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Updated: 02 नवम्बर, 2015 05:25 PM
अभिषेक पाण्डेय
अभिषेक पाण्डेय
  @Abhishek.Journo
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पूरे देश को हिलाकर रख देने वाले निर्भया गैंगरेप के 3 साल बाद इस दिसंबर में उससे जुड़ी एक और खबर देश के लाखों लोगों को झटका देने के लिए तैयार है. इस घटना के 6 दोषियों में से एक रिहा होने जा रहा है. यह दोषी निर्भया कांड का नाबालिग आरोपी है. निर्भया कांड के 6 दोषियों में एक नाबालिग भी था, जहां बाकियों को हाई कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई है (मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है) तो वहीं अपनी उम्र के कारण यह नाबालिग बच निकला और उसे महज 3 साल की सजा सुनाई गई.

दिसंबर में अपनी 3 साल की सजा पूरी करके वह रिहा हो रहा है. लेकिन उसकी रिहाई पूरी व्यवस्था पर सवाल उठाती है? क्या इतने क्रूर और निर्मम अपराधी को सिर्फ नाबालिग होने का हवाला देकर छोड़ना सही है? इस बात की क्या गारंटी है कि 3 साल सुधार गृह में रहने के बाद वह सुधर गया और आगे समाज के लिए खतरा नहीं बनेगा?

नाबालिग होने के कारण बच निकला?
16 दिसंबर 2016 को दिल्ली में एक चलती बस में निर्भया के साथ हुए गैंगरेप के 6 दोषियों में एक नाबालिग भी शामिल था. लेकिन क्योंकि घटना के समय वह 17 साल 6 महीने का ही था इसलिए उसे इस केस के ट्रायल में बालिग नहीं माना गया और उसका ट्रायल जुवेनाइल कोर्ट में हुआ. 31 अगस्त 2013 को जुवेनाइल कोर्ट ने उसे रेप और हत्या का दोषी मानते हुए 36 महीने कैद की सजा सुनाई. अब इस वर्ष दिसंबर में उसकी तीन साल की सजा पूरी होने के बाद रिहा हो जाएगा.

सुधार गृह उसमें कोई सुधार नहीं ला पाया!
बाल सुधार गृह में उस नाबालिग रेपिस्ट में सुधार लाने के लिए नियुक्त काउंसलर ने हाल ही में मीडिया को बताया कि उसकी गिरफ्तारी के बाद जब वह उससे पहली बार मिले तो उसके चेहरे पर कोई पछतावा नहीं था और न ही 3 साल बाद अब भी उसे इस बात का कोई पछतावा है. वह बताते हैं कि उसमें कोई सकारात्मक बदलाव नजर नहीं आता है. यानी 3 वर्षों के दौरान सुधारगृह इस खतरनाक अपराधी की सोच में कोई भी बदलाव ला पाने में नाकाम रहा है. पुलिस का कहना है कि दुर्भाग्य से सुधार गृह उसे एक बेहतर इंसान बना पाने में नाकाम रहा और अब वह बहुत 'शातिर' बन चुका है और उसे अच्छी तरह पता है कि सिस्टम को कैसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया जाए.


क्यों नाबालिगों के मामलों में कानून में बदलाव की जरूरत हैः

भारत में जुवेनाइल जस्टिस ऐक्ट 1986 में पास हुआ. इसमें पुरुषों के लिए 16 और महिलाओँ के लिए 18 वर्ष की सीमा तय की गई और उनके ट्रायल के लिए जुवेनाइल कोर्ट बनाया गया. लेकिन वर्ष 2000 में भारत ने महिला और पुरुष दोनों ही जुवेनाइल अपराधियों की उम्र की सीमा बढ़ाकर 18 वर्ष कर दी.

इसके उलट ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में भले ही 18 साल से कम उम्र के अपराधी को नाबालिग माना जाता हो लेकिन रेप और मर्डर जैसे गंभीर अपराधों में उन्हें उम्रकैद तक की सजा दी सकती है. अमेरिका में कई राज्यों में रेप और मर्डर जैसे गंभीर अपराधों में 16 साल के अपराधी को भी उम्रकैद तक दिया जा सकता है. वहीं ब्रिटेन में भी रेप और मर्डर जैसे गंभीर अपराधों में नाबालिगों को बालिगों जितनी सजा दी जा सकती है.

भारत में नाबालिगों के प्रति कानून काफी नरम है और यहां रेप जैसे गंभीर अपराधों के मामले में भी ज्यादा से ज्यादा 3 साल की सजा हो सकती है. वहीं ब्रिटेन और अमेरिका में ऐसे मामलों में उम्रकैद की सजा सुनाई जा सकती है. 2005 तक तो अमेरिका में ऐसे मामलों में मौत की सजा तक सुनाई जा सकती थी.

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लेखक

अभिषेक पाण्डेय अभिषेक पाण्डेय @abhishek.journo

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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