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Updated: 24 सितम्बर, 2021 04:42 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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भारत में सामान्य तौर पर रिटायरमेंट की उम्र सीमा 60 साल कही जाती है. ये कोई घोषित आंकड़ा नहीं है, क्योंकि सरकारी या निजी संस्थाओं में काम करने वाले इस उम्र के लोगों की रिटायरमेंट एज में काफी अंतर होता है. आसान शब्दों में कहें, तो 60 की उम्र पार करने के बाद भारत में लोगों को बुजर्ग की कैटेगरी में डाल दिया जाता है. उनसे अपेक्षा की जाती है कि अब वह आराम करें और अपना बचा हुआ समय भगवान के भजन-कीर्तन में लगाएं. एक तरह से समाज में बुजुर्गों की एक स्टीरियोटाइप भूमिका बनी हुई है. 'जिनके सिर पर बुजुर्गों का हाथ होता है, वो बहुत किस्मत वाले होते हैं'. जैसी बातें कहने वाला समाज कहीं न कहीं बुजुर्गों पर एक किरदार में बांधने को तैयार दिखता है. समाज ये नहीं सोचता है कि बुजुर्ग भी इंसान ही होते हैं और वो भी अपनी जिंदगी को अपने हिसाब से जीना चाहते हैं. हालांकि, बुजुर्ग कई बार साबित कर चुके हैं कि 'Age is just a number'. दरअसल, इन दिनों सोशल मीडिया पर एक 90 साल की दादी अम्मा का वीडियो वायरल हो रहा है. जिसमें वो कार से फर्राटा भरती नजर आ रही हैं. एक मंझे हुए ड्राइवर की तरह कार चलातीं 90 वर्षीय इन दादी की खुशी देखते बनती है.

मध्य प्रदेश के देवास जिले में स्थित बिलावली इलाके की रहने वाली 90 वर्षीय इन दादी का नाम रेशम बाई तंवर है. आमतौर पर इस उम्र में बुजुर्गों की आंखों पर मोटा सा चश्मा चढ़ जाता है. लेकिन, वीडियो में 90 साल की ये दादी अम्मा बिना चश्मे के एक ड्राइविंग एक्सपर्ट की तरह बेधड़क होकर कार चला रही हैं. उनके इस वीडियो को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी ट्वीट किया है. न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में 90 साल की इन दादी रेशम बाई तंवर ने कहा कि मुझे गाड़ी चलाना बहुत अच्छा लगता है. पहले भी कई बार गाड़ी और ट्रैक्टर चला चुकी हूं. वैसे, सोशल मीडिया पर दादी रेशम बाई तंवर का मुस्कुराते हुए कार चलाने का अंदाज देखकर हर कोई इनका फैन हो गया है. इन दादी को देखकर हर कोई इनके जज्बे को सलाम कर रहा है. 'सीखने और जीवन जीने की कोई उम्र नहीं होती' जैसी कहावत से इतर लोगों को इन दादी जिंदगी जीने के ये तीन फॉर्मूले जरूर सीखने चाहिए.

अपनी इच्छाओं को खत्म न होने दें

भारत में बुजुर्ग होने का सीधा सा मतलब होता है कि घर पर रहकर बच्चों के साथ समय बिताओ, भगवान के भजन करो जैसी चीजें. लेकिन, इन दादी अम्मा को देखने के बाद ये कहना गलत नहीं होगा कि बुजुर्गों को अपनी इच्छाओं को खत्म नहीं करना चाहिए. जब तक उनका शरीर उनका साथ दे रहा है, वो स्टीरियोटाइप भूमिका से दूर ही रहें. ऐसा भी नहीं है कि अन्य सभी चीजों को बंद कर दें. लेकिन, बच्चों पर आश्रित होने का ये अर्थ नहीं होता है कि कोई अपनी इच्छाओं को ही खत्म कर दे. गाड़ी चलाना, घूमना-फिरना जैसे शौक को अपने बच्चों से शेयर करने में बुजुर्गों को बिल्कुल भी संकोच नहीं करना चाहिए. अगर ऐसा होता है , तो नई पीढ़ी जो बुजुर्गों को लेकर प्रोटेक्टिव है, वो भी उनकी इच्छाओं को पूरा करने की कोशिश करेगी. कहा जाता है कि बढ़ती उम्र के साथ बुजुर्गों की इच्छाएं सीमित हो जाती हैं. लेकिन, ऐसा नहीं है. बुजुर्गों को अपनी इच्छाओं को सीमित करने कोई जरूरत नहीं है. बुजुर्ग जो करना चाहें, वो कर सकते हैं. हाल ही में 86 वर्षीय हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने 10वीं की परीक्षा पास की थी और अब उनका 12वीं का नतीजा भी आने वाला है. कहने का तात्पर्य है कि बुजुर्गों को पढ़ाई-लिखाई से लेकर हर वो चीज करनी चाहिए, जो वे करना चाहते हैं.

आत्मविश्वास को कमजोर न पड़ने दें

आमतौर पर उम्र के इस पड़ाव पर आते-आते बुजुर्गों के आत्मविश्वास में कमी आने लगती है. इस आम धारणा बन चुकी है कि इस उम्र के लोग ठीक से उठ-बैठ नहीं सकते, घूम-टहल नहीं सकते हैं. ये बात सही है कि उम्र बढ़ने के साथ शरीर कमजोर होता है, कई तरह के रोग हो जाते हैं. लेकिन, जिस आत्मविश्वास के सहारे 90 साल की उम्र में इन दादी ने कार चलाई है, वो हर बुजुर्ग में नजर नहीं आता है. बीमारी से घिरे बुजुर्गों को अपना आतमविश्वास कमजोर नहीं पड़ने देना चाहिए. अगर बुजुर्ग अपने आत्मविश्वास को कमजोर न पड़ने दें, तो कोई भी चीज (जो वो करना चाहें) आसानी से की जा सकती हैं. बुजुर्गों को परिवार की शान यूं ही नहीं कहा जाता है. अपने अनुभवों के सहारे वो नई पीढ़ी में जो आत्मविश्वास भरते हैं, उसे खुद इतनी आसानी से न खोने दें. बढ़ती उम्र में खुद पर भरोसा कम होने से गहरा मानसिक प्रभाव पड़ता है. अगर बुजुर्गों के आत्मविश्वास में कमी नही आएगी, तो मानसिक रूप से भी सशक्त होंगे.

90 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते बुजुर्ग काफी हद तक अशक्त हो जाते हैं. (फोटो साभार:Twitter)90 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते बुजुर्ग काफी हद तक अशक्त हो जाते हैं. (फोटो साभार:Twitter)

जीने का जज्बा बनाए रखें

90 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते बुजुर्ग काफी हद तक अशक्त हो जाते हैं. उनकी निर्भरता परिवार के अन्य लोगों पर बढ़ जाती है. आमतौर पर उम्र के इस दौर में बुजुर्गों के अंदर जीने की इच्छा खत्म होने लगती है. हालांकि, जिन बुजुर्गों को उनके परिवार के सदस्यों से सहयोग मिलता रहता है, तो उनको ऐसा बहुत कम महसूस होता है. इस स्थिति में नई पीढ़ी के ऊपर बुजुर्गों की इच्छाओं का सम्मान और उनकी सेवा कर उनमें जिंदगी जीने का जज्बा बनाए रखने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है. नई पीढ़ी को बुजुर्गों को सुनना और समझना बहुत जरूरी है. बुजुर्ग पूरा जीवन अपने बच्चों के लिए ही जीते हैं. ऐसे में अगर बच्चे ही उनसे मुंह फेर लेंगे, तो उनके अंदर से जीने की इच्छा खत्म हो जाएगी. नई पीढ़ी को अपना व्यवहार बड़े-बूढ़ों के साथ ऐसा रखना चाहिए कि बुजुर्ग कभी खुद को कमजोर महसूस न करें. बुजुर्गों को भरपूर प्यार और सम्मान दें, जिससे उनमें जीने का जज्बा बना रहे.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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