे-छोटे बाजार में भी भीड़ थी. ट्रैफिक स्लो था इस कारण 40 किलोमीटर की यात्रा में ही एक घंटे लग गया था. हमें अभी 320 किलोमीटर जाना था.
कुछ किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद मैंने अपने पर्स को टटोला तो उसमें बमुश्किल 400 रुपये मिले. गाड़ी में जो पेट्रोल था उससे 50 से 60 किलोमीटर और जाया जा सकता था. पर मुझे न तो पैसे की और ना ही पेट्रोल की चिंता थी. प्रत्येक चौक पर एटीएम और प्रत्येक 10 किलोमीटर के दायरे में पेट्रोल पंप दिख जा रहे थे. इसी बीच मेरे बेटे ने कहा कि पापा आप पेट्रोल ले लीजिए फिर हमलोग आगे चलेंगे. मुझे उसकी बात ठीक लगी और मैंने एक एटीएम के नजदीक अपनी गाड़ी रोक दी. एटीएम में कोई नहीं था. मैं बहुत खुश हुआ. कार्ड डाला तो पता चला कैश नहीं है. वापस आया और अपनी गाड़ी को स्टार्ट कर आगे की तरफ बढ़ा.
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कुछ किलोमीटर की दूरी पर दूसरा एटीमएम दिखा. मैंने गाड़ी रोकी और लगभग दौड़ते हुए एटीएम में दाखिल हुआ. लेकिन यहां भी वही समस्या थी. कैश नहीं है. अब परेशानी बढ़ने लगी थी. गाड़ी में पेट्रोल भी खत्म होने ही वाला था. अपने बचे हुए पैसे से पेट्रोल लेने के आलावा और कोई रास्ता नहीं था. मैंने गाजीपुर से बाहर निकलते ही 400 रुपये का पेट्रोल ले लिया. आगे गाजीपुर और रसड़ा के बीच तकरीबन 10 एटीएम में गया लेकिन कैश नहीं मिला. रसड़ा से आगे निकलते ही मैंने एक पट्रोल पंप पर गाड़ी रोक दी. पेट्रोल पंप के मैनेजर से पूछा कि यहां डेबिट या क्रेडिट कार्ड से पेट्रोल मिल जाएगा...उसने मना कर दिया, बोला- मेरे यहां यह सुविधा उपलब्ध नहीं है. उससे जानना चाहा कि आगे कहीं कार्ड से पेट्रोल मिल जाएगा...उसका कहना था सीवान से पहले तक तो आप उम्मीद ही मत कीजिए.
ज्यादातर एटीएम में नहीं मिला कैश |
अब परेशान होने की बारी मेरी थी. शाम के करीब 6 बज चुके थे. अंधेरा हो चुका था. गाड़ी में जितना पेट्रोल था उससे बमुश्किल 60 से 70 किलोमीटर तक जा सकते थे. पर्स खाली था. अगर किसी कारण से पेट्रोल खत्म हुआ तो मुश्किल में पड़ सकते थे. हमें किसी भी हाल में पैसे का इंतजाम करना था. उस इलाके में कहीं कोई ठिकाना भी नहीं दिख रहा था जहां रात को रुका जा सके. इस बीच मैं तकरीबन 10 से ज्यादा पेट्रोल पंप और 15 से 18 एटीएम पर जा चुका था. एक जगह पीएनबी के एटीएम में लंबी कतार में लोग दिखे लेकिन वहां रुकने का मतलब था अपने दो घंटे लगाना.
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नागरा को पार करने के साथ ही एक जगह मैंने एसबीआई का ईको सेंटर देखा, लिखा था- यहां किसी भी कार्ड से पैसा निकाला जा सकता है. गाड़ी साइड में खड़ी की और वहां पहुंचा. पूछने पर पता चला कि 5000 रुपये के लिए 125 रुपये देने होंगे. उस समय मेरे पास कोई विकल्प नहीं था. मैंने उसे कार्ड दिए और उसने हमें 5000 रुपये कैश दे दिया. हाथ में पांच सौ के 10 नोट आते ही जान में जान आई. अगले पेट्रोल पंप पर गाड़ी की टंकी फुल करवाई और रात तकरीबन 10 बजे अपने घर पहुंचे.
एटीएम का यह हाल नोटबंदी से चार दिन पहले का है. एटीएम में कैश नहीं और पेट्रोल पंप पर कार्ड स्वाइप करने की सुविधा नहीं. नेशनल हाईवे और स्टेट हाईवे पर यह हाल है तो गांवों की स्थिति का आप सहज अनुमान लगा सकते हैं.
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